दिल्ली पुलिस के डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी के फेसबुक पर लिखे एक पोस्ट की सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हो रही है. दरअसल, शुक्रवार की रात दिल्ली पुलिस में कार्यरत रेलवे और मेट्रो के डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी को किसी अनजान नंबर से रात के वक्त व्हाट्सएप मैसेज आता है. इस मैसेज में लिखा होता है कि मां के हाथ का बना सत्तू की रोटी और कुछ पकवान से भरा बैग मेट्रो में छूट गया है. लिखने वाला शख्स साथ में ये भी लिखता है कि आप इसको हासिल करवा दें तो बड़ी मेहरबानी होगी. डीसीपी त्रिपाठी रात 10 बजे के आस-पास मैसेज देखते हैं और उसके बाद एक्शन में आ जाते हैं. तकरीबन दो घंटे के बाद बैग मिल जाता है.
बिहार के छपरा का रहने वाला छात्र ऋषभ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक कर दिल्ली के साकेत में परीक्षा की तैयारी करता है. रिषभ पिछले 10 महीने से घर नहीं गया है. इस बीच ऋषभ का दोस्त छपरा से दिल्ली आ रहा था तो ऋषभ की मां ने बेटे के लिए सत्तू भरी रोटी, गुजिया और पकवान बना कर बेटे के लिए देती है. ऋषभ का दोस्त लक्ष्मी नगर में रहता है. शुक्रवार को ऋषभ दोस्त से बैग लेकर लक्ष्मी नगर मेट्रो स्टेशन से मेट्रो लेकर साकेत के लिए निकल जाता है. राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर ऋषभ ने दूसरी मेट्रो पकड़ी तो उसे पता चला कि उसका बैग द्वारका वाली मेट्रो में ही छूट गया है. इस बीच ऋषभ को इलाहाबाद के एक पूर्व छात्र से डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी का नंबर मिलता है और वह डीसीपी के व्हाट्सएप नंबर पर बैग खोने की जानकारी देता है.
इस घटना की पूरी जानकारी डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी अपने फेसबुक वॉल पर साझा करते हैं. त्रिपाठी लिखते हैं कि उन्होंने करीब रात 10 बजे व्हाट्सएप पर यह मैसेज पढ़ा. मैसेज पढ़ने के बाद मैंने कंट्रोल रुम के माध्यम से स्टॉफ को इस बात की जानकारी दी. करीब दो घंटे के बाद तकरीबन रात 12 बजे के आस-पास यह बैग द्वारका में मिल गया. जितेंद्र मणि त्रिपाठी आगे लिखते हैं, साथियों जीवन में कुछ ऐसे कार्य होते हैं जो आदमी करके बड़ी संतुष्टि और बड़ी खुशी पाता है उनमें से एक यह कार्य है. जबकि, कोई अपरिचित व्यक्ति बिना किसी सिफारिश के बिना किसी प्रभाव के जुगाड़ के सिस्टम से मदद मांगता है और सिस्टम उसकी मदद पर लग जाता है. जब मेरे कंट्रोल रूम ने इस पीड़ित व्यक्ति ऋषभ से बात करके मुझे बताया कि सर इसमें उसके कुछ खाने का सामान है. मां के हाथों की बनी रोटियां है और कोई कीमती सामान नहीं है. फिर भी मैंने कहा यदि किसी व्यक्ति ने इसको वापस पाने के लिए डीसीपी स्तर के अधिकारी से मदद मांगी है तो पक्का वह उसे वापस पाना चाहता है और उसे उसका जुड़ाव होगा.
त्रिपाठी लिखते हैं, ‘हमें पूरी शिद्दत से प्रयास करना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि इसका बैग मिल जाए. हमने अधिकारियों से कहा कि प्रयास करें हो सकता है उसका बैग हम खोज निकाले और चंद लम्हों में उसकी समस्या को दूर होती है यह बड़ी संवेदना और भावुक क्षण था. उसके लिए जब वह व्यक्ति अपनी मां के हाथ की बनी रोटियां पाता है. उसकी आंखों में आंसू होते हैं सच बताऊं इसकी कीमत किसी बड़े से बड़े अवार्ड से भी अधिक है. बड़े से बड़े पुरस्कार से भी बड़ी है. बहुत अच्छा महसूस हुआ यह कार्य करके.’ दिल्ली पुलिस के डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी की आंखें भर आती हैं.