केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के प्रसिद्ध विद्वानों में आचार्य चाणक्य (Acharya Chanakya) का नाम एक कुशल अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री के रूप में लिया जाता है। चाणक्य नीति (Chanakya Niti) में कई ऐसी बातें लिखी हैं जिसका महत्व आज के वक्त में भी उतना ही ज्यादा है जितना सैकड़ों साल पहले था। इन नीतियों का पालन करके व्यक्ति जीवन में सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ सकता है। जिसकी वजह से हर प्रकार की परेशानियां भी दूर हो सकती हैं।
इस आदत की वजह से व्यक्ति के जीवन से सारे सुख गायब हो जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में परेशानियां आने लगती हैं। चाणक्य नीति के 13वें अध्याय के 15वें श्लोक में लिखा हैं कि
अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्।
जनो दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात।।
इसका अर्थ है कि जिसका चित्त यानी मन स्थिर नहीं होता, उस व्यक्ति को न तो लोगों के बीच में सुख मिलता है और न ही वन में। लोगों के बीच में रहने पर उनके साथ से उसे उन लोगों से ईर्ष्या महसूस होती है और जंगल में अकेलापन उसे जला देता है।
इस श्लोक के जरिये आचार्य चाणक्य ने व्यक्ति की उस आदत के बारे में बताया है जिसके कारण उसके सारे काम बिगड़ जाते हैं। चाणक्य कहते हैं कि सभी व्यक्ति हमेशा अपने चित्त यानी मन को शांत रखें और मन पर नियंत्रण रखें। जो ऐसा नहीं करता उसकी मुश्किलें बढ़ जाती हैं और किसी प्रकार के कामकाज में मन नहीं लगता है। इसके कारण उसे कभी सुख की प्राप्ति नहीं होती।
ऐसे लोगों का मन न तो महफ़िल में लगता है और ना ही अकेले में। जिस व्यक्ति का मन चंचल होता है वह किसी काम को ठीक प्रकार से कर नहीं पाता। साथ ही उसे दूसरों को देखकर हर समय जलन महसूस होती है और वह दूसरों को खुश देखकर उनकी खुशियां सहन नहीं कर पाता। ऐसे इंसान को अकेले में भी चैन नहीं मिलता क्योंकि वहां भी उसे अकेलापन परेशान करता है।