उत्तर प्रदेश के आगरा से हैरान कर देने मामला सामने आया है। यहाँ एक बेकसूर पति पत्नी ने उस अपराध की सजा भुगत ली जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं था। पांच साल बाद साबित हुआ की असल में जो सजा वो बेचारे काट रहे थे असल में उन्होंने वो अपराध किया ही नहीं। जहाँ एक तरफ माँ बाप जेल के अंदर सजा काट रहे थे वहीँ उनकी मासूम बच्चे जेल के बाहर अपने माँ बाप के बिना दर दर की ठकोरें खाकर काट रहे थे।
क्या है पूरा मामला
मामला साल 2015 है। जहाँ आगरा के बाह तहसील के जरार क्षेत्र के योगेंद्र सिंह पांच साल के मासूम बेटे रंजीत की हत्या हो गई थी। बेटे का शव मिलने पर उन्होंने पड़ोस के रहने वाले नरेंद्र सिंह और उसकी पत्नी नजमा पर घटना को अंजाम देने का आरोप लगाया था। मामले की विवेचना ब्रह्म सिंह ने की। उन्होंने चार्जशीट दाखिल कर हत्या का इल्जाम नरेंद्र सिंह और नजमा पर लगा दिया। नरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी नजमा, बच्चों के पालन-पोषण के लिए गांव में ही सब्जी की दुकान लगाते थे।
न्याय मिलने में लग गए पांच साल
न्याय के लिए पति पत्नी ने पांच साल तक लड़ाई लड़ी। बेगुनाही साबित होने और जेल से रिहा होने के बीच उनके बच्चे दर दर की ठोकरें खाते रहे। और जब पति पत्नी बाहर आये तो उनका कोई अता पता नहीं चला। काफी खोजबीन के बाद उन्हें कही से पता चला कि बच्चे कानपुर बालसुधार गृह में हैं। फिर दोनों पति- पत्नी अपने बच्चो की तलाश में कानपुर जा पहुंचा। काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें उनके बच्चे तो मिल गए लेकिन अब वह थाने में जमा अपने कागजात के लिए परेशान हैं।
उनकी बेटी ने भी पहचानने से किया इंकार
दंपती किसी तरह बच्चों के पास पहुंचा लेकिन उनकी बेटी उन्हें पहचान भी नहीं पायी । अब इस दंपती के सामने आजीविका और बच्चों के भविष्य को सम्भालने का संकट है। दंपती, शासन और प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहा है। हालांकि अभी तक किसी स्तर से उन्हें मदद का कोई आश्वासन नहीं मिला है।
दंपती का कहना है कि अब यदि वे कागज कहीं और से बनवाएंगे तो उन्हें फर्जी करार दिया जा सकता है। उन्होंने बच्चों के सभी जरूरी कागजात बनवाने में प्रशासन से मदद मांगी है। इसके साथ ही वे प्रशासन से आर्थिक मदद चाहते हैं ताकि कोई काम शुरू कर बच्चों का पालन पोषण कर सकें। अब योगेन्द्र सिंह के बच्चे के असली कातिलों को ढूंढने के साथ-साथ सेवानिवृत हो चुके विवेचक के खिलाफ कार्यवाही करने और बेगुनाह दंपती के पुनर्वास का जिम्मा किसका है, यह प्रशासन को तय करना है।