समय से बड़ा कोई शिक्षक नहीं होता. हमारे समाज में समय को अच्छे और बुरे के तराजू पर तोला जाता है. किसी व्यक्ति को जब कोई सफलता मिलती है, तो हम कहते हैं कि उसका अच्छा समय चल रहा है। किसी के साथ कोई दुर्घटना हो जाती है तो कहा जाता है कि समय अच्छा नहीं है. आपने लोगों को ये कहते हुए भी सुना होगा कि अपना टाइम आएगा. यानी समय को घड़ी की किसी भी सुईं से देखा जा सकता है, उसे अच्छा और बुरा कहा जा सकता है. लेकिन समय से बड़ा शिक्षक कोई नहीं होता और आज हम आपको इसी के बारे में बताना चाहते हैं.
2020 के बुरे समय से काफ़ी कुछ सीख सकते हैं
इस साल के 364 दिन बीत चुके हैं और आप भी बेसब्री से नए साल का इंतज़ार कर रहे होंगे. वजह सबको पता है. कोरोना की वजह से ये साल दुनियाभर के देशों के लिए अच्छा नहीं रहा. कई लोगों ने कोरोना वायरस की वजह से अपनों को खो दिया. इस बीमारी ने जीवन और मृत्यु की कई परम्पराओं को भी बदल दिया. कहते हैं कि समय काफ़ी कुछ सिखा कर जाता है, इसलिए आप भी 2020 के बुरे समय से काफ़ी कुछ सीख सकते हैं.
2020 ने हमें सिखाया कि स्वास्थ्य से बड़ी पूंजी कोई नहीं है. जो स्वस्थ है वही सुखी है. 2020 में बहुत से लोगों ने अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना शुरू किया. कसरत और योगा को बोझ समझने वाले लोगों ने इसका महत्व समझा. इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक पद्धति को घर घर में अपनाया गया. लोगों ने खूब काढ़ा भी पिया. अगर कोरोना नहीं होता को शायद आयुर्वेदिक पद्धति का ये महत्व भी आप समझ नहीं पाते. सिंगापुर में तो इसी वर्ष DIGITAL HEALTH PASSPORT की शुरुआत हुई. यानी हेल्थ ही अब आपका नया पासपोर्ट है.
लॉकडाउन के दौरान जब लोग मुश्किल दौर से गुज़रे…
2020 ने हमें सिखाया कि मकान और घर में क्या अंतर होता है. मकान ईंट की दीवारों से बने होते हैं और जब उस मकान की छत के नीचे कोई परिवार रहता है, तब वो घर बनता है. लॉकडाउन के दौरान जब लोग मुश्किल दौर से गुज़रे तो उन्हें सबसे पहले अपने घर की ही याद आई. देश के कोने कोने से लोग पैदल ही अपने घर के लिए निकल गए. तब ये लोग कोरोना का डर भी भूल गए थे और उन्हें सिर्फ अपना घर ही नज़र आ रहा है.
ये बातें भी सीखने को मिलीं
परिवार ये बड़ी कोई सम्पत्ति नहीं है. ये बात भी हमें 2020 ने सिखाई. लॉकडाउन की वजह से लोगों को अपने घरों में बंद रहना पड़ा. इससे लोगों ने अपने परिवारों के साथ अच्छा और कीमती समय बिताया. पैसा कमाने की जो अंधाधुंध दौड़ चल रही थी उससे ब्रेक मिला तो लोग अपनों के साथ वक्त बिता पाए.
कोरोना काल में एक ऐसी चीज़ भी हुई, जिसकी भारत में कल्पना करना भी मुश्किल था. लॉकडाउन के दौरान हमारे देश में सभी मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे बंद रहे और लोगों ने इसका पालन भी किया. समाज में लोगों को ये समझने का मौक़ा मिला कि अगर भगवान मन में हों तो घर मंदिर से कम नहीं होता.