समाजवादी पार्टी संरक्षक व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का आज 82वां जन्मदिन है। समाजवादी पार्टी ने प्रदेश भर में विविध आयोजन किए हैं। मुलायम सिंह यादव की दीर्घायू की कामना वाले कई होर्डिंग सपा मुख्यालय पर लगाए गए हैं। चूंकि मुलायम सिंह यादव का स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं है। इसलिए उनका आयोजन में शामिल होना अभी तय नहीं है।
आइये जानते हैं समाजवादी मुलायम सिंह यादव कैसे बने किसानों के लिए एक मसीहा:-
किसानों के मसीहा माने जाने वाले समाजवादी पार्टी संरक्षक व पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को पहली दफा विधायक बनाने के लिए उनके गांव सैफई के लोगों ने एक शाम का खाना तक छोड़ दिया था. सैफई गांव वाले नेताजी के (मुलायम सिंह यादव) चुनाव लड़ने के लिए पैसे का जुगाड़ करने में लगे हुए थे. लेकिन इसके बाद भी पैसे का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था. एक दिन नेताजी के घर की छत पर पूरे गांववालों की बैठक हुई, जिसमें सभी जाति के लोगों ने भाग लिया. उन्होंने पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा कि गांव के ही सोने लाल शाक्य ने बैठक में सबके सामने कहा कि मुलायम सिंह यादव हमारे हैं और उनको चुनाव लड़ाने के लिए हम गांव वाले एक शाम खाना नहीं खाए. एक शाम खाना नहीं खाने से कोई मर नहीं जायेगा. पर एक दिन खाना छोड़ने से आठ दिनों तक मुलायम की गाड़ी चल जाएगी. ऐसे में सभी गांव वालों ने एक जुट होकर सोने लाल के प्रस्ताव का समर्थन किया.
मुलायम सिंह यादव को बचपन से ही पहलवानी का बड़ा शौक था. शाम को स्कूल से लौटने के बाद वे अखाड़े में जाकर कुश्ती लड़ते थे, जहां पर वे अखाड़े में बड़े से बड़े पहलवान को चित्त कर देते थे. वे बताते हैं कि नेता जी का बचपन अभावों में बीता पर वे अपने साथियों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे. मुलायम सिंह छोटे कद के हैं, लेकिन उनमें गजब की फुर्ती थी. अक्सर वे पेड़ों पर चढ़ जाते थे और आम, अमरुद, जामुन बगैरह तोड़कर अपने साथियों को खिलाते थे. कई बार लोग उनकी शिकायत लेकर उनके घर पहुंच जाते थे. तब उन्हें पिताजी की डांट भी पड़ती थी.
बचपन की पुरानी बातों को याद करते हैं
मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी के जिस कालेज में पढ़ाई की, बाद में उसी कालेज में पढ़ाया. मुलायम सिंह यादव को राजनीति में लाने का श्रेय अपने समय के कद्दावर नेता नत्थू सिंह को जाता है. चैधरी नत्थू सिंह ने मुलायम सिंह के लिए अपनी सीट छोड़ दी. उन्हें चुनाव लड़वाया और सबसे कम उम्र में विधायक बनवाया. उस समय बहुत सारे लोग ऐसे थे जिन्होंने मुलायम सिंह को विधानसभा का टिकट दिए जाने का विरोध किया था, लेकिन नत्थू सिंह के आगे किसी का विरोध नहीं चला. मुलायम सिंह यादव आज देश के बहुत बड़े नेता हैं लेकिन जब भी उनसे मुलाकात होती है तो बचपन की पुरानी बातों को याद करते हैं.
जब इमरजेंसी के दौरान मुलायम सिंह यादव भी जेल गए
22 नवंबर, 1939 को इटावा के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव के पिता एक पहलवान थे और मुलायम सिंह को भी पहलवान बनाना चाहते थे. हालांकि, मुलायम सिंह पहलवानी के कारण ही राजनीति में आए. दरअसल, मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक गुरु नत्थूसिंह मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान मुलायम से काफी प्रभावित हुए और फिर यहीं से मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक करियर शुरु हो गया. मुलायम सिंह यादव साल 1967 में इटावा की जसवंतनगर विधानसभा से पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे. मुलायम सिंह यादव यह चुनाव भारतीय राजनीति के दिग्गज राममनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर यह चुनाव जीते थे. इसी बीच 1968 में राममनोहर लोहिया का निधन हो गया. इसके बाद मुलायम उस वक्त के बड़े किसान नेता चैधरी चरणसिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए. 1974 में मुलायम सिंह बीकेडी के टिकट पर दोबारा विधायक बने. इसी बीच इमरजेंसी के दौरान मुलायम सिंह यादव भी जेल गए.
रामनरेश यादव की सरकार में सहकारिता मंत्री बने
जसवंतनगर से तीसरी बार विधायक चुने जाने पर मुलायम सिंह यादव रामनरेश यादव की सरकार में सहकारिता मंत्री बने. चैधरी चरणसिंह के निधन के बाद मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक कद बढ़ना शुरू हुआ. हालांकि, चैधरी चरण सिंह की दावेदारी के लिए मुलायम सिंह यादव और चैधरी चरण सिंह के बेटे और रालोद नेता अजीत सिंह में वर्चस्व की लड़ाई भी छिड़ी. साल, 1990 में जनता दल में टूट हुई और 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की नींव रखी. राजनैतिक गठजोड़ के चलते मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव और मुलायम सिंह यादव को हार का मुंह देखना पड़ा. 1993 में मुलायम सिंह यादव ने सत्ता कब्जाने के लिए बहुजन समाज पार्टी के साथ गठजोड़ कर लिया. यह गठजोड़ काम कर गया और वह फिर से सत्ता में आ गए. मुलायम सिंह यादव केन्द्र में रक्षा मंत्री भी बने. एक बार गठजोड़ के चलते मुलायम सिंह यादव देश के प्रधानमंत्री बनने के काफी करीब पहुंच गए थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया था.