यह बात तो सर्वविदित है कि भारत कच्चे तेल के लिए मध्य एशियाई देशों पर आश्रित है, लेकिन हमारे यहां भी कुछ ऐसी गुफाएं मौजूद हैं, जहां पर कच्चे तेल का अथाह भंडार मौजूद है, जो भारत के लिए बुरे वक्त में बतौर फरिश्ता बनकर उभरता है। इस बात को हम महज शब्दों में तब्दिल करते हुए बयां ही नहीं कर रहे हैं बल्कि यदि आप इतिहास की तारीखों पर गौर फरमाएं तो अतीत की घटनाएं इस बात की तस्दीक करती हुई नजर आ रही हैं। चलिए जरा थोड़ा-सा अपने माइंड को रिवाइंड करते हुए 1990 के दशक में चलते हैं, जब भूतपूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री हुआ करते थे। यह वह दौर था, जब पूरा मध्य एशिया खाडी युद्ध के संकट से जूझ रहा था, जिसका आर्थिक नुकसान भारत को काफी हद भुगतना पड़ा। खाड़ी युद्ध के चलते कच्चे तेल के दाम आसमान छू रहे थे। मगर, उस वक्त भारत में मौजूद यह कच्चे तेल के भंडार भारत के लिए फरिश्ते के रूप में सामने आए।
.. तो अब क्या चाहती है सरकार
अब सवाल यह है कि आखिर अब मोदी सरकार क्या चाहती है, तो यहां पर हम आपको बताते चले कि अब मोदी सरकार इन कच्चे तेल के संरक्षण की दिशा में अनवरत प्रयासरत है। मोदी सरकार की कोशिश भी लगातार इस दिशा में जारी है। उधर, इस कड़ी में कर्नाटक और ओडिशा की गुफाओं में कच्चे तेल के भंडार को संरक्षण किया जाए, ताकि आपातस्थिति में कच्चे तेल का दाम कम न हो। विदित हो कि समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घटने वाली घटनाएं भी कच्चे तेल की कीमतों को प्रभावित करती है। जिसका सीधा असर भारत में आयात होने वाले कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ता है, लिहाजा मोदी सरकार की यह कोशिश अब मील का पत्थर साबित होने जा रही है।
राज्यसभा में भी उठा था मुद्दा
याद दिला दे कि इससे पूर्व इस संदर्भ में राज्यसभा में भी यह मुद्दा उठा था, जब पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम कीमतों का फायदा उठाते हुए अप्रैल-मई, 2020 में 167 लाख बैरल क्रूड खरीदा है और विशाखापत्तनम, मंगलूरू और पाडुर में बनाए गए सभी तीन रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्वों को भरा है। ध्यान रहे कि मौजूदा समय में देश में तीन अंडरग्राउंड स्टोरेज फैसिलिटी मौजूद है। यहां 53 लाख टन कच्चा तेल हमेशा जमा रहता है। ये विखाखापत्तनम, मंगलौर और पडुर में है। ऑयल मार्केटिंग और प्रोडक्शन कंपनियां भी कच्चा तेल मंगाती हैं।