चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक संपादकीय में कहा है कि अगर भारत उसके साथ किसी तरह की प्रतिस्पर्धा में शामिल होना चाहता है तो चीन अतीत से ज्यादा उसकी सेना को नुकसान पहुंचाने में सक्षम है. दरअसल, 29 और 30 अगस्त की रात लद्दाख में घुसपैठ की कोशिश की थी लेकिन भारतीय जवानों ने उन्हें खदेड़ दिया. चीनी मीडिया में इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. लद्दाख में दोनों देशों के बीच ताजा झड़प पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक चोटी को लेकर हुई.
घुसपैठ की कोशिश नाकाम होने के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीनी सेना ने एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) को पार नहीं किया. इसी दिन, चीनी सेना के प्रवक्ता ने मांग की थी कि भारत अपनी सेना पीछे हटाए. चीन ने भारतीय सेना पर अवैध तरीके से अपनी सीमा में प्रवेश करने का आरोप भी लगाया.
ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा, भारत ने अपने बयान में कहा कि उसने चीनी सेना की गतिविधि को पहले ही रोक दिया. इससे पता चलता है कि भारतीय सेना ने पहले विंध्वंसक कदम उठाया और भारतीय सैनिकों ने ही इस बार संघर्ष शुरू किया.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, भारत अपनी घरेलू समस्याओं से परेशान है, खासकर कोरोना वायरस के हालात से जो बिल्कुल नियंत्रण से बाहर है. रविवार को भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के नए मामले 78,000 पहुंच गए. अर्थव्यवस्था की स्थिति भी खराब है. सीमा पर उकसाने की गतिविधियों को अंजाम देकर भारत अपनी घरेलू समस्याओं से ध्यान भटकाना चाहता है.
संपादकीय में लिखा गया है, इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत एक ताकतवर चीन का सामना कर रहा है. पीपल्स लिबरेशन आर्मी के पास देश की एक-एक इंच जमीन की सुरक्षा करने के लिए पर्याप्त फोर्स है. चीन के लोग भले ही भारत को संघर्ष के लिए उकसाना नहीं चाहते हैं लेकिन चीन के भू-भाग पर अतिक्रमण की अनुमति कभी नहीं देंगे. चीन की जनता अपनी सरकार के साथ मजबूती से खड़ी है.
चीन दक्षिण-पश्चिम सीमाई इलाकों में रणनीतिक रूप से मजबूत है और किसी भी स्थिति के लिए तैयार है. अगर भारत शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व चाहता है तो इसका स्वागत है. लेकिन अगर भारत किसी भी तरह की चुनौती देना चाहता है तो चीन के पास भारत के मुकाबले ज्यादा हथियार और क्षमता है. अगर भारत सैन्य क्षमता का प्रदर्शन करना चाहता है तो पीएलए भारतीय सेना को 1962 से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली है.
ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिका के समर्थन का भी जिक्र किया है. इसमें कहा गया है, भारत को अमेरिका के समर्थन को लेकर किसी भी तरह का भ्रम पालने की जरूरत नहीं है और ना ही चार देशों के साथ गठबंधन के तहत रणनीतिक सहयोग बढ़ाने की. चीन-भारत का मुद्दा द्विपक्षीय मुद्दा है और अमेरिका सिर्फ शाब्दिक तौर पर ही भारत का समर्थन कर सकता है. अमेरिका चीनी क्षेत्र कब्जाने में भारत की मदद कैसे कर पाएगा? अमेरिकियों के दिमाग में चल रहा है कि भारत और चीन एक-दूसरे में व्यस्त रहें ताकि भारत को अमेरिका की चीन को रोकने की रणनीति में अहम मोहरा बनाया जा सके.
ग्लोबल टाइम्स ने संपादकीय में लिखा है, पैंगोंग लेक में हुआ संघर्ष दिखाता है कि भारत ने गलवान घाटी से कोई सबक नहीं लिया. वो अब भी चीन को उकसाना चाहता है. 2017 में डोकलाम के बाद से भारत-चीन सीमा पर तनावपूर्ण हालात बने हुए हैं. चीन-भारत सीमा पर विवाद लंबा खिंच सकता है और कई तरह के छोटे-बड़े संकट सामान्य बात हो जाएगी. हमें इसके लिए तैयार होना चाहिए.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, चीन-भारत सीमाई इलाके में सैन्य संघर्ष के लिए चीन को तैयार रहना चाहिए. हमें शांतिपूर्ण तरीकों से अपने मतभेदों को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन अगर भारत लगातार चीन को ललकारना जारी रखता है तो चीन को भी नरम रुख नहीं अपनाना चाहिए. जरूरत पड़ने पर चीन को सैन्य कार्रवाई करनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि वो इसमें सफल भी हो.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, चीन भारत से कई गुना ज्यादा ताकतवर है और भारत का चीन से कोई मुकाबला ही नहीं है. हमें भारत की गलतफहमी को दूर करना चाहिए कि वो अमेरिका समेत अन्य ताकतों के साथ मिलकर चीन से टकरा सकता है. एशिया और दुनिया के इतिहास ने हमें बताया है कि अवसरवाद पर चलने वाली ताकतें कमजोर को परेशान करती हैं जबकि ताकतवर से डरती हैं. जब भारत-चीन सीमा की बात आती है तो भारत पूरी तरह से अवसरवादी है.