भारत-नेपाल (Indo-Nepal) के बीच सीमा को लेकर चल रही खिंचातनी का चीन पूरा फायदा उठाने की कोशिश में लगा हुआ है. लेकिन इन दिनों ड्रैगन की ये शातिराना चालें भी नेपाल के प्रधानमंत्री की सियासी कुर्सी बचाने में कुछ खास भूमिका नहीं अदा कर पा रही हैं. दरअसल केपी शर्मा ओली (KP Sharma oli) चीन (China) की भाषा भले ही बोल रहे हों, लेकिन उन्हें भी अब कहीं न कहीं ये अंदाजा लग गया होगा कि चीन के सहारे उनकी सत्ता बचना मुश्किल है. क्योंकि पीएम से डील फाइनल करने के बाद नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (NCP) के सह-अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड (Pushpa Kamal Dahal-Prachanda) अब इससे खुद पीछे हटते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसकी वजह पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव कुमार का नेपाल (Madhav Kumar Nepal) में विरोध है. जिसकी वजह से दोबारा प्रचंड, ओली से किए हुए समझौते से पीछे हटते हुए साफ दिखाई दे रहे हैं.
दरअसल इस पूरे मसले पर प्रचंड की ओर से सफाई तो दी ही गई है, लेकिन साथ ही पार्टी के आम सभा की मीटिंग को समय से बुलाने वाले प्रस्ताव को भी वो खारिज कर चुके हैं. बता दें कि प्रचंड ने अपने बयान में ये स्पष्ट कर दिया है कि नवंबर-दिसंबर महीने में पार्टी के साथ आम सभा की मीटिंग होना संभव नहीं है. ऐसे में अब जाहिर सी बात है कि एक बार फिर ओली की सियासत पर ग्रहण लग चुका है. हालांकि इससे पहले ये खबर सुर्खियों में थी कि चीन के हस्तक्षेप के बाद प्रचंड की तरफ से ओली के इस्तीफे वाली मांग को अस्वीकार किया गया है. साथ ही वो पीएम से समझौता करने के लिए भी तैयार हो गए हैं.
जानकारी की माने तो इस समझौते में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की ओर से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई थी. इसके साथ ही चीन की ओर से लगातार आ रहा दबाव भी नेपाली पीएम के साथ हुए समझौते में काम कर गया था. लेकिन इसके बाद खबर ये आ रही थी कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता माधव कुमार की तरफ से लगातार समझौते पर विरोध जताया जा रहा रहा था. इसी बीच स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य मैत्रिका यादव ने सोमवार की मीटिंग के बाद प्रचंड की ओर से बयान देते हुए कहा है कि, ‘बिना किसी तरह की तैयारी के आम सभा की बैठक बुलाना सही नहीं है. ये संभव इसलिए नहीं है, क्योंकि पार्टी की विचारधारा से लेकर कई ऐसे मसले हैं जिनका हल निकालना जरूरी है.’ फिलहाल मैत्रिका के द्वारा दिए गए इस बयान के बाद से प्रचंड का रवैया पूरी तरह से बदला हुआ नजर आ रहा है. हालांकि नेपाल की सियासत आगे कौन सा नया मोड़ लेने वाली है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.