बीते गुरुवार को हरियाणा मंत्रिमंडल की बैठक संपन्न हुई. कच्चे व पक्के दोनों प्रकार के कर्मचारी मंत्रिमंडल की बैठक से आस लगाए बैठे थे. पक्के कर्मचारियों को उम्मीद थी कि उनकी सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 60 साल हो सकती है. कच्चे कर्मचारी पक्का किए जाने को लेकर आस लगाए बैठे थे, लेकिन मीटिंग में इस मुद्दे पर चर्चा ही नहीं हुई. इससे कर्मचारियों की आस टूट गई और उनकी नाराजगी बढ़ गई. इसके बावजूद, कर्मचारी संगठन लगातार CM सैनी और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजेश खुल्लर से मुलाकात कर रहे हैं.
सरकार दे चुकी है कार्यवाही की चेतावनी
हाल ही में हरियाणा में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए. उसके बाद, सरकार द्वारा अधिकारियों और कर्मचारियों की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाए गए थे, लेकिन अब इनसे जुड़े फैसले लेने में सरकार असमंजस की स्थिति में हो चुकी है. हालांकि, सरकार पहले चेतावनी दे चुकी है कि चुनावों के परिणाम आने के बाद संदिग्ध कर्मचारियों और अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी, लेकिन अभी तक ना तो सरकार द्वारा ऐसे लोगों की कोई सूची जारी की गई है, ना ही इनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई ही कर पाई है. इसके उलट सरकार से राहत के फैसलों की आशा लगाए बैठे कर्मचारी सरकार से और ज़्यादा नाराज नजर आ रहे हैं.
मुख्यमंत्री सैनी लेंगे अंतिम फैसला
बता दें कि प्रदेश में 2.70 लाख पक्के कर्मचारी और 1.30 लाख कच्चे कर्मचारी हैं, जिन्होंने कौशल रोजगार निगम के तहत समायोजित किया गया है. इसके अलावा, 12,500 गेस्ट टीचर और डीसी व एडहॉक पर करीब 7000 कर्मचारी कार्यरत हैं. सरकार द्वारा एडवोक और डीसी रेट पर काम कर रहे कर्मचारियों को पक्का किए जाने की योजना थी. अनुमान लगाए जा रहे थे कि अतिथि अध्यापकों की तरह इन्हें समान वेतन और 58 साल तक की नौकरी पर रखने के नियम बनाए जा रहे हैं. इस पर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को अंतिम फैसला लेना है.
CMO में कर्मचारियों को लेकर है दो राय
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, सीएमओ में कर्मचारियों को लेकर दो तरीके की राय है. पहले यह कि अगर कर्मचारियों पर किसी प्रकार की कार्रवाई अमल में लाई गई तो आगामी विधानसभा चुनावों में सरकार को नुकसान झेलना पड़ सकता है. इसी कारण कर्मचारियों को मनाने के लिए उन्हें राहतें दी जानी चाहिए.
दूसरी राय यह है कि लोकसभा चुनाव में कर्मचारियों द्वारा भाजपा का जमकर विरोध किया गया. सरकार चाहती है कि कोई भी फैसला लेने से पहले कर्मचारी संगठनों से बातचीत की जाए, लेकिन सरकार को यह भी आशंका है कि राहत देने के बाद भी कर्मचारी बीजेपी का साथ नहीं देंगे.