गुजरात की महाविजय (Gujarat’s great victory) के जश्न को फीका करने वाले हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजों (himachal pradesh election results) को भाजपा नेतृत्व (BJP leadership) ने गंभीरता से लिया है। पार्टी उन राज्यों को लेकर बेहद गंभीर है, जहां लोकसभा चुनाव से पहले विधानाभा चुनाव होने हैं और जो अंदरूनी गुटबाजी से जूझ रहे हैं। इनमें कर्नाटक (Karnataka) और राजस्थान (Rajasthan) सबसे अहम हैं। कर्नाटक दक्षिण का एकमात्र राज्य है, जहां भाजपा सरकार में है। भाजपा नेतृत्व ने संकेत दिए हैं कि गुटबाजी खत्म करने के लिए वह सख्त कदम उठाएगा।
भाजपा नेतृत्व अब पूरी तरह से लोकसभा चुनावों की रणनीति के हिसाब से आगे बढ़ेगा, जिसके बीच में होने वाले विधानसभा चुनाव भी इसी रणनीति से प्रभावित रहेंगे। इनमें भाजपा अपनी सत्ता वाले राज्यों को अपने पास बरकरार रखने के साथ कांग्रेस से दो अहम राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान को छीनने व तेलंगाना में खुद को मजबूत करने की तैयारी में है। पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए भी पार्टी इसी रणनीति पर काम कर रही है।
छह फीसदी वोट घटे
सूत्रों के अनुसार हिमाचल की हार को पचा पाना भाजपा के लिए आसान नहीं है। यह पार्टी अध्यक्ष का गृह राज्य होने से भी महत्वपूर्ण है। यहां की खेमेबाजी चुनाव के पहले से ही चर्चा में थी। 21 बागी चुनाव मैदान में उतर गए और नौ बागियों ने भाजपा को हराने का काम भी किया। कांग्रेस भले ही भाजपा ने महज 0.9 फीसद वोट ज्यादा पाकर सत्ता में आने में सफल रही हो, लेकिन सच्चाई यह भी है कि भाजपा के वोट पिछले चुनाव से छह फीसदी से ज्यादा घट गए, जबकि कांग्रेस के 1.8 फीसदी वोट ही बढ़े।
कर्नाटक : बोम्मई के साथ एकजुटता नहीं
आगले साल नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें कर्नाटक और राजस्थान में गुटबाजी से भाजपा परेशान भी रही है। दोनों राज्यों का प्रभार पार्टी महासचिव अरुण सिंह के पास है। हर माह लगभग आधा समय उनका इन दोनों राज्यों में गुजरता है। दोनों जगह नेताओं को एकजुट करने और जनता तक पहुंच बनाने के लिए पार्टी ने कई कार्यक्रम और अभियान चलाए हैं। कर्नाटक में भाजपा ने वरिष्ठ नेता बीएस येद्दुरप्पा को किसी तरह से मनाकर मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मना तो लिया था, लेकिन नए मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के साथ पार्टी की एकजुटता नहीं दिखी।
राजस्थान: पूनिया खेमा भी सक्रिय
राजस्थान में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की कड़ी नसीहतों का कुछ असर तो हुआ है, लेकिन वसुंधरा राजे खेमा अभी भी मुख्यमंत्री पद के चेहरे की मांग को बरकरार रखे है। दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का समर्थक खेमा भी सक्रिय रहता है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी आलाकमान जल्दी ही कर्नाटक व राजस्थान में कुछ सख्त कदम उठा सकता है, ताकि चुनावों के समय कोई गड़बड़ी न हो। खासकर राजस्थान में काफी कुछ चीजें समय से पहले तय कर लिए जाने की उम्मीद है।
मध्य प्रदेश में भी मतभेद
मध्य प्रदेश में खेमेबाजी तो नहीं है, लेकिन नेताओं के अंदरूनी मतभेद काफी गहरे हैं। खासकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद उनके समर्थकों के साथ सामंजस्य को लेकर दिक्कतें बनी हुई हैं। नगर निगम चुनावों में इसका असर दिख भी चुका है।