हाल की चुनावी सफलताओं से उत्साहित भाजपा (BJP) अब देशभर में अपने सामाजिक और राजनीतिक विस्तार (social and political expansion) के नए मिशन (New missions) में जुटने जा रही है। पार्टी की भावी रणनीति अगले तीन दशकों के लिए है, जिसमें वह पूरे देश में निचले स्तर तक अपनी जड़ें मजबूत करना चाहती है। अपने इस अभियान में पार्टी अपनी पहुंच से दूर वाले राज्यों में तो आक्रामक रूप से जमीनी संघर्ष को तेज करेगी, साथ ही जहां अभी सत्ता में है वहां पर अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंच को व्यापक बनाएगी। उसके भावी मिशन में दलित और आदिवासी समुदाय (Dalit and tribal communities) के साथ आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े पसमांदा मुसलमान (pasmanda muslim) भी शामिल हैं।
गौरतलब है कि जयपुर में राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अगले 25 साल के हिसाब से संगठनात्मक तैयारियां करने का आह्वान पार्टी से किया था। अब हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नया लक्ष्य तय करते हुए कहा कि पार्टी को अगले 30 से 40 साल तक शासन में रहना है। उसके लिए अपनी रणनीति पर लगातार और सतत अमल करते रहना है, जिसमें राजनीतिक विस्तार के साथ सामाजिक विस्तार अहम पहलू है।
यूपी में पसमांदा मुसलमान को जोड़ने के लिए विशेष अभियान
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना समापन भाषण में मार्गदर्शन तो किया ही, लेकिन विभिन्न विषयों पर चर्चा के दौरान उन्होंने हस्तक्षेप कर पार्टी के हर राज्य को कोई न कोई संदेश दिया है। खासकर, जब उत्तर प्रदेश की हाल के उपचुनाव में मिली जीत की चर्चा हो रही थी और हाल के आजमगढ़ व रामपुर के उपचुनाव में मिली जीत का ब्योरा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह रख रहे थे तब प्रधानमंत्री ने पसमांदा मुसलमानों को लेकर पार्टी को उन तक व्यापक पहुंच बनाने को भी कहा।
उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी की विधानसभा चुनाव व इस जीत में पसमांदा मुसलमानों का समर्थन भी रहा था। हाल में योगी सरकार में पार्टी ने दानिश अंसारी को मंत्री बनाया है, वह भी इसी समुदाय से आते हैं। पार्टी का मानना है कि पसमांदा मुसलमान सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा है। वह अन्य मुस्लिम समुदाय से इस मामले में अलग भी है। ऐसे में पार्टी की कोशिश उनकी अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए रणनीति बनाने पर रहेगी।
दक्षिण के राज्यों के लिए अलग रणनीति के तहत होगा काम
उत्तर, मध्य, पश्चिमी पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत पर व्यापक पहुंच बनाने के बाद भाजपा के लिए दक्षिण भारत में कर्नाटक के अलावा अन्य राज्य अभी भी चुनौती हैं। ऐसे में हैदराबाद का संदेश और यहां की रणनीति उसके लिए काफी मददगार भी हो सकती है। उसे उम्मीद है कि उसके कार्यकर्ता ज्यादा सक्रिय होंगे और बड़ी संख्या में लोग जुड़ेंगे। हालांकि, यहां पर दक्षिण की अपनी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियां अलग-अलग हैं। ऐसे में एक ही रणनीति काम नहीं कर सकती है, लेकिन दक्षिण भारत के नेतृत्व को राष्ट्रीय स्तर पर वह बड़ा संदेश जरूर देती रहेगी।
सत्ता से दूरी वाले राज्यों में तेज किया जाएगा संपर्क
भाजपा दलित, पिछड़ा, आदिवासी और सवर्ण जातियों के भीतर के छोटे-छोटे समुदाय एवं उनके सामाजिक हैसियत व आर्थिक आधार को मद्देनजर रखकर संपर्क और संवाद करेगी। बैठक में भाजपा ने पश्चिम बंगाल, केरल, तेलंगाना जैसे राज्यों के लिए एक अलग रणनीति तैयार की है। क्योंकि यहां पर राजनीतिक संघर्ष कहीं ज्यादा है। वह हिंसक रूप भी ले लेता है। ऐसे में पार्टी को आक्रामक तेवरों के साथ जमीनी जुड़ाव भी मजबूत करना होगा। अन्य राज्यों के लिए वह अलग रणनीति पर काम करेगी। वहां अपने राजनीतिक विस्तार के बाद अब सामाजिक विस्तार को मजबूती दे रही है।
बिखरे विपक्ष का पूरा फायदा उठाएगी पार्टी
दरअसल, भाजपा का मानना है कि इस समय विपक्ष बिखरा हुआ है। उसमें नेतृत्व की बड़ी कमी है। ऐसे हालात में उसके पास अपने विस्तार को व्यापक करने और मजबूत करने के अवसर काफी ज्यादा हैं। पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले अपनी इस रणनीति को मजबूत करके अपनी तैयारी को मुकम्मल कर लेना चाहती है। इसका लाभ उसे अगले दो साल के भीतर होने वाले विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी मिल सकता है।