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स्कूल यूनिफॉर्म को लेकर हाईकोर्ट की राज्य सरकार को फटकार, कहा- ‘शर्म करें’

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में प्राथमिक विद्यालय के छात्रों को यूनिफॉर्म, जूते और मोजे के दो सेट स्वतंत्र रूप से प्रदान करने के लिए 2019 के निर्देश को लागू करने में राज्य सरकार द्वारा देरी पर कड़ी आपत्ति जताई. जस्टिस बी वीरप्पा और केएस हेमलेखा की पीठ हाईकोर्ट के 2019 के आदेश का ठीक से पालन करने में राज्य की विफलता के खिलाफ दायर एक अवमानना याचिका की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत वर्दी के दो सेट छात्रों को दिए जाने थे.

न्यायमूर्ति वीरप्पा ने मौखिक रूप से कहा कि इस तरह की चूक सरकार के लिए शर्म की बात है. उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा, ‘बच्चों के साथ खेलने का मतलब है कोर्ट के साथ खेलना… अनावश्यक चीजों के लिए करोड़ों में खर्च करते हैं! शिक्षा आपका मौलिक कर्तव्य है! … सर, बच्चों की दुर्दशा… शिक्षा… ये बातें हम बर्दाश्त नहीं करेंगे… क्या यह राज्य सरकार के लिए शर्म की बात नहीं है? … यह दुर्भाग्यपूर्ण है.’

अदालती खबरों पर नजर रखने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच के मुताबिक, अदालत ने निजी स्कूलों में जाने का खर्च वहन करने वाले छात्रों की तुलना में सरकारी स्कूल के छात्रों के साथ होने वाले स्पष्ट सौतेले व्यवहार पर भी नाराज़गी जाहिर की. जस्टिस बी वीरप्पा ने कहा, ‘अगर कुर्सियों पर बैठे लोगों में मानवता नहीं है, तो यह सब एक समस्या है. उनमें मानवता होनी चाहिए. उनके बच्चे कभी सरकारी स्कूलों में नहीं जाते… हम बच्चों के प्रति इस तरह की सौतेली मां का रवैया बर्दाश्त नहीं करेंगे.’

अदालत ने इस बात पर भी गंभीर टिप्पणी की कि जून 2021 में पारित एक सरकारी आदेश में केवल सरकारी स्कूल के छात्रों को यूनिफॉर्म का एक सेट देने का प्रावधान है. एक राज्य प्राधिकरण द्वारा दायर एक हलफनामे से पता चला कि संबंधित स्कूल के प्रधानाध्यापकों को वर्दी, मोजे और जूते की खरीद के लिए धन मुहैया कराया गया था. कोर्ट ने अपने आदेश में इसे दर्ज किया, लेकिन चिंता जताई कि इससे यह सुनिश्चित नहीं होगा कि वास्तव में लाभार्थियों, यानी छात्रों तक इस तरह की धनराशि पहुंचेगी.

सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि क्या इस मामले की निगरानी के लिए किसी प्राधिकरण को नामित किया गया है. अपने आदेश में, न्यायालय ने अंततः कहा कि उक्त हलफनामे में कोई स्पष्टता नहीं है कि राज्य ने उच्च न्यायालय के पहले के निर्देशों का सख्ती से पालन किया है या नहीं. अदालत ने कहा, ‘भगवान ही जानता है कि क्या यह वास्तव में छात्रों तक पहुंचा और क्या इसने आरटीई अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा किया.’

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अब समय आ गया है कि राज्य अपनी आंखें खोले और 6 से 14 वर्ष की आयु के सरकारी स्कूल के छात्रों को स्कूल यूनिफॉर्म प्रदान करने के अपने मौलिक कर्तव्य को लागू करे. कोर्ट ने कहा कि यह कर्तव्य आरटीई अधिनियम की धारा 3 और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए और 45 (6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा से संबंधित) में निर्धारित किया गया है.

अदालत ने आगे रिकॉर्ड किया कि राज्य के वकील ने एक विस्तृत हलफनामा दायर करने के लिए कुछ और समय मांगा, जिसमें अदालत के आदेशों को सही मायने में लागू करने का संकेत दिया गया था. कोर्ट ने अनुरोध को स्वीकार कर लिया और मामले को स्थगित कर दिया गया, लेकिन इससे पहले अदालत ने चेतावनी दी कि यदि राज्य की स्पष्ट चूक जारी रही तो जुर्माना लगाया जाएगा.