सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले पर हैरानी जताई, जिसमें अपराध के एक ही मामले के अलग-अलग दोषियों को अलग-अलग सजा सुनाई गई है। जस्टिस एस रविंद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गैर इरादतन हत्या के 8 दोषियों को अलग-अलग सजा सुनाई गई थी। शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्ट की सजा में बदलाव कर सभी को पांच साल की सजा सुनाई।
इस मामले में निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304(दो) और धारा 149 के तहत आठों दोषियों को सश्रम उम्रकैद की सजा सुनाई थी। दोषियों ने इस सजा को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसने अपने फैसले में अपील को आंशिक रूप से मंजूर करते हुए इनकी जेल में बिताई गई अवधि को पर्याप्त सजा मानते हुए रिहा करने का आदेश दिया। हालांकि, इस फैसले से विवाद खड़ा हो गया, क्योंकि अपराध में दोषियों की भूमिका एक जैसी थी, लेकिन इस फैसले के कारण उनकी जेल अवधि अलग-अलग हो गई।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि एक दोषी ने नौ साल जेल में काटे थे, जबकि एक ने सिर्फ तीन साल। एक अन्य ने एक साल ही जेल काटा, जबकि एक को सिर्फ 11 महीने की सजा हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस मामले में सजा, हल्के ढंग से कहें, यदि बिल्कुल विचित्र नहीं तो बयान से बाहर है। एक तरफ, कृष्ण ने 9 साल 4 महीने की सजा काटी- तो सुंदर ने केवल 11 महीने जेल में बिताए। उच्च न्यायालय के फैसले में इस व्यापक असमानता के लिए कोई तर्क नहीं दिखता।
लगता नहीं फैसले में उम्र की कोई भूमिका
अगर यह मान लिया जाए कि हाईकोर्ट के फैसले में आरोपियों की उम्र ने भूमिका निभाई है, तो 61 वर्षीय कृष्ण, जो 9 साल जेल में रहा और ब्रह्मजीत, जो सेना में रहा है और जिसे 8 साल से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया, को इस मामले में सबसे कड़ी सजा मिली। वहीं, दूसरी ओर युवा व्यक्तियों को अपेक्षाकृत सुरक्षित छोड़ दिया गया था, जिन्होंने 11 महीने से लेकर 3 साल जेल काटी।
सभी एक समान दोषी थे
शीर्ष अदालत ने कहा कि सभी आरोपियों को आईपीसी की धारा 148 के तहत एक समान रूप से दोषी पाया गया था। वे विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस थे, जो घातक चोट पहुंचाने में सक्षम थे। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को बदलते हुए पांच साल की सजा सुनाई और कहा कि उच्च न्यायालय ने अपराध की गंभीरता पर विचार नहीं कर गलती की।