क्या आपने सोचा है कि किसी पौधे को छूने से किसी शख्स को खुदकुशी करने की इच्छा होने लगे। अगर नहीं तो हम आपको आज एक ऐसे पौधे के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें सांप जितना जहर मौजूद होता है। बता दें सामान्य पौधे जैसा लगने वाला जिम्पई-जिम्पई दुनिया का सबसे खतरनाक पौधा है। ऑस्ट्रेलियाई मूल के इस पौधे से गलती से भी किसी का शरीर छू जाए तो पौधे के रोएं भीतर धंस जाएंगे और इसके बाद इतना दर्द हो जाएगा कि इंसान खुदकुशी करने तक की सोचने लगे। इसी वजह से इसे सुसाइड प्लांट भी कहा जाता है।
बता दें साइंटिस्ट मरिना हर्ले कुछ साल पहले ऑस्ट्रेलियाई वर्षावनों पर शोध कर रही थीं। वैज्ञानिक होने के नाते वे जानती थीं कि जंगलों में कई खतरे होते हैं। यहां तक कि पेड़-पौधे भी जहरीले हो सकते हैं। वहीं इससे बचने के लिए उन्होंने हाथों में वेल्डिंग ग्लव्स और बॉडी सूट पहना हुआ था। अलग लगने वाले तमाम पेड़-पौधों के बीच में वो एक नए पौधे के संपर्क में आईं। तो उन्होंने वेल्डिंग ग्लव्स पहने हुए ही उसकी स्टडी करनी चाही, लेकिन ये कोशिश उनको भारी पड़ गई।
बता दें इसके बाद हर्ले दर्द से बेहाल अस्पताल पहुंची तो उनका सारा शरीर लाल पड़ चुका था। वो जलन से चीख रही थीं। ये जिम्पई-जिम्पई का असर था, जिसे ठीक करने के लिए उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में स्टेरॉयड लेकर रहना पड़ा। बाद में डिस्कवरी को दिए इंटरव्यू में साइंटिस्ट ने बताया- ये दर्द वैसा ही था, जैसे किसी को बिजली का झटका देते हुए ऊपर से एसिड डाल दिया जाए। क्वींसलैंड में रेनफॉरेस्ट पर काम करने वालों, या लकड़ियां काटने वालों के लिए जिम्पई को मौत का दूसरा नाम माना जाता है।
पौधे की रिपोर्ट के बाद से जंगलों में जाने वाले अपने साथ रेस्पिरेटर, मेटल ग्लव्स और एंटीहिस्टामाइन टैबलेट लेकर जाने लगे। वैसे इस पौधे को सबसे पहले साल 1866 में रिपोर्ट किया गया था। इस दौरान जंगलों से गुजर रहे कई जानवर, खासकर घोड़ों की भयंकर दर्द से मौत होने लगी। जांच में पता लगा कि सब एक ही रास्ते से गुजर रहे थे और एक जैसे पौधों के संपर्क में आए।
बता दें दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कई आर्मी अफसर भी इसका शिकार हुए और कई ने दर्द से बेहाल खुद को गोली मार ली। जो बाकी रहे, वे सालों तक दर्द की शिकायत करते रहे। इसके बाद से ही इसपर ज्यादा ध्यान गया, और इसे सुसाइड प्लांट कहा जाने लगा। वहीं बाद में क्वींसलैंड पार्क्स एंड वाइल्डलाइफ सर्विस ने जंगल में जाने-आने वालों एक मार्गदर्शिका निकाली ताकि वे खतरे से दूर रह सकें।
बता दें इस पौधे का बायोलॉजिकल नाम है, डेंड्रोक्नाइड मोरोइड्स, जो ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी रेनफॉरेस्ट में मिलता है। जिम्पई-जिम्पई इसका कॉमन नेम है, लेकिन इसे कई और भी कई नामों से जाना जाता है। जैसे सुसाइड प्लांट, जिम्पई स्टिंगर, स्टिंगिंग ब्रश और मूनलाइटर। ऑस्ट्रेलिया के अलावा ये मोलक्कस और इंडोनेशिया में भी मिलता है।
बता दें दिखने में ये बिल्कुल सामान्य पौधे जैसा है, जिसकी पत्तियां हार्ट के आकार की होती हैं और पौधे की ऊंचाई 3 से 15 फीट तक हो सकती है। रोएं की तरह बारीक लगने वाले कांटों से भरे इस पौधे में न्यूरोटॉक्सिन जहर होता है, जो कांटों के जरिए शरीर के अंदर पहुंच जाता है। आपको बता दें न्यूरोट न्यूरोटॉक्सिन वही जहर है, जो सीधे सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर डालता है। इससे मौत भी हो सकती है। कांटा लगने के लगभग आधे घंटे बाद दर्द की तीव्रता बढ़ने लगती है जो लगातार बढ़ती ही जाती है।
बता दें कांटा चुभने के बाद निकाल देने पर आमतौर पर दर्द खत्म हो जाता है, लेकिन इस पौधे का मामला जरा गंभीर है। इसके कांटे इतने बारीक होते हैं कि शरीर में धंसन के बाद दिखाई नहीं देते हैं। निकालने के दौरान अगर ये टूटकर स्किन में ही रह जाएं तब मामला और ज्यादा बिगड़ जाता है। कई इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट्स और डॉक्युमेंट्री में जिक्र है कि इस पौधे के जहर को केमिकल वेपन की तरह काम लाने के लिए ब्रिटेन की लैब पोर्टान डाउन ने भी ऑस्ट्रेलियाई सरकार और यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड से संपर्क किया था।