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समंदर में बढ़ी देश की ताकत, भारतीय नौसेना में शामिल हुई ‘सैंड शार्क’ वागीर

आईएनएस वागीर को भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया है। प्रोजेक्ट 75 के तहत कलवारी क्लास की यह पांचवी सबमरीन है, जिसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया है। मुंबई के नेवल डॉकयार्ड पर नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार की मौजूदगी में आईएनएस वागीर को नौसेना में कमीशन किया गया। बता दें कि कलवारी श्रेणी की चार पनडुब्बियों को पहले ही भारतीय नौसेना में शामिल किया जा चुका है।

नौसेना प्रमुख ने कहा, ‘वागीर 24 महीने की अवधि में नौसेना में शामिल होने वाली तीसरी पनडुब्बी है। ये कॉम्प्लेक्स के निर्माण में हमारे शिपयार्ड की विशेषज्ञता का भी एक शानदार प्रमाण है। मैं सबको उनकी कड़ी मेहनत और सराहनीय प्रयास के लिए शुभकामनाएं देता हूं।’

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, वागीर भारत के समंदर हितों को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय नौसेना की क्षमता को बढाएगी और यह सतह-रोधी युद्ध, पनडुब्बी-रोधी युद्ध, खुफिया जानकारी एकत्र करना, माइन बिछाने तथा निगरानी मिशन सहित विभिन्न मिशनों को पूरा करने में सक्षम है।

वागीर को पहले 01 नवंबर 1973 को कमीशन किया गया था और भारत की सुरक्षा के लिए कई मिशनों का हिस्सा रहा। 07 जनवरी 2001 को इस पनडुब्बी को रिटायर कर दिया गया था। 12 नवंबर 20 को अपने नए अवतार में लॉन्च की गई ‘वागीर’ पनडुब्बी को अब तक की सभी स्वदेशी निर्मित पनडुब्बियों में सबसे कम निर्माण समय में पूरा होने का गौरव प्राप्त है। समंदर परीक्षणों की शुरुआत करते हुए इसने 22 फरवरी को अपनी पहली समुद्री यात्रा की और कमीशन से पहले यह व्यापक स्वीकृति जांच तथा सख्त व चुनौती वाले समंदर परीक्षणों की एक श्रृंखला से गुजरी। मैसर्स एमडीएल ने 20 दिसंबर 22 को इस पनडुब्बी को भारतीय नौसेना के सुपुर्द किया।

रक्षा मंत्रालय ने बीते साल दिसंबर में बताया था, ‘पनडुब्बी निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि कठिनाई तब बढ़ जाती है जब सभी उपकरणों को छोटा करने की आवश्यकता होती है और कड़े गुणवत्ता की आवश्यकताएं भी बनाए रखनी होती हैं । एक भारतीय यार्ड में इन पनडुब्बियों का निर्माण ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक और कदम है और इस क्षेत्र में आत्मविश्वास बढ़ाता है, एक उल्लेखनीय उपलब्धि यह है कि यह 24 महीने की अवधि में भारतीय नौसेना को दी गई तीसरी पनडुब्बी है।’