मार्गशीर्ष या अगहन माह को अति पवित्र और श्रेष्ठ माना गया है। मार्गशीर्ष माह में ही भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। इस पूर्णिमा पर स्नान, दान और भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इस साल ये पूर्णिमा इस वर्ष 30 दिसंबर को मनाई जाएगी। इस पूर्णिमा पर स्नान और दान का उतना ही महत्व है जितना कार्तिक पूर्णिमा का है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व
पूरे माह पूजा-पाठ और व्रत करने वालों के लिए पूर्णिमा का दिन सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन तीर्थ या किसी पवित्र नदी में स्नान कर के दान करने से पापों का नाश होता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा और कथा करने से भी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गीता पाठ करने का भी महत्व है। इस दिन गीता पाठ करने से पितरों को तृप्ति प्राप्त होती है।
इस पूर्णिमा का 32 गुना अधिक फल मिलता है
पुराणों के अनुसार इस पूर्णिमा पर तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र सरोवर में स्नान करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस दौरान ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन दान का फल अन्य पूर्णिमा व दिनों की तुलना में 32 गुना अधिक प्राप्त होता है। इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की पूजा विधि
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर के पूरे घर में सफाई के बाद गंगाजल या गौमूत्र छिड़के।
घर के बाहर रंगोली बनाएं और मुख्य द्वार पर बंदनवार लगाएं।
अगर संभव हो तो पूजा के स्थान पर गाय के गोबर से लीपें और गंगाजल छिड़कें।
तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं और प्रणाम कर के तुलसी पत्र तोड़ें।
ताजे कच्चे दूध में गंगाजल मिलाकर भगवान विष्णु-लक्ष्मी और श्रीकृष्ण एवं शालीग्राम का अभिषेक करें।
अबीर, गुलाल, अक्षत, चंदन, फूल, यज्ञोपवित, मौली और अन्य सुगंधित पूजा साम्रगी के साथ भगवान की पूजा करें और तुलसी पत्र चढ़ाएं।
इसके बाद सत्यनारायण भगवान की कथा कर के नैवेद्य लगाएं और आरती के बाद प्रसाद बांटें।
क्या करें इस दिन
पूर्णिमा पर सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं अगर संभव हो तो किसी तीर्थ पर जाकर नहाएं।
सुबह व्रत का संकल्प लेकर दिनभर व्रत रखें और वस्त्र एवं खाने की चीजों का दान करें।
इस दिन तामसिक चीजों जैसे लहसुन, प्याज, मांसाहार, मादक वस्तुएं और शराब से दूर रहें।
दिन में न सोएं और झूठ न बोलें।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की पूजा व कथा की जाती है।
पूजा में भगवान को चूरमा का भोग लगाना चाहिए।
श्रद्धा के अनुसार गरीबों और ब्राम्हणों को भोजन करवा कर दान दें।
ऐसा करने से भक्तों के सारे संकट दूर हो जाते हैं और उन्हें मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।