महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) चीफ शरद पवार (Sharad Pawar) के इस्तीफे (Resignation) के एलान के बाद से ही हलचल मची हुई है. शरद पवार के बाद एनसीपी का अगला अध्यक्ष (President) कौन होगा, इसे चुनने के लिए बनाया गया पैनल आज यानि शुक्रवार को फैसला कर सकता है. एनसीपी चीफ शरद पवार ने इस्तीफे की घोषणा अपनी आत्मकथा के विमोचन के कार्यक्रम में की थी. इस आत्मकथा में पवार ने महाविकास आघाड़ी गठबंधन (एमवीए) के सहयोगियों शिवसेना (यूटी) के उद्धव ठाकरे और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा.
इतना ही नहीं, शरद पवार ने आत्मकथा में भतीजे अजित पवार की बगावत को लेकर भी खुलकर अपनी बात रखी. आत्मकथा में उन्होंने लिखा कि कांग्रेस का रवैया एक अड़ियल टट्टू की तरह था. वहीं, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहते उद्धव ठाकरे में नहीं राजनीतिक चतुरता नहीं थी. आसान शब्दों में कहें तो पवार ने महाविकास आघाड़ी गठबंधन के सभी सहयोगियों के पेंच कसने में कोई कसर नहीं छोड़ी. एनसीपी चीफ की ये आत्मकथा आने वाले वक्त में महाराष्ट्र की सियासत में होने वाले बड़े खेल का संकेत दे रही है.
‘शिवसेना का वैचारिक आधार कमजोर’
एनसीपी चीफ ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि शिवसेना वक्त-वक्त पर भले ही जोर लगा कर अपनी बात रखती हो, लेकिन इसका वैचारिक आधार इतना मजबूत नहीं है. शिवसेना के इतिहास पर अगर नजर डालें तो राजनीति के लिए जरूरी लचीलापन उसने बार-बार दिखाया है. आपातकाल लगाए जाते वक्त शिवसेना ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया था और 1980 के चुनाव में शिवसेना इंदिरा कांग्रेस के साथ खड़ी थी. इसके बदले शिवसेना को विधान परिषद में 2 विधायक भी मिले थे. मुस्लिम विरोध और दलित विरोध, यह शिवसेना की विचारधारा का एक पहलू था, लेकिन जैसा की नजर आता है यह उतना तीव्र नहीं था.
‘सीएम रहते सिर्फ दो बार मंत्रालय गए उद्धव’
अपनी आत्मकथा में शरद पवार ने उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके बर्ताव पर भी टिप्पणियां कीं. उन्होंने लिखा कि मुख्यमंत्री रहते हुए उद्धव ठाकरे का सिर्फ दो बार मंत्रालय जाना हमें ज्यादा रास नहीं आया. बाला साहब ठाकरे के साथ बातचीत के दौरान जो सहजता रहती थी, वैसे ही सहजता उद्धव के साथ बातचीत के दौरान नहीं थी. उनकी तबीयत का ध्यान रखते हुए, डॉक्टर से मिलने के वक्त का ध्यान रखते हुए ही उनसे मुलाकात का वक्त तय करना पड़ता था.
एनसीपी चीफ ने उद्धव ठाकरे के बारे में आगे लिखा कि राज्य के प्रमुख को प्रदेश में होने वाली हलचल की खबर रखनी चाहिए. उस पर बारीकी से ध्यान देना चाहिए. कल क्या होगा इसका अंदाज लगाने की क्षमता होनी चाहिए और उसके मुताबिक आज क्या कदम उठाने हैं, यह तय करने की राजनीतिक चतुरता होनी चाहिए, लेकिन इन सब मामलों में हमें कमी महसूस हो रही थी. राजनीति में सत्ता बरकरार रखने के लिए तेजी से हरकत करनी पड़ती है, लेकिन महाविकास आघाड़ी सरकार गिरने से पहले पैदा हुए घटनाक्रमों के पहले पड़ाव में ही उद्धव ने हार मान ली.
‘शिवसेना में बगावत के लिए उद्धव जिम्मेदार’
कोरोना महामारी के दौरान उद्धव ठाकरे के बर्ताव पर शरद पवार ने टिप्पणी करते हुए लिखा कि ठाकरे प्रशासन के संपर्क में थे, लेकिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये. स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे और एनसीपी के सारे मंत्री प्रत्यक्ष मैदान में सक्रिय थे. शरद पवार ने शिवसेना में हुई बगावत के लिए भी एक तरह से उद्धव ठाकरे को ही जिम्मेदार ठहराया. पवार ने लिखा कि उद्धव को मुख्यमंत्री बनाए जाने से शिवसेना में ही तूफान आ जाएगा, इसका अंदाजा हमें नहीं था. शिवसेना में हुए असंतोष के इस विस्फोट को शांत करने में शिवसेना का नेतृत्व कमजोर पड़ गया. संघर्ष के बिना उद्धव ठाकरे के इस्तीफा दिए जाने से महाविकास आघाड़ी की सत्ता खत्म हो गई.
‘कांग्रेस का रवैया अड़ियल टट्टू की तरह’
पवार ने आत्मकथा में लिखा कि कांग्रेस ने हारी हुई मानसिकता के साथ चुनाव लड़ा था, लेकिन मेरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस के आक्रामक प्रचार का फायदा कांग्रेस को भी हुआ. इस वजह से उनका संख्या बल गिरने के बजाए थोड़ा सा बढ़ा ही. कांग्रेस को सरकार में हिस्सेदारी मिलेगी इसका अंदाजा होने के बाद उन्होंने दबाव की राजनीति करनी शुरू कर दी. विपक्ष की एकता का सबसे मजबूत केंद्र बिंदु कांग्रेस है यह बात निर्विवाद है, लेकिन बाकी पार्टियों को साथ लेते वक्त जब उनको महत्व देने की बात होती है तब कांग्रेस को उसकी देशव्यापी शक्ति का साक्षात्कार होता है. कांग्रेस की इसी अहंकारी प्रवृत्ति पर एक इंटरव्यू में मैंने उंगली उठाई थी. कांग्रेस के साथ सरकार बनाने को लेकर चर्चा में संयम की परीक्षा हो रही थी.
महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के पहले जब एक सुबह अचानक अजित पवार ने एनसीपी से बगावत करके उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी तो उसका ठीकरा भी शरद पवार ने कांग्रेस पर ही फोड़ा. शरद पवार ने लिखा कि सरकार बनाने की कसरत के वक्त कांग्रेस के साथ साफगोई के साथ चर्चा नहीं हो रही थी. कांग्रेसी नेताओं के अड़ियल रवैया की वजह से रोज कोई ना कोई नया विघ्न आ रहा था. हम बड़े सामंजस्य के साथ कांग्रेस को सुन रहे थे, लेकिन उनका रवैया अड़ियल टट्टू की तरह था. ऐसा कुछ होगा उसकी आशंका नहीं थी. अजित भावुक है और उसने चिड़चिड़ा कर ऐसा कदम उठाया होगा ऐसा मेरा अंदाज था.