आजकल इंसान की स्पीड ट्रैफिक लाइट पर निर्भर करती है। दुनिया की पहली ट्रैफिक लाइट 10 दिसंबर, 1868 को लंदन, इंग्लैंड में संसद भवन के बाहर सड़क पर लगाई गई थी। वहीं आप नहीं जानते होंगे कि रेलवे के इंजीनियर जेके नाइट ने पहली ट्रैफिक लाइट लगाई थी। रात में इसे दिखाई देने के लिए गैस का उपयोग किया जाता था। उस समय ट्रैफिक लाइट में केवल दो रंगों का इस्तेमाल होता था जो एक लाल था और दूसरा हरा, उसके काफी समय बाद ट्रैफिक लाइट्स में पीला रंग लाया गया था।
ट्रैफिक लाइट में लाल रंग डालने का कारण लोगों को सतर्क करना था। आप जानते ही होंगे कि शुरू से ही रेड कलर का मतलब रहा है ‘आगे खतरा है।’ इसी बात को इंगित करने के लिए लाल रंग चुना गया था। वैसे भी हम सभी इस बात से भी वाकिफ हैं कि अन्य रंगों की तुलना में लाल रंग गहरा रंग है इसके अलावा इसे दूर से भी साफ़ देखा जा सकता है। इसी वजह से इस रंग का इस्तेमाल कार या यात्री को ट्रैफिक लाइट पर रोकने के लिए करना शुरू कर दिया गया था।
पीला रंग शुरू से ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को ट्रैफिक लाइट में रखने का कारण था कि जब पीली रोशनी हो तो यह संकेत मिले कि आप फुटपाथ को पार करने या वाहन को आगे बढ़ाने या अपनी ऊर्जा का उपयोग करने के लिए तैयार हैं।
हरे रंग को प्रकृति से जोड़कर देखते हैं। ऐसे में कहा जाता है यह रंग इस बात की तरफ इशारा करता है कि सब कुछ ठीक है। इस वजह से इसे ट्रैफिक लाइट में लाया गया ताकि यह पता चल सके कि अब वाहन को आगे बढ़ने के लिए या पैदल चलने वालों को सड़क पार करने के लिए चलना चाहिए।