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राकांपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार को पावर देने की पैरवी, संप्रग की कमान सौंपने की चर्चा

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का अध्यक्ष बनाने की चर्चा एक पखवाड़े में दूसरी बार छेड़ी गई है। पवार के 80वें जन्मदिवस से ठीक पहले भी यह चर्चा उठी थी। अब शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए पवार का नाम लिए बिना उन्हें संप्रग की ‘जमींदारी’ सौंपने की वकालत की है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में शनिवार को जहां कांग्रेसी नेतृत्व वाले संप्रग की कमियां गिनाई गई, वहीं पवार की तारीफ में कशीदे काढ़े गए हैं। संपादकीय कहता है कि कांग्रेस के नेतृत्व में एक ‘यूपीए’ (संप्रग) नामक राजनीतिक संगठन है। उस ‘यूपीए’ की हालत किसी ‘एनजीओ जैसी दिख रही है।


यूपीए’ के सहयोगी दल भी देश में चल रहे किसानों के असंतोष को गंभीरता से लेते नहीं दिखाई देते। ‘यूपीए’ में शामिल दल कौन हैं, और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है। पवार के नेतृत्ववाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को छोड़ दें तो ‘यूपीए’ की अन्य सहयोगी पार्टियों में कोई हलचल दिखाई नहीं देती। दूसरी ओर, पवार की तारीफ करते हुए संपादकीय कहता है कि शरद पवार का एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है। उनके अनुभव का लाभ प्रधानमंत्री मोदी सहित दूसरी पार्टियां भी लेती रहती हैं। बंगाल में ममता बनर्जी अकेले लड़ रही हैं। भाजपा वहां जाकर कानून-व्यवस्था को बिगाड़ रही है। इस दौरान ममता ने केवल पवार से ही चर्चा की। चूंकि महाराष्ट्र की शिवसेनानीत सरकार में कांग्रेस शामिल है। इसलिए सामना ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सीधी आलोचना के बजाय सिर्फ संप्रग की कमियां गिनार्ई।

सामना में लिखा कि कांग्रेस जैसी ऐतिहासिक पार्टी में एक साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। सोनिया ‘यूपीए’ की अध्यक्ष हैं और कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं। लेकिन उनके आसपास के पुराने नेता अदृश्य हो गए हैं। मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल जैसे लोग अब नहीं रहे। ऐसे में कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा? ‘यूपीए’ का भविष्य क्या है, इसे लेकर भ्रम बना हुआ है। जिस तरह ‘यूपीए में कोई नहीं इसी तरह एनडीए (राजग) में भी कोई नहीं है। लेकिन भाजपा पूरी साम‌र्थ्य से सत्ता में है और उनके पास नरेंद्र मोदी जैसा दमदार नेतृत्व और अमित शाह जैसा राजनीतिक व्यवस्थापक है। सामना के अनुसार राहुल व्यक्तिगत रूप से संघर्ष करते रहते हैं। लेकिन कहीं कोई कमी जरूर है।

सामना संप्रग में ‘नेतृत्व की कमजोरी’ की ओर इशारा करते हुए कहता है कि तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, अकाली दल, मायावती की बसपा, अखिलेश यादव, आंध्र में जगन की वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव, ओडिशा में नवीन पटनायक और कर्नाटक के कुमारस्वामी जैसे कई दल और नेता भाजपा के विरोध में हैं। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाले ‘यूपीए’ में वे शामिल नहीं हुए। जब तक ये दल ‘यूपीए’ में शामिल नहीं होंगे, विरोधी दल का बाण सरकार को भेद नहीं पाएगा। राजनीतिक हलकों में सामना के इस संपादकीय को कुछ ही दिनों पहले लिखी सोनिया गांधी की उस चिट्ठी का जवाब माना जा रहा है, जो उन्होंने महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार द्वारा संयुक्त साझा कार्यक्रम पर गंभीरता से काम करने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखी थी।

दूसरी ओर, शिवसेना पवार को संप्रग अध्यक्ष के रूप में देखना चाहती है, क्योंकि महाराष्ट्र में उद्धव को पूरे पांच वर्ष मुख्यमंत्री पद देने का वायदा पवार के ही दिमाग की उपज है। शिवसेना को यह लगता है कि यदि संप्रग अध्यक्ष शरद पवार हुए, तो महाराष्ट्र के किसी भी चुनाव में महाविकास अघाड़ी गठबंधन कायम रखते हुए भाजपा को आसानी से पछाड़ा जा सकता है। इसीलिए सामना पवार को यह जिम्मेदारी देने की परोक्ष वकालत करते हुए कहता है कि विरोधी दलों की हालत उजड़े हुए गांव की ‘जमींदारी’ संभालने वाले की तरह हो गई है। यह जमींदारी कोई गंभीरता से नहीं लेता। संप्रग का दायरा बढ़ाने की जरूरत: संजय राउत

मुंबई, प्रेट्र : शिवसेना सांसद और सामना के संपादक संजय राउत ने संप्रग का दायरा बढ़ाने की जरूरत बताई है। राउत का कहना है कि संप्रग में भाजपा विरोधी अन्य दलों को शामिल कर मोदी सरकार का विकल्प पेश करना चाहिए। पत्रकारों से बातचीत में राउत ने कहा कि सोनिया गांधी कई सालों से संप्रग का नेतृत्व कर रही हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि संप्रग में और पार्टियों को भी शामिल किया जाए। यह पूछे जाने पर कि क्या पवार को संप्रग अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है उन्होंने कहा कि देश में नेताओं की कमी नहीं है। जो जरूरी बात है वह यह है लोगों का समर्थन। सोनिया की तरह पवार को भी एक बड़े तबके का समर्थन हासिल है। जरूरत है कि सभी दल मिलकर एक मजबूत विकल्प पेश करें। क्योंकि कमजोर विपक्ष लोकतंत्र की लिए ठीक नहीं होता।