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युधिष्ठिर बने स्वर्ग के राजा, जानिए क्यों नहीं मिला बाकी पांडवों को ये स्थान

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्री कृष्ण के अपना शरीर त्याग दिया तो वेदव्यास की बात मानते हुए पांडव द्रोपदी के साथ तमाम राज-पाठ परीक्षित को सौंप कर सशीर स्वर्ग जाने के लिए निकल गए। धार्मिक कथाओं के अनुसार 5 पांडवों, द्रोपदी के साथ उनका कुत्ता भी स्वर्ग जाने के लिए गया था। सबसे पहले द्रोपदी गिरीं थी। कथाओं के अनुसार के पांच पांडव, द्रोपदी और कुत्ता सुमेरु पर्वत पर चढ़ रहे थे तो उसी समय द्रोपदी लड़ खड़ाकर गिर पड़ीं, तो भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि किसी पाप की वजह से द्रोपदी गिर पड़ी, तब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि द्रोपदी हम सब में से सबसे अधिक प्रेम अर्जुन को करती थी इसलिए वह गिरीं। इतना कहते हुए बिना पीछे देखें वह आगे बढ़ गए।

सहदेव गिरे: द्रौपदी की थोड़ी ही देर बाद सहदेव भी गिर पड़े। तब भीम ने उनके गिरने का कारण पूछा तो युधिष्ठिर जी ने कहा कि सहदेव अपने को सबसे बड़ा विद्वान समझता था। उसके इस पाप की वजह स वे गिरे।

फिर नकुल गिरे: जब इन दोनों के बाद नकुल गिरे तो युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर अभिमान था, जिस कारण उनकी ये दशा हुई। इसके बाद अर्जुन गिरे: जब अर्जुन गिरा तो युधिष्ठिर ने बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर अधिक अभिमान था। जिसके बल पर वो कहता था कि मैं एक ही दिन में समस्त शत्रुओं का नाश कर दूंगा, परंतु वो ऐसा कर नहीं पाया। इस कारण ही अर्जुन बीच रास्ते में ही गिर गए।

और अंत में गिरे भीम: रास्ते में जब सबसे अंत में भीम भी गिर पड़े तो उन्होंने अपने भी गिरने का कारण युधिष्ठिर से पूछा। तब उन्होंने बताया कि तुम खाते बहुत थे और साथ ही साथ अपनी ताकत का झूठा प्रदर्शन करते थे। यही कारण है कि आज तुम्हे धरती पर गिरना पड़ा। भीम को यह बात कहकर युधिष्ठिर कुत्ते के साथ आगे बढ़े। द्रौपदी सहित अन्य पांडवों के रास्ते में गिरने के बाद युधिष्ठिर जैसे ही कुछ दूर आगे चले तो स्वयं देवराज इन्द्र अपना रथ लेकर युधिष्ठिर को लेने आ गए।