थीम पार्क में शुक्रवार से शुरू हुआ लक्षचंडी महायज्ञ हिंदुत्व व अध्यात्म के साथ विज्ञान से भी जुड़ा है। यज्ञ का अध्यात्म के साथ वैज्ञानिक आधार भी है। हालांकि वैज्ञानिक अभी इस पर शोध कर रहे हैं, जबकि संत-महात्मा यज्ञ को अध्यात्म के साथ पूरी तरह से वैज्ञानिक होने का दावा कर रहे हैं। लक्षचंडी महायज्ञ के आयोजक स्वामी हरिओम ने दावा किया कि यज्ञ से निकलने वाले धुएं से न केवल प्रकृति पर बल्कि मानव पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
वहीं वैज्ञानिकों की टीम को लीड कर रहे डॉ. राजेश केराज ने बताया कि यज्ञ के धुएं का मानव पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे लेकर उनकी टीम शोध कर रही है। इसके लिए उनकी टीम ने 550 लोगों के ब्लड सैंपल लिए हैं। उनका लक्ष्य एक हजार लोगों के ब्लड सैंपल लेने का है ताकि शोध को बेहतरीन ढंग से प्रमाणित किया जा सके। इसे प्रमाणित करने के लिए उन्होंने तीन वर्ग बनाए हैं, जिसमें पहला पुजारी एवं पुरोहित का है। यह लोग पूरे 11 दिन यज्ञ में पूर्ण रूप से शामिल रहेंगे। दूसरा वर्ग यज्ञमान का है, जो पुजारी के बाद कुछ न कुछ अंतराल पर शामिल रहेगा। तीसरा वर्ग वह है, जो यज्ञ से पांच किलोमीटर के दायरे में आता है। यज्ञ से पहले इन तीन वर्ग के सैंपल लिए हैं। अब यज्ञ के पूर्ण होने पर सैंपल लिए जाएंगे। इसके बाद दो से चार महीने के बाद सैंपल लेने हैं। इसके बाद इन सैंपल पर सात देशों के वैज्ञानिक शोध करेंगे और यज्ञ के प्रभाव का आकलन करेंगे।
यज्ञ के धुएं से पर्यावरण शुद्ध होता है तथा मंत्रोच्चार से मानव की सोच सकारात्मक हो जाती है। यज्ञ से कोरोना के साथ अकाल महामारी का भी अंत भी संभव है। स्वामी हरिओम ने कहा कि भले ही यज्ञ पर वैज्ञानिक शोध कर रहे है, मगर यह तो पहले से ही शोधा हुआ है। हमारे ऋषि-मुनि, वेद, पुराण व ग्रंथ इसे पहले ही सत्यापित कर चुके है। फिर भी वैज्ञानिक शोध करके पता लगाना चाहते है तो उनका स्वागत है। अब इसे प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिकों का एक प्रतिनिधिमंडल लक्षचंडी यज्ञ में शामिल होने के लिए आया हुआ है।
वैज्ञानिक डॉ. राजेश केराज ने बताया कि मानव ब्लड में 72 से 84 तरह केमिकल होते हैं। उदाहरण देते हुए कहा जब भी मानव किसी चीज का सेवन करता है तो वह सीधे तौर पर ब्लड में शामिल नहीं होता, बल्कि उसमें कुछ समय लगता है, जबकि यज्ञ का धुआं श्वास के साथ सीधे मानव के शरीर से ब्लड में शामिल हो जाता है। यज्ञ में कई प्रकार की जड़ी बूटियों का इस्तेमाल होता है। अब यह शोध का विषय है कि यज्ञ के धुएं से मानव व पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा।