Breaking News

ममता बनर्जी को झटका, ‘सामना’ के जरिए शिवसेना ने कहा- कांग्रेस को दूर रखकर राजनीति करना मौजूदा सरकार को बल देने जैसा

शिवसेना (Shivsena) ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ (Saamana) में एक लेख में लिखा है ममता बनर्जी के मुंबई (Mumbai) दौरे के कारण विपक्षी दलों (Opposition) की हलचलों में गति आई है. कम-से-कम शब्दों के हवा के बाण तो छूट रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सामने मजबूत विकल्प खड़ा करना है इस पर एकमत हैं ही, लेकिन कौन किसे साथ लें और बाहर रखें इस पर विपक्ष में अभी भी विवाद उलझा हुआ है. विपक्ष की एकता का न्यूनतम साझा कार्यक्रम नहीं बनता तो भाजपा को सामर्थ्यवान विकल्प देने की बात कोई न करे.

सामना में आगे लिखा गया है कि अपने-अपने राज्य और टूटे-फूटे किले संभालने के एक साथ इस पर तो कम-से-कम एकमत होना जरूरी है. इस एकता का नेतृत्व कौन करे यह आगे का मसला है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी बाघिन की तरह लड़ीं और जीतीं. बंगाल की भूमि पर भाजपा को चारों खाने चित करने का काम उन्होंने किया. उनके संघर्ष को देश ने प्रणाम किया है. ममता ने मुंबई में आकर राजनैतिक मुलाकात की. ममता की राजनीति काग्रेंस उन्मुख नहीं है. पश्चिम बंगाल से उन्होंने कांग्रेस, वामपंथी और भाजपा का सफाया कर दिया. यह सत्य है फिर भी कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखकर सियासत करना यानी मौजूदा ‘फासिस्ट’ राज की प्रवृत्ति को बल देने जैसा है.

10 सालों में कांग्रेस पिछड़ना चिंताजनक

कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो, ऐसा मोदी और उनकी पार्टी को लगना एक समय समझा जा सकता है. यह उनके कार्यक्रम का एजेंडा है. लेकिन मोदी और उनकी प्रवृत्ति के विरुद्ध लड़नेवालों को भी कांग्रेस खत्म हो, ऐसा लगना यह सबसे गंभीर खतरा है. पिछले दस वर्षों में कांग्रेस पार्टी का पिछड़ना चिंताजनक है. इसमें दो राय नहीं हो सकती. फिर भी उतर रही गाड़ी को ऊपर चढ़ने नहीं देना है और कांग्रेस की जगह हमें लेना है यह मंसूबा घातक है.

खुद के लोग दबा रहे कांग्रेस का गला

सामना में आगे कहा गया है कि कांग्रेस का दुर्भाग्य ऐसा है कि जिन्होंने जिंदगी भर कांग्रेस से सुख-चैन-सत्ता प्राप्त की वही लोग कांग्रेस का गला दबा रहे हैं. गुलाम नबी आजाद ने साल 2024 के चुनाव में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं होगी, ऐसा श्राप दिया है. आजाद ने ऐसा कहा है कि आज की स्थिति कायम रही तो कांग्रेस की अवस्था निराशाजनक रहेगी. आजाद वगैरह मंडली ने ‘जी23’ नामक असंतुष्टों का एक गुट तैयार किया है. उस गुट के लगभग सभी लोगों ने कांग्रेस से सत्ता सुख भोगा है लेकिन इस गुट के तेजस्वी मंडल ने कांग्रेस की आज की स्थिति सुधारने के लिए क्या किया? या इस तेजस्वी मंडली को भी अंदर से लगता है कि 2024 में कांग्रेस का काम निराशाजनक रहे, जो भाजपा को लगता है वही इस मंडली को लगता है, इसे एक संयोग ही कहा जाएगा.

पर्दे के पीछे गुटर-गूं न करें

कांग्रेस ने जब तक लोकसभा में 100 का आंकड़ा पार नहीं किया तो राष्ट्रीय स्तर पर ‘गेम चेंज’ नहीं होगा. इसलिए भाजपा की रणनीति कांग्रेस को रोकनी है, लेकिन यही रणनीति मोदी और भाजपा के विरुद्ध मशाल जलानेवालों ने भी रखी तो वैसे होगा? देश में कांग्रेस की नेतृत्व वाली ‘यूपीए’ कहां है? यह सवाल मुंबई में आकर ममता बनर्जी ने पूछा. यह प्रश्न मौजूदा स्थिति में अनमोल है. यूपीए अस्तित्व में नहीं है, उसी तरह एनडीए भी नहीं है. मोदी की पार्टी को आज एनडीए की आवश्यकता नहीं. लेकिन विपक्षियों को यूपीए की जरूरत है. यूपीए के समानांतर दूसरा गठबंधन बनाना यह भाजपा के हाथ मजबूत करने जैसा है. यूपीए का नेतृत्व कौन करे? यह सवाल है. कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन किस-किस को स्वीकार नहीं है, वे खुलेआम हाथ ऊपर करें, स्पष्ट बोलें. पर्दे के पीछे गुटर-गूं न करें. इससे विवाद और संदेह बढ़ता है.

विपक्षियों की राजनीतिक चाणक्य नीति

लेख में आगे कहा गया है कि इसी तरह यूपीए का आप क्या करेंगे? यह एक बार तो सोनिया गांधी या राहुल गांधी को सामने आकर कहना चाहिए. यूपीए का नेतृत्व कौन करे, यह मौजूदा समय का मुद्दा है. यूपीए नहीं होगा तो दूसरा क्या? इस बहस में समय गंवाया जा रहा है, जिसे विपक्ष का मजबूत गठबंधन चाहिए, उन्हें खुद पहल करके ‘यूपीए’ की मजबूती के लिए प्रयास करना चाहिए, एनडीए या यूपीए गठबंधन कई पार्टियों के एक साथ आने पर उभरे. वर्तमान में जिन्हें दिल्ली की राजनीतिक व्यवस्था सही में नहीं चाहिए उनका यूपीए का सशक्तीकरण ही लक्ष्य होना चाहिए. कांग्रेस से जिनका मतभेद है, वह रखकर भी यूपीए की गाड़ी आगे बढ़ाई जा सकती है. अनेक राज्यों में आज भी कांग्रेस है. गोवा, पूर्वोत्तर राज्यों में तृणमूल ने कांग्रेस को तोड़ा लेकिन इससे केवल तृणमूल का दो-चार सांसदों का बल बढ़ा. ‘आप’ का भी वही है. कांग्रेस को दबाना और खुद ऊपर चढ़ना यही मौजूदा विपक्षियों की राजनीतिक चाणक्य नीति है.