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भारी विरोध के बीच जम्मू प्रशासन का यू-टर्न, बाहरी लोगों को ‘वोटर’ बनाने का फैसला पलटा

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर कवायद चल रही है, हालांकि अभी तारीखों का ऐलान नहीं किया गया है. इस बीच जम्मू जिले की उपायुक्त (DC) अवनी लवासा की ओर से जारी उस फैसले को वापस ले लिया गया है जिसका महबूबा मुफ्ती , गुलाम नबी आजाद और उमर अब्दुल्ला समेत केंद्र शासित प्रदेश के कई बड़े नेताओं ने जमकर विरोध किया था. डीसी ने मंगलवार को आदेश जारी किया था कि जो लोग जम्मू में एक साल से अधिक समय से रह रहे हैं उन्हें आवासीय प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाए जिससे वोटिंग लिस्ट में वो शामिल हो सकें.

हालांकि राजनीतिक दलों की ओर से भारी विरोध के बीच जम्मू की उपायुक्त अवनी लवासा ने अपनी उस अधिसूचना को वापस ले लिया है जिसमें सभी तहसीलदारों को जम्मू में “एक साल से अधिक समय से” रहने वाले लोगों को निवास प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत किया गया था. हालांकि राजनीतिक दलों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया मिलने के बाद आदेश जारी होने के एक दिन बाद ही इसे वापस ले लिया गया.

क्षेत्रीय स्तर पर बांटने की साजिशः महबूबा

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने जम्मू में नए मतदाताओं के पंजीकरण संबंधी निर्वाचन आयोग के आदेश की आलोचना करते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को धार्मिक और क्षेत्रीय स्तर पर बांटने के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कथित प्रयासों को “विफल” किया जाना चाहिए क्योंकि “चाहे वह कश्मीरी हो या डोगरा, हमारी पहचान और अधिकारों की रक्षा तभी संभव होगी जब हम एक साथ आकर कोशिश करेंगे.”

महबूबा ने ट्वीट कर कहा, “चुनाव आयोग ने आदेश में नए मतदाताओं के पंजीकरण को मंजूरी देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू में भारत सरकार औपनिवेशिक सोच के तहत मूल निवासियों को विस्थापित कर नए लोगों को बसाने के लिए कार्रवाई कर रही है.

दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में मुफ्ती ने कहा कि उनकी पार्टी पिछले कई साल से कह रही है कि अनुच्छेद 370 की धारा के कई प्रावधान हटाने के पीछे “बीजेपी की एक अनुचित मंशा” थी. उन्होंने यह आरोप भी लगाया, “उनका मकसद जम्मू-कश्मीर में जनसांख्यिकी अनुपात को बदलना है. यह जम्मू से शुरू होगा जब वहां बड़ी संख्या में बाहर के लोग आएंगे. इससे केवल डोगरा संस्कृति ही नहीं बल्कि व्यापार, रोजगार और संसाधन भी प्रभावित होंगे. बाहर के लोगों को यहां आने की अनुमति देने के बाद से ही अपराध दर कई गुना बढ़ गई है.”

चुनाव से डरी हुई है बीजेपीः NC

उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर के लोगों को यह समझने की जरूरत है कि हमारा भविष्य, तकदीर और मकसद एक है. जिस तरह से करगिल व लेह, लद्दाख के लोगों ने बीजेपी की फूट डालो और राज करो की नीति को विफल कर दिया और अपनी जमीन व रोजगार बचाने के लिए एकजुट हुए, उसी तरह जम्मू-कश्मीर के लोगों को बीजेपी के नापाक इरादों को नाकाम करने के लिए एकजुट होना होगा… क्योंकि बाहर के लोगों को इससे केवल यहां घर ही नहीं मिलेंगे बल्कि उन्हें मताधिकार भी मिलेगा जिसका मतलब जम्मू-कश्मीर के लोगों के वोट का महत्व कम होगा.”

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी नाराजगी जताते हुए कहा कि बीजेपी चुनाव से “डरी” हुई है और उसे पता है कि उसकी बड़ी हार होगी. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने ट्वीट कर कहा, “सरकार जम्मू-कश्मीर में 25 लाख गैर-स्थानीय लोगों को मतदाता बनाने की अपनी योजना पर आगे बढ़ रही है. हम इस कदम का विरोध करना जारी रखेंगे. बीजेपी चुनाव से डरी हुई है और उसे पता है कि उसे बड़ी हार का सामना करना पड़ेगा. जम्मू-कश्मीर के लोगों को चुनाव में इस साजिश का जवाब देना चाहिए.”

पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने भी कहा कि गैर-स्थानीय लोगों के संबंध में जारी नया आदेश “बेहद संदिग्ध” है. पार्टी ने ट्वीट किया, “जम्मू डीसी का एक साल से अधिक समय से जम्मू में रहने वाले गैर-स्थानीय लोगों को आवासीय प्रमाण पत्र जारी करने के लिए राजस्व अधिकारियों को अधिकृत करने का नया आदेश बेहद संदिग्ध है और यह उन्हें मताधिकार देगा. यह मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है.” पिछले दिनों कांग्रेस छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद ने भी कहा कि बाहर के रहने वालों को यहां पर वोट का अधिकार नहीं देना चाहिए.

DC का क्या था फैसला

जम्मू में अधिकारियों ने दो दिन पहले मंगलवार को अधिकृत तहसीलदारों (राजस्व अधिकारियों) को एक साल से अधिक समय से शीतकालीन राजधानी में रहने वाले लोगों को आवासीय प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार दिया था. इस कदम से मतदाता सूची के विशेष सारांश संशोधन में इन लोगों के नाम शामिल हो पाएंगे.

जिला निर्वाचन अधिकारी एवं उपायुक्त (जम्मू) अवनी लवासा ने पाया था कि कुछ पात्र मतदाता आवश्यक दस्तावेज ना होने की वजह से मतदाता के रूप में अपना पंजीकरण नहीं करा पा रहे हैं. इस समस्या पर गंभीरता से गौर करने के बाद उन्होंने यह निर्देश दिया. नए मतदाताओं के पंजीकरण, मतदाता सूची से कुछ लोगों के नाम हटाने, सूची में सुधार करने के लिए 15 सितंबर से केंद्र शासित प्रदेश में मतदाना सूची का विशेष सारांश संशोधन शुरू किया गया था.हालांकि कई राजनीतिक दलों ने मतदाता सूची में ‘गैर-स्थानीय’ लोगों को शामिल करने को लेकर चिंता जाहिर की थी.