भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अमेरिका यात्रा (America visit) पर चीन (China) की बौखलाहट सामने आई है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिका से बढ़ती नजदीकियों पर भारत (India) के लिए चेतावनी जारी की है। ग्लोबल टाइम्स में छपे इस संपादकीय लेख में अमेरिका को मौकापरस्त बताया गया है। साथ ही भारत के लिए कहा गया है वह बेशक अपनी क्षमताएं बढ़ाए, लेकिन अमेरिका के इशारों पर कुछ भी न करे। इस लेख में यह भी कहा गया है कि वैसे तो इस यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका के बीच कई द्विपक्षीय मुद्दों पर सहमति बनी है। लेकिन फिर भी दोनों के बीच कई असहमतियां हैं, जिन पर पर्दा डालने की कोशिश की गई है।
भारत के लिए इशारा
ग्लोबल टाइम्स आगे लिखता है कि वैश्विक शासन के लिए प्रमुख शक्तियों के बीच सहयोग की जरूरत होती है। हम शांति और विकास के उद्देश्य से अमेरिका-भारत सहयोग का स्वागत करते हैं। लेकिन हम चीन को निशाना बनाने वाली किसी भी अमेरिका-भारत योजना का कड़ा विरोध करते हैं। हालांकि हम इसको लेकर चिंतित नहीं हैं क्योंकि हम जानते हैं कि ऐसी योजनाएं दूर तक नहीं जाएंगी। आर्टिकल में आगे लिखा है कि भारत हमेशा की महत्वाकांक्षा हमेशा से ही एक ग्लोबल पॉवर बनने की रही है। अब वह ‘वैश्विक दक्षिण का नेता’ बनने का प्रयास कर रहा है। चीन और भारत पड़ोसी देश हैं और दुनिया के दो सबसे बड़े विकासशील देश हैं। अमेरिका बहुत दूर है और चीन करीब है। तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए, भारत को एक प्रमुख शक्ति के रूप में राजनयिक विचार होना चाहिए। हमारा मानना है कि भारत इसको समझता है।
अमेरिका की अस्थायी और अस्थिर चाल
ग्लोबल टाइम्स के लेख में यह बात भी लिखी है कि अमेरिका अपने हितों के लिए भारत का इस्तेमाल करना चाहता है। इसके लिए वह भारत और चीन के बीच दरार पैदा कर रहा है। आगे कहा गया है कि हालांकि यह रणनीतिक चाल अस्थायी, अस्थिर और भरोसा करने योग्य नहीं है। मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दोनों देशों की तरफ से चीन पर खुलकर टिप्पणी नहीं की गई। अखबार में दावा किया गया है कि इसके बावजूद चीन का असर नजर आ रहा था। इसके मुताबिक अमेरिकी मीडिया चीन को दरकिनार नहीं कर सका और अलग-अलग ढंग से चीन को संबोधित किया। कभी घोस्ट के तौर पर तो एलीफेंट इन द रूम के तौर पर अमेरिकी मीडिया में चीन को संबोधित किया गया।
पिछलग्गू बनने से बचें
चीन के सरकारी अखबार के इस लेख में यह भी कहा गया है कि नई दिल्ली के पास कुछ योजनाएं हैं जिन्हें वह जाहिर नहीं करना चाहता। खासतौर पर चीन और अमेरिका के बीच रणनीतिक खेल में घुसने को लेकर उसके पास प्लान्स हैं। हालांकि, चीन को रोकने में अमेरिका का मोहरा बनना भारत के हितों और सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। न ही यह एक प्रमुख शक्ति के रूप में अपनी गरिमा को सुरक्षित रखने वाला है। आगे लिखा गया है कि कुछ अमेरिकी भारत को उसके मुताबिक काम न करने पर पाला बदलने वाला देश बताते हैं। इसके मुताबिक अमेरिका कितने ही पक्षधर जुटा ले, लेकिन चीन की घेराबंदी करने की उसकी मंशा कभी कामयाब नहीं होगी। साथ ही इमसें कहा गया है कि भारत को इतिहास से सबक लेते हुए कुछ बेहतरीन विकल्पों का चयन करना चाहिए, जो उसे अमेरिका का पिछलग्गू न बनाएं।