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भारत और मोदी सरकार को लेकर चीन में सर्वे…चीनी बोले पसंद है मोदी सरकार

गलवान में हुए संघर्ष के बाद भारतीयों में चीन के खिलाफ आक्रोश है. तमाम भारतीय चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम चला रहे हैं लेकिन चीनी भारत को लेकर क्या सोचते हैं? इसे लेकर चीन की सरकार के मुखपत्र अखबार ग्लोबल टाइम्स ने चाइना इंस्टिट्यूट्स ऑफ कंटेंपरेररी इंटरनेशनल रिलेशन्स के साथ मिलकर एक सर्वे कराया है. इस सर्वे में चीन के 1960 प्रतिभागियों को शामिल किया गया है. सर्वे में मोदी सरकार से लेकर भारतीय सेना, अर्थव्यवस्था, भारत-चीन संबंध समेत तमाम सवाल किए गए हैं.

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सर्वे के नतीजों में 70 फीसदी चीनी मानते हैं कि भारत चीन के प्रति जरूरत से ज्यादा शत्रुता दिखा रहा है और भारत की उकसावे भरी कार्रवाई के खिलाफ अपनी सरकार के पलटवार का पूरी तरह से समर्थन करते हैं.

इस सर्वे में पाया गया कि 51 प्रतिशत लोग मोदी सरकार को पसंद करते हैं, जबकि 90 फीसदी लोग भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को सही ठहराते हैं. मोदी सरकार को पसंद करने वाली खबर ग्लोबल टाइम्स के पन्ने पर थी लेकिन गुरुवार दोपहर बाद वो हिस्सा हटा लिया गया था. हालांकि, ग्लोबल टाइम्स ने सर्वे का हिस्सा ट्वीट किया है, उसमें अब भी मोदी सरकार से जुड़े तथ्य शामिल हैं.

भारत भविष्य में उकसावे वाली अन्य गतिविधियां करता है और चीन के खिलाफ नए सीमा संघर्ष छेड़ता है तो 90 फीसदी प्रतिभागी चीन के सुरक्षात्मक कदम उठाने का समर्थन करते हैं और भारत पर हमला करने से भी सहमत हैं. हालांकि, चीन के 26.4 फीसदी लोग भारत के पड़ोसी देश होने के नाते उसे सबसे पसंदीदा देशों की सूची में चौथे नंबर पर रखते हैं. भारत से ऊपर रूस, पाकिस्तान और जापान हैं. ग्लोबल टाइम्स रिसर्च सेंटर और चाइना इंस्टिट्यूट्स ऑफ कंटेंपरेररी इंटरनेशनल रिलेशन्स (CICIR) ने 17 अगस्त से 20 अगस्त तक सर्वे कराया था. इसमें देश के 10 बड़े शहरों बीजिंग, शंघाई, शियान, वुहान, चेंगडू, झेंगझाउ समेत 10 शहरों में सर्वे कराया गया था.

ऐसा माना जाता है कि चीनी लोगों को भारत और भारतीय संस्कृति के बारे में बहुत अच्छी समझ नहीं है लेकिन सर्वे में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. करीब 56 फीसदी से ज्यादा लोगों ने कहा कि उन्हें भारत की स्पष्ट समझ है और 16 फीसदी से ज्यादा लोगों ने कहा कि वे भारत से अच्छी तरह परिचित हैं. इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज के डायरेक्टर हू शीशेंग ने ग्लोबल टाइम्स से कहा, आधे से ज्यादा लोग भारत को लेकर अपनी समझ को लेकर इसलिए भी आश्वस्त हैं क्योंकि लोगों के बीच आपसी संबंध हैं और वे भारत के सांस्कृतिक उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं.

हालांकि, सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ फूडान यूनिवर्सिटी के डेप्युटी डायरेक्टर लिन मिनवांग ने इस पर अविश्वास जताते हुए कहा, लोग भारत की अपनी समझ को लेकर जितना विश्वास दिखा रहे हैं, वो सच्चाई से बहुत दूर है. असलियत में हमारे देश के लोग अमेरिका, जापान और यूरोप के बारे में भारत से ज्यादा जानते हैं और अधिकतर भारतीय पश्चिम को चीन से ज्यादा बेहतर तरीके से समझते हैं क्योंकि सांस्कृतिक रूप से दोनों देशों के बीच बहुत फर्क है और दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी संवाद बहुत ही कम है. दोनों देशों के लोग पूरी तस्वीर देख पाने में असमर्थ हैं.

जब लोगों से भारत को लेकर अपना पहला इंप्रेशन बताने के लिए कहा गया तो 31 फीसदी ने कहा कि भारतीय महिलाओं का सामाजिक स्तर बहुत नीचा है. उसके बाद 28 फीसदी लोगों ने कहा कि भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है.

चीन के सबसे अच्छे पड़ोसी देशों की सूची में भारत की रैंकिंग दक्षिण कोरिया से ऊपर है जबकि दक्षिण कोरिया के पॉप कल्चर का चीनी यूथ पर काफी प्रभाव है. ग्लोबल टाइम्स ने अपनी टिप्पणी में तंज कसते हुए लिखा है कि चीनी जनता तार्किक रूप से भारत सरकार को मासूम लोगों और संस्कृति से अलग कर सकती है. जबकि भारत सरकार लोगों को उकसा रही है.

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, भारत और चीन के बीच समय-समय पर सीमा विवाद रहा है और बेल्ट ऐंड रोड जैसी परियोजना और पाकिस्तान जैसे मुद्दों पर मतभेद भी रहे हैं लेकिन दंगल और अंधाधुन जैसी बॉलीवुड फिल्में चीन में काफी लोकप्रिय रही हैं. कई चीनी योग करते हैं. सर्वे में पता चला कि 23 फीसदी लोग भारत की पहचान को योग से ही जोड़कर देखते हैं.

सर्वे में ये भी बताया गया है कि 25 फीसदी लोग भारत-चीन के संबंधों को लेकर सकारात्मक सोच रखते हैं. उन्हें लगता है कि लंबे वक्त में भारत-चीन के संबंध सुधरेंगे. हालांकि, 70 फीसदी चीनियों का मानना है कि भारतीय जरूरत से ज्यादा ही चीन के खिलाफ दुश्मनी दिखा रहे हैं.

अधिकतर चीनी ये मानते हैं कि भारत आर्थिक और सैन्य क्षमता में चीन से बहुत पीछे है. 57 फीसदी लोगों का मानना है कि भारत चीन के लिए कोई खतरा नहीं है. 49 फीसदी लोगों का ये भी मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चीन पर बुरी तरह निर्भर है.

सिंगुआ यूनिवर्सिटी में इंडियन स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर शी चाओ ने कहा, भारत 1947 में ब्रिटेन से आजाद हुआ और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना 1949 में बना. उस वक्त भारत अर्थव्यवस्था और मूलभूत ढांचे के मामले में भारत से कहीं ज्यादा आगे था. लेकिन अब चीन मूलभूत ढांचा, शहरीकरण, आधुनिकीकरण, शिक्षा, विज्ञान, तकनीक, सेना और अर्थव्यवस्था सब मामले में भारत से बहुत आगे है. जब चीनी भारत की तरफ देखते हैं तो उनमें श्रेष्ठता का भाव होता है.

चीनी मिलिट्री एक्सपर्ट और टीवी कमेंटेटर सोंग झोंगपिंग ने ग्लोबल टाइम्स से कहा, ये सच है कि चीन की सेना भारत की सेना से ज्यादा मजबूत है और भारत के रक्षा क्षेत्र की इंडस्ट्री में भ्रष्टाचार समेत मामलों को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स भी आती रहती हैं. ऐसे में चीन में कई लोगों को लगता है कि भारतीय आर्मी कहीं नहीं टिकेगी. उन्होंने कहा, हालांकि, भारतीय सेना को लेकर ये समझ सही नहीं है. भारतीय सेना पाकिस्तान के साथ लगातार सैन्य संघर्षों में उलझी रहती है इसलिए उन्हें जंग का अनुभव है और उन्होंने सीमाई इलाके में चीनी आर्मी से ज्यादा सैनिकों की तैनाती कर रखी है इसलिए अगर भविष्य में हमें अपने दुश्मनों को हराना है तो चाहे भारतीय हों या कोई और, हमें उन्हें हल्के में लेने के बजाय उनसे सीखना चाहिए. किसी को गंभीरता से ना लेने से युद्ध में जीत हासिल नहीं हो जाएगी.

बीजिंग के एक मिलिट्री एक्सपर्ट के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि 1962 में भारतीय सेना को हराने की वजह से चीनी जनता में आत्मविश्वास भरा हुआ है. अधिकतर चीनी भारतीय सेना को कमजोर लेकिन मुश्किलें पैदा करने वाला मानते हैं. इसीलिए 70 फीसदी प्रतिभागी मानते हैं कि चीन को भारत के उकसावे के खिलाफ सख्ती से जवाब देना चाहिए और 89 फीसदी सैन्य कार्रवाई का भी समर्थन करते हैं.

सर्वे में प्रतिभागियों से सवाल किया गया कि भारत कितने वक्त में चीन को पीछे छोड़ देगा तो 54 फीसदी ने कहा कि भारत कभी भी चीन को नहीं पिछाड़ पाएगा. वहीं 10.4 फीसदी लोगों ने कहा कि ये 100 साल में ही मुमकिन हो पाएगा. साउथ एशियन स्टडीज के डेप्युटी डायरेक्टर लोउ चुनहाओ ने कहा, भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा और चीन के सस्ते और मिडिल रेंज के प्रोडक्ट पर चीन की निर्भरता को लेकर लोगों की ऐसा राय बनी होगी. चीन कई सालों से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है, साल 2019 में अमेरिका ने चीन की जगह ले ली थी. साल 2019 में भारत का चीन के साथ 50 अरब डॉलर का व्यापार घाटा था और दोनों के बीच कुल व्यापार ही 90 अरब डॉलर का हुआ था, भारत चीन पर दवाइयों से लेकर मशीन तक चीन पर निर्भर है. ये निर्भरता कोविड-19 महामारी के दौरान भी नजर आई जब वैश्विक आपूर्ति बाधित हो गई थी.

भारत में चीनी राजदूत सन वेइडोंग ने जुलाई महीने में एक सेमिनार में बताया था कि साल 2018-2019 में भारतीय बाजार में 92 फीसदी कंप्यूटर्स, 82 फीसदी कलर टीवी सेट्स, 80 फीसदी फाइबर ऑप्टिक्स और 85 फीसदी मोटरसायकल पार्ट्स चीन से आयातित किए गए थे.

जून महीने में लद्दाख में हुए संघर्ष के बाद से भारत ने चीनी कारोबार के हितों पर चोट करनी शुरू कर दी और चीनी सामान को कस्टम क्लीयरेंस में देरी, निवेश के लिए शर्तें कड़ी करना और 300 मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठाए. सर्वे में भारत के इस रुख को लेकर चीनी क्या सोचते हैं? इस सवाल के जवाब में 35 फीसदी ने कहा कि भारत के इन कदमों से बेहद खफा हैं और मानते हैं कि बदले की कार्रवाई जरूरी है. ग्लोबल टाइम्स ने चीनी एक्सपर्ट के हवाले से लिखा कि ये वक्त है कि भारत सरकार शोर मचाना बंद करे और सहयोग के रास्ते पर आए. मोदी सरकार की प्राथमिकता में भारतीय अर्थव्यवस्था ही होनी चाहिए. चीन में एक बड़ी आबादी का ये भी मानना है कि भारत-चीन के तनाव में अमेरिका का दखल भी एक वजह है.