केंद्र सरकार (Central government) देश भर में समान नागरिक संहिता (uniform civil code) लागू करने के प्रयास में है। मगर, कई राजनीतिक दलों (Political parties) और संगठनों की ओर से इसका विरोध किया जा रहा है। 11 करोड़ से अधिक आबादी और करीब 700 जनजातियों वाले एसटी समूहों के बीच भी विविधता है। खासकर तौर पर विवाह, विवाह की उम्र, पंजीकरण, अलगाव और विरासत से जुड़े रीति-रिवाजों व परंपराओं को लेकर। ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लागू करना भाजपा के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते यूसीसी का खुलकर समर्थन किया, जिसके बाद से राजनीतिक और कानूनी हलकों में चर्चा तेज हो गई है। विधि आयोग ने कहा कि उसे बीते 2 सप्ताह में लगभग 19 लाख सुझाव मिले हैं। लोगों की प्रतिक्रिया एकत्र करने की कवायद 13 जुलाई तक चलने वाली है।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय की संस्था ‘छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज’ ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे उन जनजातियों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा जिनके पास अपने समाज पर शासन करने के लिए अपने स्वयं के पारंपरिक नियम हैं। सीएसएएस के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि उनके संगठन को समान नागरिक संहिता पर पूरी तरह से आपत्ति नहीं है, लेकिन केंद्र को इसे लाने से पहले सभी को विश्वास में लेना चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज में समान नागरिक संहिता लागू करना अव्यावहारिक लगता है। नेताम ने कहा कि भारत के विधि आयोग ने देश में समान नागरिक संहिता के लिए सुझाव आमंत्रित किया है और सर्व आदिवासी समाज ने अपने सामाजिक रूढ़ि प्रथा के अनुरूप अपना मत रखा है।
UCC देश में लागू करना आसान नहीं : प्रशांत किशोर
जन सुराज के संयोजक व प्रमुख चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा कि देश की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए UCC को लागू करना आसान नहीं है। किशोर ने कहा कि अनुच्छेद 370 कश्मीर से जुड़ा हुआ एक मामला था जो भारत के एक भू-भाग को प्रभावित करता था। इसी तरह राम मंदिर बन रहा है उससे भी पूरे देश की जनता प्रभावित नहीं हो रही है। क्योंकि राम मंदिर का मामला एक वर्ग की भावना से जुड़ा है। रणनीतिकार ने कहा कि समान नागरिक संहिता ही एक ऐसा मुद्दा है जो देश के एक बड़े जनसंख्या को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति मे यूसीसी कानून देश में लागू करना ज्यादा कठिन है। अगर यह कानून लागू होता है तो इसके परिणाम और कुपरिणाम भी बड़े हो सकते हैं।
UCC सबंधी कदम के पीछे चुनावी एजेंडा: केरल सीएम
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने आरोप लगाया कि भाजपा की ओर से यूसीसी को लेकर उठाए जा रहे कदम के पीछे चुनावी एजेंडा है। उन्होंने केंद्र सरकार से इस संबंध में उठाए गए कदम को वापस लेने की भी अपील की। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता विजयन ने कहा कि केंद्र के कदम को देश की बहु सांस्कृतिक विविधता को मिटाकर केवल बहुमत के सांप्रदायिक एजेंडे ‘एक देश, एक संस्कृति’ को लागू करने की योजना’ के तौर पर देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और विधि आयोग को समान नागरिक संहिता के संदर्भ में उठाए गए कदमों को वापस ले लेना चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करने के बजाय पर्सनल लॉ में भेदभावपूर्ण नियमों में सुधार की कोशिश करनी चाहिए और इस संबंध में सभी पक्षकारों से सहयोग मांगना चाहिए।
… तो खड़ा हो सकता है तूफान: फारूक अब्दुल्ला
नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र सरकार को देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने पर ‘पुनर्विचार’ करना चाहिए। श्रीनगर से सांसद ने कहा कि अगर सरकार समान नागरिक संहिता को लेकर आगे बढ़ती है तो तूफान खड़ा हो सकता है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को देश और इसकी विविधता के बारे में सोचना चाहिए, यहां पर सभी धर्मों के लोग रहते हैं और मुसलमानों के पास अपना शरिया कानून है। केंद्र को इस बारे में बार-बार सोचना चाहिए और अगर वे यूसीसी की दिशा में कदम उठाते हैं तो तूफान खड़ा हो सकता है।
यूसीसी को लेकर AAP में दिखा मतभेद
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने यूसीसी के मुद्दे पर मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि चुनाव नजदीक आने के साथ धर्म के बारे में बात शुरू कर देना भाजपा का एजेंडा है। भाजपा समान नागरिक संहिता को लागू करने को लेकर तर्क दे रही है कि इसकी परिकल्पना संविधान में की गई है। इस तर्क पर सवाल उठाते हुए मान ने कहा कि संविधान यह भी कहता है कि समान नागरिक कानून लागू करें बशर्ते सभी नागरिक सामाजिक रूप से समान हों। उन्होंने सवाल किया, ‘क्या हम सामाजिक रूप से एक समान हैं? नहीं, ऐसे कई लोग हैं जो दबे हुए हैं।’ मान का बयान आम आदमी पार्टी द्वारा समान नागरिक संहिता को ‘सैद्धांतिक रूप से समर्थन’ देने के कुछ दिन बाद आया है। ‘आप’ ने 28 जून को सैद्धांतिक रूप से समान नागरिक संहिता का समर्थन किया था। साथ ही कहा कि इसे सभी हितधारकों से चर्चा करने के बाद आम सहमति से लागू किया जाना चाहिए।