फ्रांस की राजनीति में टीवी पर्सनैलिटी एरिक जेमो (Eric Zemmour) इन दिनों खूब चर्चा में हैं. दक्षिणपंथी विचारधारा के एरिक जेमो ने साल 2022 में फ्रांस का राष्ट्रपति चुनाव (France’s 2022 Presidential Election) लड़ने का ऐलान किया है. इन दिनों उनके बारे में टीवी चैनलों और अखबारों में जितनी प्रमुखता से खबरें छप रही हैं, उतनी किसी दूसरे नेता के बारे में नहीं. जनमत सर्वेक्षणों में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है. इससे अब जेमो को अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में एक मजबूत दावेदार समझा जाने लगा है.
पिछले हफ्ते आए एक सर्वे में एरिक जेमो (Eric Zemmour) ने धुर दक्षिणपंथी नेता मेरी ली पेन को पछाड़ दिया. हैरिस इंटरेक्टिव पॉल में बताया गया कि जेमो को 17 फीसदी मतदाताओं का समर्थन मिल रहा है, जबकि ली पेन को 15 फीसदी का. सर्वे में 24 फीसदी समर्थन के साथ राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron)सबसे ऊपर आए.
इस्लाम को बनाते रहे हैं निशाना
जेमो की खूबी भड़काऊ भाषण देना है. वे अपने भाषणों में इस्लाम को निशाना बनाते हैं. इससे फ्रांस में सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ा है, लेकिन उसका सियासी फायदा जेमो को मिल रहा है. उनके समर्थकों का कहना है कि जेमो ताजा हवा के एक झोंके की तरह आए हैं. वे उन बातों को कह रहे हैं, जिन्हें दूसरे नेता बोलने से बचते हैं. जबकि जेमो को नफरत भड़काने के एक मामले में सजा हो चुकी है.
पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वां ऑलोंद के सलाहकार रह चुके जेसपार्ड गैंतजर ने वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू से कहा- ‘जिस तरह ट्रंप ने अमेरिकी मीडिया को उसकी औकात बताने की कोशिश की थी, वैसा ही जेमो ने फ्रांस मे किया है. वे मीडिया की सुर्खियों में इसलिए हैं, क्योंकि उनके भड़काऊ बयानों को ज्यादा दर्शक या पाठक मिलते हैं.’
ट्रंप और जेमो में कई समानताएं
विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप और जेमो में कई समानताएं हैं. दोनों की जिंदगी लगभग एक जैसी रही है और उनके विचार भी समान हैं. ट्रंप की तरह की जेमो की लोकप्रियता टीवी न्यूज चैनलों पर उनके बारे में लगातार कवरेज से बढ़ी है. दोनों इस बात पर जोर देते हैं कि वे पेशेवर राजनेता नहीं हैं. वे आव्रजकों (इमिग्रेंट्स) के खिलाफ ट्रंप जैसी ही आक्रामक भाषा बोलते हैं.
हाल में जेमो ने मांग की कि फ्रांस में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति के लिए कैथोलिक मत के मुताबिक नाम रखना अनिवार्य कर दिया जाए. उन्होंने कहा कि उससे समाज में समरूपता बढ़ेगी. समाजशास्त्री फिलिपे कॉरकफ ने वेबसाइट पॉलिटिको से कहा- ‘अंतर सिर्फ यह है कि ट्रंप ने बुद्धिजीवियों के खिलाफ मुहिम चला रखी थी, जबकि जेमो खुद को बुद्धिजीवी मानते हैं. फ्रांस में राष्ट्रपति बनने के लिए बौद्धिकता का लबादा ओढ़ना पड़ता है. मैक्रों ने दार्शनिक पॉल रिकॉये के साथ अपनी निकटता को प्रचारित किया था. इसलिए जेमो खुद को बैद्धिक ट्रंप के रूप में पेश करना चाहते हैं.’ पिछले महीने जेमो को टीवी चैनलों पर 11 घंटे का समय मिला, जबकि सोशलिस्ट उम्मीदवार एनी हिदालगो को सिर्फ दो घंटे का वक्त ही मिल पाया. ली पेन को भी दो घंटे से कुछ ही ज्यादा समय दिया गया.