मौजूदा दौर के सबसे दिग्गज कांग्रेसी और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया. सियासत के शिखर पुरुष प्रणब मुखर्जी आजीवन कांग्रेसी विचारधारा के साथ जुड़े रहे लेकिन उनकी लोकप्रियता-स्वीकार्यता दलगत राजनीति से ऊपर थी. साल 2018 में प्रणब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम ‘संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय’ में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करने नागपुर गए थे. उनका ये फैसला कांग्रेस के साथ-साथ राजनीतिक जानकारों को भी हैरान कर गया था. किसी को विश्वास नहीं था कि मुखर्जी अपने पांच दशक लंबे सार्वजनिक जीवन से उलट वैचारिक विरोधी के मंच पर जाने को राजी हो जाएंगे.
पांच दशक से ज्यादा लंबे राजनीतिक जीवन में प्रणब मुखर्जी ‘गांधी-नेहरू’ के विचारों और इंदिरा गांधी के कट्टर समर्थक कांग्रेस नेता रहे. पार्टी पदाधिकारी और सरकार के मंत्री के रूप में उन्होंने कई बार संघ और उसकी विचारधारा की तीखी आलोचना की. कांग्रेस चिंतित थी कि क्या मुखर्जी आरएसएस के बारे में पार्टी के सिद्धांतों से इतर राय रखेंगे.
कांग्रेस की चिंता इस बात को लेकर भी थी कि आरएसएस मुख्यालय पर प्रणब की मौजूदगी से उस संगठन को वैधता मिल सकती है, जिसको कांग्रेस ‘अछूत’ की तरह मानती आई है. कांग्रेस नेता अहमद पटेल से लेकर संदीप दीक्षित और खुद प्रणब दा की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने उनके संघ मुख्यालय जाने पर ऐतराज जताया था.
बेटी शर्मिष्ठा ने भी उठाए थे सवाल
शर्मिष्ठा मुखर्जी ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि उम्मीद है आज की घटना के बाद प्रणब मुखर्जी इस बात को मानेंगे कि बीजेपी किस हद तक गंदा खेल सकती है. उन्होंने लिखा था कि यहां तक कि आरएसएस भी इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि आप अपने भाषण में उनके विचारों का समर्थन करेंगे. भाषण तो भुला दिया जाएगा, लेकिन तस्वीरें बनी रहेंगी और उनको नकली बयानों के साथ प्रसारित किया जाएगा. वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने प्रणब मुखर्जी के संघ के समारोह में जाने को लेकर कहा था कि ‘मैंने प्रणब दा से इसकी उम्मीद नहीं की थी!’
भाषण ने दूर की कांग्रेस की चिंता
हालांकि, मुखर्जी का उस कार्यक्रम में संबोधन कांग्रेस की चिंताओं को दूर कर गया. इतना ही नहीं पार्टी ने यह भी कहा कि पूर्व राष्ट्रपति का संबोधन आरएसएस को सबक था और मुखर्जी ने संघ को आईना दिखाया है तथा मोदी सरकार को भी राजधर्म का पाठ पढ़ाया है.
मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम में कहा था कि असहिष्णुता से भारत की राष्ट्रीय पहचान कमजोर होगी. हमारा राष्ट्रवाद सार्वभौमवाद, सह-अस्तित्व और सम्मिलन से उत्पन्न होता है. प्रणब दा ने राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों का भी हवाला दिया था. साथ ही स्वतंत्र भारत के एकीकरण के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों का भी उल्लेख किया. मुखर्जी ने कहा था कि भारत में हम सहिष्णुता से अपनी शक्ति अर्जित करते हैं और अपने बहुलतावाद का सम्मान करते हैं. हम अपनी विविधता पर गर्व करते हैं. इस दौरान उन्होंने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशप्रेम को लेकर अपने विचारों को साझा किया.
राष्ट्रवाद पर कही थी ये बात
पूर्व राष्ट्रपति ने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलत तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा राष्ट्रवाद ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ जैसे विचारों पर आधारित है. उन्होंने कहा था कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का सम्मिलन हुआ है. मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेंद्र नाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा था कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है. हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होता है. ‘भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुता में बसती है.’
प्रणब मुखर्जी ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा था कि उन्होंने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था.पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा. साथ ही कहा कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति, सौहार्द और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा. हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा.
नागपुर में संघ मुख्यालय में प्रणब दा का संबोधन खत्म होने के बाद कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था, ‘डॉ.प्रणब मुखर्जी के संघ मुख्यालय दौरे ने व्यापक चर्चाओं और चिंताओं को जन्म दिया था. लेकिन आज प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस को उसके मुख्यालय में ही आईना दिखा दिया है. उन्होंने बहुलता, सहिष्णुता और बहुसंस्कृतिवाद की बात की.’
सुरजेवाला ने कहा था, ‘प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस को भारत का इतिहास याद दिलाया है. उन्होंने आरएसएस को पढ़ाया कि भारत की सुंदरता अलग-अलग विचारों, धर्मों और भाषाओं के प्रति सहिष्णुता में निहित है. क्या आरएसएस सुनने के लिए तैयार है?’ सुरजेवाला ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी सरकार को भी राजधर्म की याद दिलाई.