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‘निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही…’, राहुल गांधी ने बताया हिंदू होने का अर्थ

कांग्रेस नेता और वायनाड सांसद राहुल गांधी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले लगातार जनसंपर्क में जुटे हुए हैं. वह कभी खेतों में धान की रोपाई कर रहे किसानों के बीच पहुंच जाते हैं, तो कभी ट्रक चालकों के साथ यात्रा करके उनकी परेशानियों को समझने की कोशिश करते हैं. उन्होंने हाल ही में ट्रेन की जनरल बोगी में सफर भी किया. दिल्ली के करोल बाग में मोटर मैकेनिकों से मिले, तो कीर्तिनगर में कारपेंटर्स के बीच पहुंचे.

अब उन्होंने अपने एक्स अकाउंट से एक आर्टिकल शेयर किया है, जो द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित भी हुआ है. राहुल गांधी के इस लेख का शीर्षक है ‘सत्यम, शिवम, सुंदरम’. इसमें उन्होंने हिंदू संस्कृति पर अपने विचार लिखे हैं. कांग्रेस नेता अपने आर्टिकल की शुरुआत करते हुए लिखते हैं, ‘कल्पना कीजिए, जिंदगी प्रेम और उल्लास का, भूख और भय का एक महासागर है और हम सब उसमें तैर रहे हैं. इसकी खूबसूरत और भयावह, शक्तिशाली और सतत परिवर्तनशील लहरों के बीचोंबीच हम जीने का प्रयत्न करते हैं. इस महासागर में जहां प्रेम, उल्लास और अथाह आनंद है- वहीं भय भी है. मृत्यु का भय, भूख का भय, दुखों का भय, लाभ-हानि का भय, भीड़ में खो जाने और असफल रह जाने का भय. इस महासागर में सामूहिक और निरंतर यात्रा का नाम जीवन है जिसकी भयावह गहराइयों में हम सब तैरते हैं. भयावह इसलिए, क्योंकि इस महासागर से आज तक न तो कोई बच पाया है, न ही बच पाएगा.’

राहुल गांधी अपने इस लेख में हिंदू को परिभाषित करते हुए लिखते हैं, ‘जिस व्यक्ति में अपने भय की तह में जाकर इस महासागर को सत्यनिष्ठा से देखने का साहस है- हिंदू वही है. यह कहना कि हिंदू धर्म केवल कुछ सांस्कृतिक मान्यताओं तक सीमित है उसका अल्प पाठ होगा. किसी राष्ट्र या भूभाग-विशेष से बांधना भी उसकी अवमानना है. भय के साथ अपने आत्म के सम्बंध को समझने के लिए मनुष्यता द्वारा खोजी गई एक पद्धति है हिन्दू धर्म. यह सत्य को अंगीकार करने का एक मार्ग है. यह मार्ग किसी एक का नहीं है, मगर यह हर उस व्यक्ति के लिए सुलभ है, जो इस पर चलना चाहता है.’

राहुल गांधी लिखते हैं, ‘एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है. क्योंकि वह जानता है कि जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं. अस्तित्व के लिए संघर्षरत सभी प्राणियों की रक्षा वह आगे बढ़कर करता है. सबसे निर्बल चिंताओं और बेआवाज चीखों के प्रति भी वह सचेत रहता है. निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है. सत्य और अहिंसा की शक्ति से संसार की सबसे असहाय पुकारों को सुनना और उनका समाधान ढूंढना ही उसका धर्म है. एक हिंदू में अपने भय को गहनता में देखने और उसे स्वीकार करने का साहस होता है. जीवन की यात्रा में वह भयरूपी शत्रु को मित्र में बदलना सीखता है. भय उस पर कभी हावी नहीं हो पाता, वरन घनिष्ठ सखा बनकर उसे आगे की राह दिखाता है. एक हिंदू का आत्म इतना कमज़ोर नहीं होता कि वह अपने भय के वश में आकर किसी क़िस्म के क्रोध, घृणा या प्रतिहिंसा का माध्यम बन जाए.’

वायनाड सांसद ने अपने लेख में लिखा है, ‘हिंदू जानता है कि संसार की समस्त ज्ञानराशि सामूहिक है और सब लोगों की इच्छाशक्ति व प्रयास से उपजी है. यह सिर्फ उस अकेले की संपत्ति नहीं है. सब कुछ सबका है. वह जानता है कि कुछ भी स्थायी नहीं और संसार-रूपी महासागर की इन धाराओं में जीवन लगातार परिवर्तनशील है. ज्ञान के प्रति उत्कट जिज्ञासा की भावना से संचालित हिंदू का अंतःकरण सदैव खुला रहता है. वह विनम्र होता है और इस भवसागर में विचर रहे किसी भी व्यक्ति से सुनने – सीखने को प्रस्तुत. हिंदू सभी प्राणियों से प्रेम करता है. वह जानता है कि इस महासागर में तैरने के सबके अपने-अपने रास्ते और तरीके हैं. सबको अपनी राह पर चलने का अधिकार है. वह सभी रास्तों से प्रेम करता है, सबका आदर करता है और उनकी उपस्थिति को बिल्कुल अपना मानकर स्वीकार करता है.’