रिपोर्ट- गौरव सिंघल, विशेष संवाददाता,दैनिक संवाद,सहारनपुर मंडल,उप्र:।।
सहारनपुर-यूपी (दैनिक संवाद न्यूज)। गन्ना पट्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 18 वीं लोकसभा के नतीजों ने जाट राजनीति और जाट नेतृत्व की नई इबारत लिखी है। सहारनपुर मंडल में भाजपा कोई भी सीट नहीं जीत पाई है। सपा समर्थित इमरान मसूद ने सहारनपुर लोकसभा सीट पर पहली बार अपनी जीत का परचम लहराया है। इमरान मसूद ने भाजपा उम्मीदवार राघव लखनपाल शर्मा को आसानी से पराजित कर दिया। दोनों के बीच यह लगातार तीसरा मुकाबला था। राघव लखनपाल शर्मा ने 2014 में इमरान मसूद को हराकर जरूरत जीत का स्वाद चखा था। लेकिन 2019 में वह बसपा गठबंधन उम्मीदवार फजर्लुरहमान कुरैशी से हार गए थे और इस बार इंडिया गठबंधन की ओर से पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतरे इमरान मसूद से हार गए। भाजपा ने सहारनपुर मंडल की कैराना लोकसभा सीट भी गंवा दी है। उसके उम्मीदवार और सांसद प्रदीप चौधरी को कांग्रेस समर्थित सपा उम्मीदवार इकरा हसन ने रोचक मुकाबले में हार का स्वाद चखाया। पहली बार लोकसभा चुनाव में उतरी और लंदन से शिक्षा प्राप्त 27 वर्षीय इकरा हसन को शुरू से ही जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। इकरा हसन की मां तब्बसुम हसन और पिता मुनव्वर हसन और बाबा अख्तर हसन भी सांसद रह चुके हैं।
मुजफ्फरनगर के प्रतिष्ठापूर्ण मुकाबले में केंद्रीय राज्यमंत्री डा. संजीव बालियान को सपा उम्मीदवार और प्रमुख जाट नेता हरेंद्र मलिक के हाथों करीबी मुकाबले में हार का मुंह देखना पड़ा। संजीव बालियान की पराजय से भाजपा को तगड़ा झटका लगा है। पिछले दो चुनाव जीतकर संजीव बालियान ने जाटों के बड़े नेता की पहचान बना ली थी। लेकिन चुनावी रणनीति में माहिर हरेंद्र मलिक के सामने बालियान की एक ना चली। बालियान को भाजपाईयों की नाराजगी का खामियाजा भी भुगतना पड़ा। दिलचस्प बात यह है कि चुनाव से ऐन पहले भाजपा और रालोद का गठबंधन अपने आपमें सफल रहा। बागपत से उसके उम्मीदवार राजकुमार सांगवान और बिजनौर से युवा राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चंदन चौहान ने कड़े मुकाबले में सपा उम्मीदवार दीपक सैनी को पराजित कर पहली बार संसद में प्रवेश लिया। चंदन चौहान भी बड़े राजनीतिक परिवार से हैं। उनके पिता संजय चौहान सांसद और विधायक रह चुके हैं और बाबा चौधरी नारायण सिंह उप मुख्यमंत्री रहे। जयंत चौधरी की जीत का स्कोर शत-प्रतिशत रहा। उन्होंने गठबंधन को मिली दोनों सीटें जीतकर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और गठबंधन में शामिल कांग्रेस की लहर में आने से बखूबी बचाने का काम किया। समीक्षकों का मानना है कि यदि रालोद को भाजपा ज्यादा सीटें देती तो भाजपा को बड़ा फायदा हो सकता था।
ध्यान रहे रालोद ने इंडिया गठबंधन में रहते हुए सात सीटें प्राप्त की थी। लेकिन अंतिम समय में भाजपा के साथ जाने के दौरान उन्हें दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा। अब जयंत चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के निर्विवाद और रसूखदार नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। उन्होंने खुद इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था और अपनी परंपरागत बागपत सीट पर एक साधारण पृष्ठभूमि के अपने कार्यकर्त्ता राजकुमार सांगवान को आगे किया था। इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रतिष्ठित गुर्जर नेता और मीरापुर से रालोद विधायक को उन्होंने बिजनौर में उतारा था। जयंत चौधरी के सभी प्रयोग सफल रहे हैं। जयंत चौधरी भाजपा को कैराना, मुजफ्फरनगर, अमरोहा आदि सीटें भले ही ना जिता पाए हों लेकिन उन्होंने आज की नई राजनीति और नए भारत में खुद को एक ताकत के रूप में जरूर खड़ा किया है।