कोरोना मरीज को सही इलाज सही वक्त पर मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है. लेकिन जमीनी हकीकत इससे जुदा है. आप सही वक्त पर अस्पताल तो पहुंच जाएंगे लेकिन, वहां आपका इलाज सही दवा से हो रहा है या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है. ऐसा इसलिए, क्योंकि बाजार में नकली दवाओं का मायाजाल बिछा हुआ है. नकली दवा के सौदागर धड़ल्ले से अपना कारोबार चला रहे हैं. इसका जीता-जागता उदाहरण मध्यप्रदेश के जबलपुर में सामने आया है. यहां केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के भाई व गोटेगांव से बीजेपी विधायक जालम सिंह पटेल खुद नकली रेमडेसिविर का शिकार हुए हैं.
जालम सिंह पटेल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखकर यह दावा किया है. उन्होंने पत्र में लिखा है कि दमोह उपचुनाव में काम करने के बाद वो संक्रमित हुए. उन्हें जबलपुर में इलाज के दौरान 6 नकली इंजेक्शन लगाए गए. जिस हॉस्पिटल में उन्हें भर्ती किया गया था, वहां उन्हें कुल 12 इंजेक्शन लगे, इसमें 6 नकली थे. विधायक ने कहा कि नकली इंजेक्शन से कई मरीजों की मौत हुई है. इसमें राजनीतिक व्यक्ति, सिटी हॉस्पिटल जबलपुर का प्रबंधक और सरकारी अधिकारी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें चार परसेंट फेफड़ों का इंफेक्शन था. इंजेक्शन लगने के बाद यह 15-16 परसेंट हो गया. उनके साले के साथ भी ऐसा ही हुआ. जालम सिंह ने कहा कि इस वजह से उनके रिश्तेदार की मौत हो गई. हालांकि गिरफ्तार आरोपियों पर अबतक हत्या का मामला दर्ज नहीं हुआ है.
बता दें कि जबलपुर में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन मामले में पुलिस ने विश्व हिंदू परिषद नेता और सिटी अस्पताल के संचालक सरबजीत मोखा समेत 3 पर मुकदमा दर्ज किया है. इन आरोपियों पर रासुका भी लगाई गई है. कांग्रेस ने इसे कागजी कार्रवाई करार देते हुए सवाल उठाए ही हैं. जालम सिंह पटेल भी इस कार्रवाई को नाकाफी मानते हैं. कार्रवाई पर पूछे गए सवाल के जवाब में जालम सिंह पटेल ने कहा कि मुझे जानकारी हुई कि सिटी अस्पताल के संचालक पर तीन महीने का एनएसए लगा है जबकि 1 साल का नियम है, इसने कई लोगों की जान ली है. वहीं, चिकित्सा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि इस तरह की गतिविधि में शामिल किसी भी व्यक्ति को नहीं छोड़ेंगे. रेमडेसिविर ज्यादा मूल्य में बेची जा रही है तो कार्रवाई करेंगे, हमारी सरकार कटिबद्ध है.