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तलाक की बढ़ती प्रवृत्ति के बावजूद भारतीय समाज में विवाह जिंदगीभर के लिए अमूल्य रिश्ताः SC

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक (divorce) की राहत देने के लिए ‘विवाह की असाध्य टूट’ (‘Irreparable breakdown of marriage’) के फॉर्मूले को हमेशा सामान्य रूप में स्वीकार करना वांछनीय नहीं है। शीर्ष कोर्ट ने कहा, तलाक के मामले दायर करने की बढ़ती प्रवृत्ति के बावजूद भारतीय समाज में विवाह (marriage) को जीवन भर के लिए पति-पत्नी (Husband and wife for life) के बीच पवित्र, आध्यात्मिक और अमूल्य रिश्ता (Sacred, spiritual and priceless relationship) माना जाता है।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने यह मानते हुए कि विवाह न सिर्फ कानून के अक्षरों से, बल्कि सामाजिक मानदंडों से भी शासित होता है, क्रूरता, परित्याग या विवाह की असाध्य टूट के आधार पर 89 वर्षीय सेवानिवृत्त विंग कमांडर की तलाक की याचिका खारिज कर दी। याचिका में दावा था, दोनों पक्ष कई वर्षों से अलग रह रहे हैं, पर पत्नी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा-वह ‘तलाकशुदा’ होने के कलंक के साथ मरना नहीं चाहती।

विवाह से निकलते हैं कई रिश्ते
पीठ ने कहा, इस तथ्य से अनजान नहीं होना चाहिए कि विवाह संस्था महत्वपूर्ण है। कई रिश्ते वैवाहिक संबंधों से पैदा होते और पनपते हैं। इसलिए तलाक के लिए स्ट्रेट-जैकेट फॉर्मूले के रूप में ‘विवाह की असाध्य टूट’ के फॉर्मूले को मंजूर करना वांछनीय नहीं होगा। पत्नी की भावनाओं व उनके सम्मान का ख्याल रखते हुए पुरुष के पक्ष में विवेक का प्रयोग, पत्नी के साथ अन्याय होगा।

जानें क्या था मामला
सेवानिवृत्त विंग कमांडर ने पहली बार 1996 में तलाक की याचिका दायर की थी। उन्होंने दावा किया था, 1984 में मद्रास तबादला होने के बाद से पत्नी ने उनकी देखभाल नहीं की। छवि खराब करने के लिए उसने अधिकारियों को शिकायतें भी कीं। 82 वर्षीय पत्नी ने दावा किया, वह 1963 में शादी के बाद से अपने तीन बच्चों की देखभाल कर रही है। अब भी पति की देखभाल के लिए तैयार और इच्छुक है। वह जीवन के इस पड़ाव पर उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहती।