बिहार में पकड़ुआ विवाह (caught marriage in bihar) से जुड़े एक केस में पटना हाईकोर्ट ने अहम फैसला दिया है। उच्च न्यायालय (high Court) ने कहा है कि किसी महिला के माथे पर जबरदस्ती सिन्दूर लगाना या लगवाना हिंदू कानून के तहत विवाह नहीं है। एक हिंदू विवाह तब तक वैध नहीं है जब तक कि वही कृत्य स्वैच्छिक न हो और ‘सप्तपदी’ (पवित्र अग्नि के चारों ओर दूल्हा और दुल्हन द्वारा उठाए गए सात कदम) की रस्म के साथ न हो।
बता दें कि हिंदू विवाह सिस्टम में अगर किसी लड़की की मांग में सिंदूर हो तो उसे शादीशुदा माना जाता है. लेकिन अगर किसी लड़की की मांग में जबरन सिंदूर भरा गया हो तो क्या वह शादी वैध है. इस विषय में पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्णय में कहा कि जी नहीं जबरन आप सिंदूर नहीं भर सकते. अगर ऐसा कोई करता है तो वो शादी वैध नहीं मानी जा सकती. दो जजों की बेंच ने कहा कि हिंदू विवाह पद्धति में सप्तपदी का विधान है, वर और वधू दोनों को अग्नि के सामने फेरा लेना होता है और उसके बाद सिंदूरदान की प्रक्रिया पूरी होती है.
जस्टिस पी बी बजंथरी और अरुन कुमार झा ने कहा कि सिंदूर दान की प्रक्रिया स्वैच्छिक है. यानी कि वर को अपनी मर्जी से सिंदूर भरना चाहिए.पटना हाईकोर्ट ने माना कि निचली अदालत के फैसले में कई तरह की खामियां थीं. इसके साथ ही बेंच ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि जिस पंडित की मौजूदगी में शादी हुई उसे सप्तपदी के बारे में जानकारी नहीं थी. यही नहीं वो यह भी नहीं बता सका कि किस जगह पर उसने विधि विधान से शादी कराई थी.
क्या है मामला
अब यहां बताते हैं कि मामला क्या है- एक रिपोर्ट के मुताबिक 10 नवंबर को पटना हाईकोर्ट ने पीड़ित रविकांत के समर्थन में फैसला सुनाया. याची रविकांत (सेना में तैनात) ने कहा था कि 10 साल पहले लखीसराय जिले में उसका अपहरण किया गया और बंदूक की नोक पर जबरन शादी करा दी गई. याची की दलील पर हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह एक्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि शादी तभी पूर्ण मानी जाएगी जब सप्तपदी हो. यानी कि अगर सप्तपदी को नजरंदाज किया गया है तो शादी पूर्ण नहीं मानी जाएगी.
30 जून 2013 को याची और उसके चाचा को कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया था. अपहरण उस वक्त किया गया जब वो लखीसराय के एक मंदिर में पूजा अर्चना के लिए गए थे. बाद में याची की जबरदस्ती शादी करा दी गई. रविकांत के चाचा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन उनकी पुलिस वालों ने नहीं सुनी.
पुलिस की अनदेखी के बाद रविकांत ने लखीसराय की सीजेएम कोर्ट में शिकायत की. इसके साथ ही पारिवारिक अदालत में भी अर्जी लगाई लेकिन 27 जनवरी 2020 को अपील खारिज हो गई. निचली अदालत से राहत नहीं मिलने पर उन्होंने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.