चीन, रूस और क्यूबा मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के सदस्य चुने गए हैं. हालांकि, इन देशों के मानवाधिकारों का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है और इसी वजह से ऐक्टिविस्ट इनकी सदस्यता का विरोध कर रहे हैं. वहीं, सऊदी अरब को यूएनएचआरसी की सदस्यता नहीं मिल सकी. मंगलवार को आए नतीजे से ये भी साबित होता है कि पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सऊदी की छवि कितनी खराब हुई है.
रूस और क्यूबा निर्विरोध चुने गए जबकि चीन और सऊदी अरब के बीच कड़ा मुकाबला हुआ. संयुक्त राष्ट्र महासभा हर साल मानवाधिकार परिषद के एक तिहाई सदस्यों को बदलने के लिए चुनाव कराती है. परिषद के सदस्यों का कार्यकाल तीन साल का होता है, जिन्हें अधिकतम लगातार दो बार चुना जा सकता है.
यूएनएचआरसी में उम्मीदवारों को भौगोलिक कोटे के आधार पर गुप्त मतदान द्वारा चुना जाता है ताकि हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके. एशिया-प्रशांत क्षेत्र से इस बार चार देश चुने जाने थे, जिसके लिए पांच देशों ने अपनी दावेदारी पेश की थी जिसमें सऊदी अरब भी शामिल था. 193 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा लिया जिसमें पाकिस्तान को 169 मत मिले, उजबेकिस्तान को 164, नेपाल को 150, चीन को 139 और सऊदी अरब को सिर्फ 90 वोट मिले. नए सदस्य 1 जनवरी 2021 से अपना कार्यकाल शुरू करेंगे.
ह्यूमन राइट्स वॉच और अन्य अधिकार संगठनों ने सऊदी अरब की उम्मीदवारी का कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि सऊदी मानवाधिकार के कार्यकर्ताओं, विरोधियों और महिला अधिकार के लिए आवाज उठाने वाले कार्यकर्ताओं को निशाना बनाता है. जमाल खशोजी की हत्या में सऊदी की भूमिका संदिग्ध रही है और इसीलिए मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर उसकी तीखी आलोचना होती रही है.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने चीन और सऊदी अरब को दुनिया की दो सबसे ज्यादा उत्पीड़न करने वाली सरकार करार दिया था. न्यू यॉर्क आधारित समूह ने सीरिया में युद्ध अपराधों को लेकर रूस की उम्मीदवारी का भी विरोध किया था. विश्लेषकों का कहना है कि मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में इतने खराब रिकॉर्ड वाले देशों का चुना जाना यूएनएचआरसी के सिस्टम में बड़े सुधारों की जरूरत को दिखाता है.
मानवाधिकारों की सुरक्षा के मामले में चीन की सरकार पर भी सवाल उठते रहे हैं. शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुस्लिमों और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों के साथ चीन की ज्यादतियां अक्सर सामने आती रहती हैं.
बता दें कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से साल 2018 में बाहर हो गया था. अमेरिका का कहना है कि ये संगठन इजरायल के खिलाफ पक्षपात करता है और इस संगठन में तमाम सुधारों की जरूरत है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने मंगलवार को कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक बार फिर से सबसे खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले देशों को चुना है.