पंजाब के अमृतसर (Chandigarh) स्थित स्वर्ण मंदिर में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ की वर्षगांठ मनाई जा रही है। साल 1984 में हुए इस ऑपरेशन के तार सीधे तौर पर तब दमदमी टकसाल के प्रमुख रहे जरनैल सिंह भिंडरावाले से जुड़ते हैं और भिंडरावाले (Bhindranwale) का कनेक्शन भारत में खालिस्तानी मूवमेंट से है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परेशानी से निपटने के लिए ब्लू स्टार का सहारा लिया, लेकिन दावे ये भी किए जाते रहे हैं कि भिंडरावाले कभी भी खालिस्तान चाहता ही नहीं था।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भिंडरावाले के बड़े भाई हरजीत सिंह रोडे दावा करते हैं कि भिंडरावाले ने कभी खालिस्तान की मांग नहीं उठाई। रोडे ने कहा, ‘उन्होंने कभी भी खालिस्तान की मांग नहीं की। लेकिन उन्होंने कहा था कि अगर सरकार सिख समुदाय को तोहफे में खालिस्तान दे दे, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है।’ रिपोर्ट के अनुसार, भिंडरावाले का मकसद 1973 के आनंदपुर साहिब के प्रस्ताव को लागू कराना था।
रोडे ने कहा ‘रक्षा, विदेश मामले, संचार, रलवे और मुद्रा को छोड़कर भिंडरावाले सभी विषयों को पंजाब के अधिकार क्षेत्र में चाहता था।’ रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाबी भाषी क्षेत्र (शाहबाद, करनाल, सिरसा, टोहाना उप तहसील और रतिया ब्लॉक, कालका, अंबाला, पिंजौर, ऊना तहसील, नालागढ़, गंगानगर) और कई पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब के अंदर आने चाहिए। यह आनंदपुर साहिब में शामिल है।
रोडे ने कहा, ‘भिंडरावाले का सरकार से कहना था कि क्या वे सिख को फर्स्ट क्लास सिटीजन समझेंगे और अगर हां, तो उन्हें ही उनका भविष्य तय करने दो।’ उन्होंने कहा कि भिंडरावाले पंजाब के लिए स्वायत्तता चाहते थे, खालिस्तान नहीं।
रिपोर्ट के मुताबिक, भिंडरावाले के एक अन्य भाई कैप्टन हरचरण सिंह रोडे भी दावा करते हैं कि उनके भाई को गलत समझा गया। खास बात है कि हरचरण सिंह रोडे ने ही हरमिंदर साहिब में भिंडरावाले के शव की पहचान की थी। उन्होंने भी कहा कि भिंडरावाले आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का समर्थन करता था। कहा जाता है कि कई बड़े नेताओं के सामने भी भिंडरावाले अपनी आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को लागू करने की मांग को रख चुका था।