केंद्र सरकार (Central Government) और सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) के बीच तकरार और बढ़ गई है (The Tussle has Increased Further) । सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति से संबंधित (Relating to the Appointment of Judges in the High Court) खुफिया एजेंसी (Intelligence Agency) रॉ और आईबी की रिपोर्ट (RAW and IB Reports) भी सार्वजनिक कर दी है (Were also Made Public), जो अपने आप में अप्रत्याशित है (Which in itself is Unpredictable) । सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान में विस्तार से खुलासा किया है कि कॉलेजियम द्वारा हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों को केंद्र सरकार ने क्यों ठुकरा दिया ?
बार और बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक कॉलेजियम ने दिल्ली हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए एडवोकेट सौरभ कृपाल का नाम भेजा था। केंद्र सरकार ने उनके नाम को रिजेक्ट कर दिया और तर्क दिया है कि वो समलैंगिक हैं और पक्षपाती हो सकते हैं। उनका पार्टनर विदेशी है । कॉलेजियम ने इसका जवाब देते हुए कहा है कि संविधान यौन स्वतंत्रता की गारंटी देता है। सौरभ कृपाल, की नियुक्ति से दिल्ली हाईकोर्ट में डाइवर्सिटी आएगी। विदेशी पार्टनर होना, अयोग्यता का आधार नहीं हो सकता है।
इसी तरह कॉलेजियम ने मुंबई हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए सोमशेखर सुंदरेसन का नाम भेजा था। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का पक्ष है कि सुंदरेसन ने सोशल मीडिया पर पेंडिंग केसेस पर अपनी राय रखी थी। कॉलेजियम ने इसका जवाब देते हुए कहा है कि किसी मसले पर किसी अभ्यर्थी की राय उसके डिसक्वालीफिकेशन का कारण नहीं बन सकती है।
कॉलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट में नियुक्ति के लिए आर. जॉन सत्यन का नाम सुझाया। सरकार का तर्क है कि सत्यन ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पीएम नरेंद्र मोदी की आलोचना से जुड़ा एक लेख शेयर किया था। साथ ही एक मेडिकल स्टूडेंट के सुसाइड से जुड़ा लेख भी साझा किया था। कॉलेजियम ने सरकार के इस तर्क का जवाब देते हुए कहा है कि किसी लेख को साझा करने से किसी अभ्यर्थी की योग्यता, गरिमा और कैरेक्टर पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
कॉलेजियम ने केंद्रीय कानून मंत्रालय के न्याय विभाग पर भी तीखी आपत्ति जताई है। दरअसल, कॉलेजियम ने कलकत्ता हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए एडवोकेट अमितेश बनर्जी और शाक्य सेन का नाम सुझाया था। जो जुलाई 2019 से ही सरकार के पास पेंडिंग है।
कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों को जिस तरीके से केंद्र सरकार ने ठुकराया और कॉलेजियम ने जैसे प्रतिक्रिया दी है, उसे अप्रत्याशित बताया जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने 4 दिनों तक विचार विमर्श और मंथन के बाद केंद्र सरकार की आपत्तियों का विस्तार से जवाब देने का फैसला लिया। तय किया कि पूरी बात सार्वजनिक की जाए, जिसमें रॉ और आईबी की रिपोर्ट का भी हवाला दिया जाए और उसपर कॉलेजियम का क्या स्टैंड है, यह भी बताया जाए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चंद्रचूड़ ने बयान सार्वजनिक करने से पहले इसपर कॉलेजियम के अन्य सदस्यों से गहरी मंत्रणा की।