सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को केंद्र के विरोध के बावजूद (Despite Centre Protest) पूर्व प्रधानमंत्री (Former PM) राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की हत्या के दोषियों (Assassination Convict) में से एक ए. जी. पेरासिलवन (AG Perasilvan) को जमानत दे दी (Grants Bail) । अदालत ने यह देखते हुए जमानत दी है कि वह पहले ही 30 साल से अधिक समय तक सलाखों के पीछे बिता चुका है।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने कहा, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता ने 30 साल से अधिक समय तक जेल में बिताया है, वह अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले) के जोरदार विरोध के बावजूद जमानत पर रिहा होने का हकदार है। अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया जाता है।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि पेरासिलवन की दया याचिका पर निर्णय में देरी हुई है और वह पहले ही 30 साल से अधिक कारावास की सजा काट चुका है। पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज से पूछा कि राष्ट्रपति को क्षमादान याचिका भेजने में राज्यपाल की क्या भूमिका है? क्या राज्य मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णय में राज्यपाल के पास कोई स्वतंत्र विवेक है? पीठ ने कहा कि कारावास के दौरान उसके आचरण और उसकी शैक्षणिक योग्यता के संबंध में रिकॉर्ड में पर्याप्त सामग्री है।
पिछले साल फरवरी में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने नोट किया है कि राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों में से एक ए. जी. पेरासिलवन की क्षमा याचिका से निपटने के लिए भारत के राष्ट्रपति सक्षम प्राधिकारी हैं।
2014 में, शीर्ष अदालत ने उसकी दया याचिकाओं पर फैसला करने में देरी के आधार पर उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। पेरासिलवन को बम बनाने में सहायता करने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी, जो राजीव गांधी की हत्या में शामिल पाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर तमिलनाडु के राज्यपाल के पास पेरासिलवन की क्षमा याचिका के दो साल से अधिक समय तक लंबित रहने पर अपना असंतोष व्यक्त किया था। पेरासिलवन ने समय से पहले रिहाई और अपनी सजा को माफ करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। उसने अपनी रिहाई के लिए 2018 में राज्य सरकार द्वारा की गई सिफारिश का भी हवाला दिया था।