दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक (Karnataka) एक बार फिर विधानसभा चुनाव (assembly elections) के दौर से गुजरने के लिए तैयार है। इस बार भी सीधा सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) और कांग्रेस (Congress) के बीच देखा जा रहा है। हालांकि, 2018 में चुनाव के बाद स्थिति यह नहीं थी। तब राज्य में कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर की गठबंधन सरकार थी, लेकिन बाद में भाजपा ने वापसी की। अब एक बार फिर भाजपा 2019 जैसा खेला करने के संकेत दे रही है।
साल 2019 में बगावत के बाद जेडीएस और कांग्रेस की सरकार गिर गई थी। उस दौरान सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों की बगावत का सूत्रधार रमेश जरकिहोली को माना गया था। जरकिहोली राज्य की मौजूदा बसवराज बोम्मई सरकार में मंत्री रह चुके हैं और गोकक से विधायक हैं। वह कई विवादित कारणों से भी मीडिया की सुर्खियों में बने रहते हैं।
क्या है नया दावा?
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने दावा किया है, ‘अगर पार्टी को बहुमत नहीं मिलती है, तो भी भाजपा कर्नाटक में सरकार बनाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे भरोसा है कि भाजपा बहुमत से जीतेगी। अगर ऐसा नहीं होता है, तो भी भाजपा सरकार बनाएगी। सरकार बनाने के लिए हमें जो भी करना पड़ेगा, हम करेंगे।’
विपक्ष में चिंता
चित्तापुर से कांग्रेस विधायक प्रियंक खड़गे ने जरकिहोली के बयान पर सवाल उठाए हैं और ऑपरेशन लोटस का जिक्र छेड़ दिया है। उन्होंने कहा है कि इसपर भारत निर्वाचन आयोग, प्रवर्तन निदेशालय या आयकर विभाग स्वत: संज्ञान क्यों नहीं ले रहा है।
कितने ताकतवर हैं जरकिहोली?
उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र में जरकिहोली परिवार का वर्चस्व माना जाता है। रमेश के अलावा सियासी मैदान में चार भाई (सतीश, बालचंद्र, भीमाषी और लखन) भी हैं। एक ओर जहां बालचंद्र भाजपा में हैं। वहीं, सतीश कांग्रेस का हिस्सा हैं और अन्य दो भाई निर्दलीय हैं।
चारों का बेलगावी जिले में दबदबा है और कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से 18 पर प्रभव है। खास बात है कि बेंगलुरु के बाद सीटों की संख्या के मामले में बेलगावी सबसे बड़ा जिला है। साल 2019 में रमेश जरकिहोली गठबंधन के 17 विधायकों को मुंबई लेकर आए थे और भाजपा में उन्हें शामिल कराने वहां रहे थे।