कोरोना महामारी के दौरान, अधिकांश किसान कृषि उपज से अच्छा लाभ नहीं कमा सके। लेकिन, केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से फार्मर फर्स्ट परियोजना के अन्तर्गत जुड़े हल्दी किसानों की कहानी पूरी तरह से अलग है। कोरोना के कारण, कच्ची हल्दी की मांग बढ़ रही है और इसकी कीमत 50 रुपये से 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गई है, जबकि पिछले साल किसानों ने इसी हल्दी को 15-20 रुपये प्रति किलोग्राम बेचा था।
आम के बागों में हल्दी-जिमीकंद की जैविक खेती को बनाया लोकप्रिय
फार्मर फर्स्ट प्रोजेक्ट (एफएफपी) के तहत किसानों की आय को दोगुना करने के लिए आम के बागों में पेड़ों के बीच में उपलब्ध जमीन पर अशरफ अली खेती करके आय बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। एफएफपी के तहत आम के बागों में हल्दी और जिमीकंद की जैविक खेती को लोकप्रिय बनाया गया। तीन साल पहले, मलिहाबाद के मोहम्मदनगर तालुकेदार और नबीपनाह गांवों के 20 किसानों को हल्दी किस्म, नरेंद्र देव हल्दी-2 के बीज उपलब्ध कराए गए थे। किसानों ने सफलतापूर्वक प्रति एकड़ 40-45 क्विंटल हल्दी का उत्पादन किया।
जानवरों से नहीं पहुंचता नुकसान, पौष्टिक तत्वों से भरपूर है गोल्डन केसर
दिलचस्प तथ्य यह है कि इसकी पत्तियों को जानवरों द्वारा क्षति नहीं होती है, इसलिए फसल मवेशी, नीलगाय, बंदर आदि से सुरक्षित है। मुख्य अन्वेषक डॉ. मनीष मिश्रा के मुताबिक हल्दी को भारतीय गोल्डन केसर के नाम से जाना जाता है जो पौष्टिक तत्वों से भरपूर है।
एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बायोटिक और एंटी वायरल गुणों के कारण कोरोना काल ने कच्ची हल्दी को अधिक महत्वपूर्ण बना दिया। नरेंद्र देव हल्दी-2 में करक्यूमिन की 5 प्रतिशत मात्रा होती है, जो शरीर से फ्री रेडिकल्स को हटाकर कई बीमारियों से बचाता है। सर्दी-खांसी, श्वास-संबंधी रोग, ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण या संबंधित रोगों, वायरल बुखार जैसी कई समस्याओं से हल्दी के प्रयोग द्वारा बचा जा सकता है। आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी की गई सलाह में कहा गया है कि कोरोना के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए हल्दी वाले दूध (स्वर्ण दूध) का सेवन दिन में कम से कम एक या दो बार करें।
हल्दी के उन्नत बीज विकसित कर रहे ग्रामीण
संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेन्द्र राजन ने बताया कि बदलती परिस्थितियों में किसानों ने उन्नत किस्म के बीज गांव का विकास किया है। आज, 50 से अधिक किसानों ने आम के बागों में इस फसल को अन्तः फसल के रूप में अपनाया है और गांव को बीज गांव में बदल दिया है। हल्दी के उन्नत बीज की मांग लखनऊ और अन्य जिलों से है। मलीहाबाद के किसान अन्य किसानों को बीज बेचकर अपनी आय बढ़ा रहे हैं और साथ ही साथ अन्य किसानों की आय भी बढ़ाने में सहायता कर रहे हैं।
हल्दी प्रसंस्करण की नयी विधि का प्रशिक्षण किया हासिल
संस्थान ने पिछले वर्ष किसानों को हल्दी प्रसंस्करण की नयी विधि का प्रशिक्षण दिया जिसमें हल्दी के कंदो को बिना उबाले, चिप्स बनाकर, फिर इसे सुखाकर पीस कर उत्तम किस्म का हल्दी पाउडर बनाया गया। इस गांव के किसान राम किशोर मौर्य बताते हैं कि अब उन्होंने हल्दी चिप्स बनाने और सुखाने में महारत हासिल कर ली है और अब हल्दी पाउडर पैक कर के बेचते हैं। संस्थान ने किसानों को संगठित करके स्वयं सहायता समूह बनाकर आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य कर रही है, संस्थान द्वारा प्रशिक्षित किसान हल्दी पाउडर का आकर्षक पैकिंग करके अच्छा लाभ कमाने के साथ ही साथ अन्य किसानों को समूह में जोड़कर आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में मदद करेंगे।
कच्ची हल्दी की बढ़ रही है मांग
हममें से ज्यादातर लोग रोजाना खाना पकाने में सूखी हल्दी पाउडर का उपयोग करने के अभ्यस्त हैं। धीरे-धीरे लोग कच्ची हल्दी के लाभ को समझ गए हैं। कच्ची हल्दी की मांग बढ़ रही है क्योंकि गृहिणियां सूखे पाउडर हल्दी के स्थान पर इसे पसंद कर रही हैं। सब्जी की दुकान पर अब आप कच्ची हल्दी भी प्राप्त कर सकते हैं। यह नया चलन मूल्य श्रृंखला में एक बदलाव है जो अंततः किसान को लाभान्वित करता है क्योंकि उसे पाउडर बनाने के लिए हल्दी को संसाधित नहीं करना पड़ता। प्रसंस्करण में अतिरिक्त लागत शामिल होती है और अंतिम उत्पाद (सूखी हल्दी) भी कम मात्रा में प्राप्त होती है। इसलिए किसान अपनी कच्ची हल्दी को आकर्षक कीमत पर बेचने में अधिक प्रसन्न हैं।