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ईरान ने UK-US की अपील के बावजूद जासूसी के आरोप में ब्रिटिश-ईरानी नागरिक को दी फांसी

ब्रिटेन के लिए जासूसी (spy for britain) करने के आरोप में ईरान के पूर्व उप रक्षा मंत्री (Former Deputy Defense Minister of Iran) को मौत की सजा सुनाने के बाद ईरान ने ब्रिटिश-ईरानी नागरिक अलीरेजा अकबरी (British-Iranian citizen Alireza Akbari) को फांसी दे दी है। न्यायपालिका की समाचार एजेंसी ‘मिजान’ ने यह जानकारी दी। ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली (Britain’s Foreign Secretary James Cleverly) और अमेरिकी विदेश मंत्रालय (US State Department) के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल द्वारा अकबरी की रिहाई की अपील के बावजूद ईरान ने यह कार्रवाई की है।

2019 में गिरफ्तार अकबरी पर जासूसी के लिए 18,05,000 यूरो, 2,65,000 पाउंड और 50,000 डॉलर लेने का आरोप लगाया गया था। देशव्यापी प्रदर्शनों के बीच ईरानी-ब्रिटिश नागरिक को मृत्युदंड देने के ईरान के फैसले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना हो चुकी है। ‘मीजान’ समाचार एजेंसी ने अलीरेजा अकबरी को फांसी दिए जाने की घोषणा तो की, लेकिन यह नहीं बताया कि फांसी कब दी गई।

हालांकि, कहा जा रहा है कि उन्हें कुछ दिन पहले फांसी दी गई थी। ब्रिटेन की एमआई-6 खुफिया एजेंसी का जासूस होने का सबूत पेश किए बिना ईरान ने अकबरी पर जासूसी का आरोप लगाया था। ईरान ने अकबरी का एक संपादित वीडियो प्रसारित किया। इस वीडियो को सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जबरन कराया गया कबूलनामा बताया। ब्रिटिश विदेश मंत्री और अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्त ने अकबरी की फांसी की निंदा की है।

फांसी राजनीति से प्रेरित : अमेरिका
शुक्रवार को अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने अकबरी की फांसी की आलोचना करते हुए कहा कि अलीरेजा अकबरी के खिलाफ आरोप और मृत्युदंड राजनीति से प्रेरित है। उनकी फांसी अनुचित है। हम उन खबरों से भी बहुत व्यथित हैं कि अकबरी को हिरासत में नशा दिया गया, हिरासत में प्रताड़ित किया गया, हजारों घंटे तक पूछताछ की गई और झूठे बयान देने के लिए मजबूर किया गया।

ब्रिटिश-ईरान संबंधों में खटास
ईरान के 2015 के न्यूक्लियर पैक्ट को दोबारा बहाल करने में आए अवरोधों के बाद लंदन और तेहरान के बीच संबंध पिछले कुछ महीनों में खराब हुए हैं। इस पैक्ट में ब्रिटेन एक सहायक था। इसके अतिरिक्त सितंबर में ईरान-कुर्दिश मूल की युवती की हवालात में हुई मौत के बाद ईरान में हुए सरकार विरोधी हिंसक प्रदर्शनों को लेकर भी ब्रिटेन आलोचना की मुद्रा में था।