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आज कब और कैसे मनाएं जन्माष्टमी, जानें लड्डू गोपाल की पूजा विधि एवं नियम

कलयुग में जिस भगवान कृष्ण की साधना सभी दु:खों को दूर करके सभी सुख प्रदान करने वाली मानी जाती है, आज उनका जन्मोत्सव पूरे देश-दुनिया में मनाया जा रहा है. सनातन परंपरा के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी पर अवतार लिया था. यही कारण है कि कृष्ण भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ जन्मोत्सव मनाते हैं और उनकी विधि-विधान से पूजा करते हैं. आज के दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की किस समय और किस विधि से पूजा करने पर उनकी कृपा बरसेगी, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.

कब करें जन्माष्टमी की पूजा

सनातन परंपरा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में हुआ था लेकिन इस साल यह संयोग नहीं बन पा रहा है. चूंकि विद्वानों के अनुसार किसी भी पर्व में तिथि का ज्यादा महत्व होता है, इसलिए उदया तिथि में लगने वाली अष्टमी तिथि को मानते हुए आज कान्हा का जन्मोत्सव आधी रात के समय मनाना सबसे उत्तम रहेगा.

जन्माष्टमी की पूजा सामग्री

गंगाजल, कान्हा के वस्त्र, आसन, चौकी, सिंहासन, धूप, दीप, रुई, कपूर, केसर, हल्दी, चंदन, यज्ञोपवीत, रोली, खीरा, पंचामृत, शहद, दूध, दही, गाय का घी, अक्षत, मक्कखन, मिश्री, भोग सामग्री, तुलसी दल, पीले पुष्प, कमल का फूल, पान, सुपारी, खड़ा धनिया, पंचमेवा, छोटी इलायची, लौंग, मौली, इत्र, नारियल, आदि.

कैसे करें जन्माष्टमी पर पूजा

जन्माष्टमी के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के बाद कान्हा के लिए रखे जाने वाले व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लें. इसके बाद अपने मंदिर की सफाई करके सभी देवी-देवताओं के साथ भगवान कृष्ण का धूप-दीप दिखाकर पूजन करें. इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें और मन में कृष्ण के मंत्र मन में जपते रहें. जन्माष्टमी के व्रत में दिन में फलाहार ले सकते हैं. इसके बाद रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की सारी तैयारी करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण को दूध, दही, शर्करा, शहद, घी, गंगाजल आदि से स्नान कराएं और उन्हें पोंछने के बाद वस्त्र आदि पहनाकर सिंहासन पर विराजित करें. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण की प्रिय चीजें जैसे बांसुरी, मोर मुकुट, वैजयंती माला, तुलसी की माला आदि से उनका श्रृंगार करें. फिर अपने लड्डू गोपाल का केसर, हल्दी आदि से तिलक करें और पुष्प, प्रसाद आदि चढ़ाएं. इसके बाद अर्द्धरात्रि के समय का इंतजार करते हुए भजन और कीर्तन करें और जैसे ही कान्हा का जन्म हो उन्हें एक बार फिर भोग आदि लगाकर उनकी आरती और जयजयकार करें. अंत में कान्हा के प्रसाद को अधिक से अधिक लोगों को बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें.

जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा का फल

शास्त्रों में जन्माष्टमी पर्व की पूजा, जप और व्रत करने का अनंत फल प्रदान करने वाला बताया गया है. मान्यता है कि इस व्रत को करने पर भगवान कृष्ण की कृपा से व्यक्ति की 21 पीढ़ियां तर जाती हैं. जन्माष्टमी के व्रत को करने वाले को संतान सुख की प्रापित होती है और उसके जीवन से जुड़े सभी सुख और रोग-शोक दूर हो जाते हैं. जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु और गर्भपात जैसी विपदाओं से बचाने वाला माना गया है. कान्हा के लिए रखे जाने वाले जन्माष्टमी व्रत से कलह और कष्ट दूर हो जाते हैं. मान्यता है कि विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ का फल जन्माष्टमी पर सिर्फ एक बार भगवान कृष्ण का पवित्र नाम लेने से मिल जाता है.