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अयोध्या में रामजन्मभूमि पर स्थापित होंगी रामलला की 4 मूर्तियां, जानिए क्‍या है इसके पीछे की कहानी?

आर्यावर्त…जम्बूद्वीप…हिंद यानी भारतवर्ष की भूमि पर एक और निर्णायक कालखंड पूरा हो चुका है. भारतीय इतिहास (indian history) का एक अहम चैप्टर शुरू होने वाला है. आखिरकार करीब 500 साल बाद अयोध्या (Ayodhya) में भगवान राम (Lord Ram) के भव्य मंदिर (Ram temple) की प्राण प्रतिष्ठा (Pran Pratistha) हो रही है. 22 जनवरी 2024 की तारीख भारतीय इतिहास की सबसे अहम चंद तारीखों में शामिल होने जा रही है जिसके लिए लाखों-करोड़ों हिंदू महीनों, सालों या दशकों से नहीं बल्कि सदियों से इंतजार कर रहे थे.

भगवान राम का भव्य मंदिर बनकर तैयार है. उसमें स्थापित होने वाली रामलला की मूर्ति बालरूप में होगी. ये मूर्ति 51 इंच ऊंचाई वाली होगी. वास्तुकारों को रामलला की ऐसी मूर्ति बनाने को कहा गया है जिसमें पांच साल के बालक की कोमलता को उकेरा जा सके. भव्य राम मंदिर में स्थापित होने वाली रामलला की इस मूर्ति को बनाने के लिए नेपाल में गंडकी नदी के तट पर मिलने वाली शालिग्राम शिला समेत मैसूर और राजस्थान समेत कई जगहों से पत्थर मंगाए गए, देश के कई मशहूर शिल्पकारों को इस महामिशन से जोड़ा गया.

भारतीय सनातन संस्कृति और इतिहास के पन्ने पलटते रहे और बार-बार रामजन्मभूमि स्थान पर ध्वंस और निर्माण के साथ-साथ रामलला की मूर्तियां भी बनती और बदलती रहीं. राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की मूर्ति की कहानी बड़ी दिलचस्प है. क्या आपको पता है कि भव्य मंदिर में स्थापित हो रही रामलला की ये मूर्ति अयोध्या में राम जन्मस्थान पर स्थापित होने वाली चौथी मूर्ति होगी. आप जरूर जानना चाहेंगे कि रामलला की बाकी की तीन मूर्तियों की हिस्ट्री और मिस्ट्री क्या है? हम आपको बताएंगे महाराज विक्रमादित्य से लेकर बाबरकाल और तब से अब तक यानी 22 जनवरी 2024 की प्राणप्रतिष्ठा में स्थापित होने वाली रामलला की इन चार पवित्र मूर्तियों की कहानी.

रामलला की पहली मूर्ति की कहानी
बात मान्यताओं से शुरू करते हैं… ये ऐतिहासिक मान्यता है कि प्राचीन काल में कभी अयोध्या नगरी का पुनरुद्धार उज्जैन के नरेश महाराज विक्रमादित्य ने कराया था. उन्होंने ही रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर बनवाया था. 16वीं सदी की शुरुआत में मुगलों ने जब अयोध्या पर आक्रमण किया तब राम जन्मभूमि के उस प्राचीन मंदिर में प्रभु श्रीराम का जो विग्रह यानी मूर्ति स्थापित थी. मौजूदा समय में वह अयोध्या में ही स्वर्गद्वार मोहल्ले में स्थित महाराष्ट्रीयन परंपरा के कालेराम मंदिर में आज भी विराजमान है. मान्यता है कि मुगल आक्रमण के समय तत्कालीन पुजारी ने इस विग्रह को अपमान से बचाने के लिए सरयू नदी में प्रवाहित कर दिया था. जो 220 साल तक सरयू की धारा में सुरक्षित रहा और 18वीं शताब्दी में एक पुजारी को आए देवस्वप्न के बाद फिर ये प्रकट हुआ. इस विग्रह की अयोध्या की ऐतिहासिक परंपरा में खास जगह है. लेकिन इस मूर्ति का ऐतिहासिक तथ्य इसे ओरछा राजमहल तक जोड़कर ले जाता है.

अब ऐतिहासिक तथ्यों पर आते हैं… करीब पांच सौ साल पहले यानी साल 1527 में जब बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई तो उस वक्त तक वहां महाराज विक्रमादित्य द्वारा स्थापित राम मूर्ति थी. ये मूर्ति तब टीकमगढ़ के ओरछा राजमहल में चली गई. मुगल आक्रमण से बचाने के लिए ओरछा की महारानी अयोध्या आकर ये मूर्ति ले गईं. तबसे मान्यता है कि ओरछा में राम राजा का राज आज भी है. वहां के राम राजा धनुर्धर राम नहीं, रामलला हैं. आज भी ओरछा के मंदिर में रामलला को मध्य प्रदेश पुलिस सुबह-शाम सलामी देती है. हर साल राजा राम सरकार की भव्य बारात निकाली जाती है, लाखों बाराती इसमें शामिल होते हैं.

गौरतलब है कि उज्जैन के महाप्रतापी महाराज विक्रमादित्य का शासन ईस्वी पूर्व पहली शताब्दी में था और अपना राज्य फैलाने के बाद उन्होंने अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, वाराणसी कांची, द्वारिकाधाम और उज्जैन में अनेक मंदिर बनवाए थे. विक्रमादित्य के काल का अयोध्या 5 कोस का माना जाता है. आज जिस अयोध्या धाम का विकास कराया जा रहा है वह 84 कोस परिक्रमा के इलाके में फैला हुआ है. यानी 17 गुना अधिक विस्तारित.

रामलला की दूसरी मूर्ति की कहानी
रामलला की दूसरी मूर्ति का इतिहास आजादी के दो साल बाद यानी साल 1949 में शुरू होता है. 22 और 23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे में राम लला की मूर्ति देखी गई. भय प्रकट कृपाला, दीन दयाला, कौशल्या हितकारी.. के भजन के शोर से पूरी अयोध्या नगरी गूंज उठी. पूरे देश में ये खबर आग की तरह फैल गई. खबर आई कि 22-23 दिसंबर 1949 की दरमियानी रात विवादित ढांचे के अंदर रामलला प्रकट हुए हैं.

आस-पास के कई गांवों में लोगों तक ये संदेश पहुंच गया कि रघुकुल कुलभूषण बाल रूप में जन्मभूमि स्थान मंदिर के गर्भ-गृह में पधार चुके हैं. सुबह जब पुलिस वहां पहुंची तो सैकड़ों राम भक्तों की भीड़ जमा हो चुकी थी, जो दोपहर तक बढ़कर 5000 से ज्यादा तक पहुंच गई. 23 दिसंबर 1949 को पुलिस ने मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे पर ताला लगा दिया गया. जो कि जिला जज के आदेश के बाद 1 फरवरी 1986 को दोबारा खोला गया. यहीं से राम मंदिर आंदोलन को नई ऊर्जा मिली.

रामलला की तीसरी मूर्ति की कहानी
प्रकट हुए राम लला की ये मूर्ति 1949 से 6 दिसंबर 1992 तक जन्मस्थान पर स्थापित रही. लेकिन बाबरी विध्वंस के तुरंत बाद कारसेवा के दौरान ये मूर्ति गायब हो गई. जो मूर्ति बाबरी विध्वंस के दौरान गायब हुई वह रामलला की मूल मूर्ति नहीं थी. जो मूर्ति कारसेवा के दौरान गायब हुई, वह 22 दिसंबर 1949 की आधी रात को विवादित परिसर में रखी गई मूर्ति थी. जिसके बाद से हिंदू पक्ष ने रामलला के प्रकट होने का दावा शुरू किया.

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा जो बाबरी विध्वंस के दिन खुद उस जगह मौजूद थे अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं-
‘6 दिसंबर 1992 को कारसेवा के लिए अयोध्या में जुटी भीड़ अचानक बाबरी ढांचे को तोड़ने में जुट गई. पौने चार बजते-बजते विवादित ढांचे का बायां गुंबद गिर गया. बीच का मुख्य गुंबद 4 बजकर 40 मिनट पर नीचे आया. ढांचा गिरते ही कारसेवकों की पूरी ताकत मलबे को समतल बनाने में लग गई, ताकि वहां फिर से रामलला को जल्दी-से-जल्दी स्थापित किया जा सके. कारसेवकों ने ढांचे का मलबा पीछे खाई में गिराया और जमीन को समतल करने के काम में लग गए. पंद्रह गुणा पंद्रह गज के टुकड़े पर जल्दी-जल्दी में पांच फीट की दीवार उठाई गई. नीचे से उस अस्थायी चबूतरे तक अठारह सीढ़ियां बनीं.

उसी वक्त पता चला कि रामलला की जो मूर्ति पुजारी सत्येंद्र दास बाहर लाए थे वह गायब हो गई है. कारसेवकों के सामने एक तरफ केंद्र सरकार की संभावित कार्रवाई का खतरा था तो दूसरी तरफ मूर्ति रख अस्थायी मंदिर बनाने की अफरातफरी थी. केंद्र सरकार की ओर से अयोध्या मंदिर का मामला केंद्रीय राज्यमंत्री पी. आर. कुमारमंगलम देख रहे थे. वे फोन पर कई बार जानकारी ले चुके थे कि अस्थायी मंदिर में मूर्तियां रखी गईं या नहीं?

अयोध्या में ढांचा ढहाए जाने के बाद अस्थायी मंदिर में रामलला की मूर्तियां स्थापित करने को लेकर संग्राम मचा हुआ था तो केंद्र सरकार इस स्थापना की खातिर विशेष तौर पर सक्रिय थी. नरसिंह राव सरकार के मंत्री पी. आर. कुमारमंगलम राजा अयोध्या विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र के संपर्क में थे. राजा साहब कांग्रेसी बैकग्राउंड के थे. अयोध्या में कर्फ्यू था. दुकानें बंद थीं. आनन-फानन में राजा अयोध्या ने अपने घर से रामलला की मूर्तियां भिजवाईं, जो उनकी दादी ने इसी काम के लिए अपने घर में एक अस्थाई मंदिर बनवाकर उसमें रखी थीं. राजा अयोध्या ने बाबरी विध्वंस के बाद खाली हुई जगह पर बने चबूतरे पर मूर्तियां रखे जाने के बाद पी. आर. कुमारमंगलम को इसकी सूचना दी. इसके फौरन बाद प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने कैबिनेट मीटिंग बुलाकर भाजपाई मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बर्खास्त करने का फैसला ले लिया.’

रामलला की चौथी मूर्ति की कहानी
अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनकर तैयार है. उसमें स्थापित हो रही रामलला की मूर्ति इतिहास में चौथी मूर्ति होगी. यह बालरूप में होगी. इसमें भगवान राम पांच साल के बालक के रूप में धनुष और बाण पकड़े हुए होंगे. ये मूर्ति 51 इंच ऊंचाई वाली होगी.

कैसी है रामलला की नई मूर्ति?
राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित के लिए नेपाल के शालिग्राम से लेकर मैसूर और राजस्थान तक से पत्थर मंगाए गए. तीन मूर्तियों का निर्माण कराया गया. रामलला की पहली मूर्ति गणेश भट्ट ने बनाई है, दूसकी सत्यनारायण पांडे ने और तीसरी प्रतिमा अरुण योगीराज ने बनाई है. इनमें से फाइनल की गईं दो मूर्तियां स्थापित हो रही हैं. जिस प्रतिमा की गर्भ गृह में प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है उसे चल या उत्सव नाम दिया गया है. वहीं दूसरी प्रतिमा जिसे मंदिर प्रांगण में स्थापित किया जाएगा उसे ‘अचल मूर्ति’ नाम दिया गया है. अरुण योगीराज की बनाई मूर्ति अंदर मुख्य मंदिर के गर्भगृह में स्थापित हो रही है.

बेहद खास है अयोध्या में रामलला की पूजा की विधि
अयोध्या की राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान राम बाल स्वरूप में विराजमान हैं इसलिए अयोध्या में सालों से भगवान राम के पूजन के लिए खास विधि रामानंदीय परंपरा अपनाई जाती है. जिसमें एक बालक के समान भगवान राम की दिनचर्या तय होती है. सूर्योदय पर सुबह जगाने से लेकर रात को शयनकाल तक 16 अनुष्ठान किए जाते हैं जिसमें भगवान रामलला के खान-पान, स्नान, वस्त्र पहनाना, उनके पसंदीदा भोजन का ध्यान रखा जाता है.

अयोध्या नगरी का सफरनामा
भगवान राम की नगरी अयोध्या का इतिहास मानव सभ्यता के इतिहास और परंपराओं-संस्कृति का एक अनूठा प्रमाण है. मान्यता है कि इस नगर को मनु ने बसाया था और इसे ‘अयोध्या’ का नाम दिया जिसका अर्थ होता है अ-योध्य अर्थात् ‘जिसे युद्ध के द्वारा प्राप्त न किया जा सके. चीनी यात्री ह्वेनत्सांग 7वीं सदी में अयोध्या आया था. उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे. यह नगरी सप्त पुरियों में से एक है. अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, काञ्चीपुरम, उज्जैन, और द्वारिका – ये सात पुरियां नगर मोक्षदायी मानी गई हैं.

प्राचीन काल में अयोध्या कोसल राज्य की प्रारंभिक राजधानी थी और रामराज्य के लिए पूरे ब्रहांड में अलग पहचान रखती थी. हालांकि, बौद्ध काल (6ठी-5वीं शताब्दी ईसा पूर्व) में श्रावस्ती राज्य का मुख्य शहर बन गया. 11वीं और 12वीं शताब्दी के दौरान कनौज साम्राज्य का उदय अयोध्या, जिसे उस समय अवध कहा जाता था, में हुआ. इस क्षेत्र को बाद में दिल्ली सल्तनत, जौनपुर साम्राज्य और 16वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य में शामिल किया गया. 18वीं सदी की शुरुआत में अवध को कुछ हद तक आजादी मिली लेकिन 1764 में यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया. 1856 में इसे अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया. फिर उत्तर-पश्चिमी प्रांत और बाद में आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत बनाने के लिए 1877 में अवध को आगरा प्रेसीडेंसी के साथ जोड़ा गया था. अब अयोध्या फैजाबाद जिले का हिस्सा है और उत्तर प्रदेश राज्य में है.

यह शहर पवित्र सरयू नदी के तट पर बसा हुआ है. आज ये शहर कुल 120.8 किमी वर्ग क्षेत्र में फैला हुआ है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 2470996 थी. जिसमें पुरुषों की संख्या- 1259628 और महिलाओं की 1211368 थी. राम मंदिर निर्माण के साथ केंद्र और यूपी सरकार ने अयोध्या शहर के विकास के लिए बड़ी योजनाएं शुरू की हैं ताकि अयोध्या को ईसाई केंद्र वेटिकन सिटी की तरह हिंदू आस्था का वैश्विक केंद्र बनाया जा सके. शहर में निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए 32 हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है. ताकि तीर्थ अयोध्या प्रोजेक्ट के तहत स्मार्ट अयोध्या शहर बन सके और इसे हिंदू धर्मकेंद्र और ग्लोबल टूरिस्ट हब के रूप में विकसित किया जा सके.