पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने आज लगातार 9वीं बार देश को स्वतंत्रता दिवस(Independence day) के मौके पर संबोधित किया है। यह ऐतिहासिक मौका भी है क्योंकि देश इस बार आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर स्वदेशी, आत्मनिर्भर भारत (self reliant india) और महिलाओं के सम्मान की बात की। वहीं उन्होंने देश को अगले 25 सालों के लिए 5 प्रण भी दिलाए। उन्होंने कहा कि यदि हम इनका पालन करेंगे तो देश की आजादी के 100 साल पूरे होने तक भारत (india)) के एक विकसित देश होगा। पढ़िए, लाल किले की प्राचीर से दिया गया पीएम नरेंद्र मोदी का पूरा भाषण…
आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई। आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय और भारत प्रेमी शान से तिरंगा (tricolor) लहरा रहे हैं। मैं आजादी के अमृत महोत्सव की बहुत बधाई देता हूं। आज का यह दिन ऐतिहासिक है। एक पुण्य पड़ाव, एक नई राह, एक नए संकल्प और नए सामर्थ्य के साथ कदम बढ़ाने का यह शुभ अवसर है। आजादी की जंग में गुलामी का पूरा कालखंड संघर्ष में मिटा है। हिंदुस्तान का कोई कोना ऐसा नहीं था, कोई काल ऐसा नहीं था, जब देशवासियों ने सैकड़ों सालों तक गुलामी के खिलाफ जंग न की हो। जीवन न खपाया हो, यातनाएं न झेली हों और आहुति न दी है। आज यह हर बलिदानी को नमन करने और उनका ऋण स्वीकार करने का अवसर है। यह उनके संकल्पों को जल्द पूरा करने का संकल्प लेने का भी अवसर है।
हम सभी देशवासी महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस(Netaji Subhash Chandra Bose), वीर सावरकर के ऋणी हैं। उन्होंने अपने जीवन को खपा दिया। यह देश कृतज्ञ है, मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्लिम (Ramprasad Bislim) और अन्य तमाम क्रांतिवीरों का। इन लोगों ने अंग्रेजों की नींव हिला दी। यह देश रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल, रानी गाइडिल्यू का ऋणी है। भारत की नारी त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा कर सकती है। अनगिनता वीरांगनाओं का स्मरण करते हुए हर भारतीय गर्व से भर जाता है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) हों, नेहरू हों, लाल बहादुर शास्त्री हों या फिर राम मनोहर लिया, नानाजी देशमुख, जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों को भी यह नमन करने का अवसर है। जब हम आजादी की जंग(freedom struggle) की चर्चा करते हैं तो हम उन जंगलों में जीने वाले आदिवासी समाज पर गौरव करना भी नहीं भूल सकते। भगवान बिरसा मुंडा, गोविंद गुरु जैसे अनगिनत नाम हैं, जिन्होंने आजादी के आंदोलन की आवाज बनकर दूर के जंगलों में भी आदिवासी भाई-बहनों में मातृभूमि के लिए जीने-मरने की प्रेरणा जगाई।
यह देश का सौभाग्य रहा है कि देश की आजादी की जंग के कई रूप रहे हैं। इनमें से ही एक रूप था, जिसके तहत महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, नाराय़ण गुरु जैसे लोग देश की चेतना को जगाते रहे। देशवासियों ने बीते एक साल में देश की आजादी के अमृत महोत्सव पर बहुत से कार्यक्रम किया। देश में शायद ही कभी एक ही लक्ष्य को लेकर इतना उत्सव मनाया गया हो। हिंदुस्तान के हर कोने में उन महापुरुषों को याद करने का प्रयास किया गया, जिन्हें किसी कारण से इतिहास में जगह नहीं मिली या फिर उन्हें भुला दिया गया। देश ने इन क्रांतिकारियों और सत्याग्रहियों को नमन किया।
कल 14 अगस्त को भारत ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस भी बड़े भारी मन से मनाया और विभाजन के गहरे घावों को याद किया। लाखों ने बहुत कुछ सहन किया था, तिरंगे की शान और मातृभूमि की मिट्टी से मोहब्बत के कारण सहन किया था। उनका संघर्ष प्रेरणा पाने योग्य है। आज हम जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो बीते 75 सालों में देश के लिए जीने-मरने वाले और संकल्पों को पूरा करने वाले सेना के जवानों, पुलिसकर्मियों, जनप्रतिनिधियों को भी याद करने का समय है। 75 साल में इन सबके योगदान को भी आज स्मरण करने का अवसर है। यह देश के कोटि-कोटि नागरिकों को भी नमन करने का वक्त है, जिन्होंने अपने सामर्थ्य के अनुसार देश के लिए काम किया।
75 सालों की यात्रा अनेक उतार-चढ़ाव से भरी रही है। सुख-दुख की छाया मंडराती रही है, लेकिन इसके बीच भी देशवासियों ने पुरुषार्थ किया है और संकल्पों को ओझल नहीं होने दिया है। यह भी सच्चाई है कि सैकड़ों सालों की गुलामी नने भारतीयों के मनोभावों को गहरी चोट पहुंचाई थी। लेकिन इसके भीतर एक जीजीविषा और जुनून भी था। हमने अभावों और उपहासों के बीच भी संघर्ष किया। यह उपहास किया गया कि आजादी के बाद देश टूट जाएगा और लोग लड़कर मर जाएंगे। न जाने क्या-क्या आशंकाएं व्यक्ति की गईं। लेकिन उनको पता नहीं था, यह हिन्दुस्तान की मिट्टी है। इस मिट्टी में वह सामर्थ्य है, जो शासकों से भी परे सामर्थ्य का अंतरप्रवाह लेकर जीता रहा है। उसी का परिणाम है कि हमने क्या कुछ नहीं झेला।
कभी अन्न का संकट झेला, कभी युद्ध के शिकार हो गए। आतंकवाद के शिकार रहे। छद्मयुद्ध चलते रहे। प्राकृतिक आपदाएं आती रहीं। इन पड़ावों के बीच भी भारत आगे बढ़ता रहा। भारत की विविधता जो कभी बोझ लगती थी, वह विविधता ही भारत की अमोघ शक्ति है और उसका अटूट प्रमाण है। भारत के अंदर एक संस्कार प्रवाह है। भारत लोकतंत्र की जननी है। जिनके जेहन में लोकतंत्र होता है, वे जब चल पड़ते हैं तो वह सामर्थ्य दुनिया की बड़ी-बड़ी शक्तियों के लिए भी संकट का काल लेकर आता है।
2014 के बाद देशवासियों ने मुझे दायित्व दिया। आजादी के बाद जन्मा मैं पहला व्यक्ति था, जिसे लालकिले से देशवासियों का गौरव ग्रहण करने का मौका मिला। मैं आप लोगों को जितना जान पाया हूं और देश की आत्मा को जितना समझा है, उसे देखते हुए मैंने उन लोगों को सशक्त करने में समय दिया, जो पिछड़े रहे। देश के वंचित, शोषित, दलित, पिछड़े, उत्तर, दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने का के लिए खुद को समर्पित किया। उनका सपना था कि देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचा जाए। यह अमृत काल की पहली सुबह है और मैं आज देश का सौभाग्य देख रहा हूं कि भारत का जन-मन आकांक्षित जन-मन है।
देश का हर नागरिक बदलाव देखना चाहता है, लेकिन उसे इंतजार नहीं चाहिए। अपनी ही आंखों के सामने देश का नागरिक सपनों को पूरा होते देखना चाहता है। कुछ लोगों को इसके कारण संकट हो सकता है, लेकिन जब आकांक्षी समाज होता है तो सरकारों को भी तलवार की धार पर चलना पड़ता है। चाहे केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार हो, सभी को इस समाज की चिंता करनी होगी। उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हम इंतजार नहीं कर सकते। इस समाज ने लंबे अरसे तक इंतजार किया है, लेकिन अब वह अपनी आने वाली पीढ़ी को इंतजार करने के लिए मजबूर करने को तैयार नहीं है। इसलिए अमृत काल की पहली प्रभात आकांक्षी समाज के सपने को पूरा करने का सुनहरा अवसर देती है। हमने पिछले दिनों देखा कि भारत में कैसे सामूहिक चेतना पुनर्जागरण हुआ।
मैं समझता हूं कि चेतना का पुनर्जागरण हमारी सबसे बड़ी अमानत है। 10 अगस्त तक किसी को पता भी नहीं होगा कि देश के अंदर कौन सी ताकत है, लेकिन पिछले तीन दिनों में देश जिस तरह से तिरंगा लेकर चल पड़ा है, उसने दिखा दिया है कि लोग कितने तत्पर हैं। जब देश जनता कर्फ्यू का साथ देता है, कोरोना वॉरियर के साथ खड़ा हो जाता है और उन्हें दीया जलाकर संबल देता है तो चेतना की अनुभूति है। दुनिया में जब यह बहस चल रही थी कि टीका लेना है या नहीं, उस दौर में हमारे देश में 200 करोड़ डोज लग जाती हैं।
आजादी के इतने दशकों के बाद पूरे विश्व का भारत के प्रति देखने का नजरिया बदल चुका है। विश्व भारत की तरफ गौरव और अपेक्षा के साथ देख रहा है। विश्व का यह बदलाव हमारे संकल्पों का प्रतीक है। दुनिया हमारी तरफ देख रही है। दुनिया की उम्मीदों को पूरा करने का सामर्थ्य कहां है, यह उसे दिखने लगा है। मैं इसे त्रिशक्ति के रूप में देखता हूं, यह है आकांक्षाओं की, पुनर्जागरण की और दुनिया की उम्मीदों की। 130 करोड़ देशवासियों ने कई दशकों के अनुभव के बाद स्थिर सरकार का महत्व क्या होता है, यह समझा है।
स्थिर सरकार हो तो हर कोई विकास में हर कोई भागीदार होता है और देश आगे बढ़ता है। हम सबका साथ, सबका विकास का मंत्र लेकर चले थे, लेकिन देशवासियों ने इसमें सबका विश्वास और सबका प्रयास का रंग भी भर दिया। चाहे स्वच्छता का अभियान हो या फिर गरीबों के कल्याण का काम हो, देश पूरी शक्ति के साथ आगे बढ़ रहा है। लेकिन आजादी के अमृत काल में यदि हम अपनी ही पीठ थपथपाते रहे हों तो हमारे सपने कहीं दूर चले जाएंगे। इसलिए 75 साल का कालखंड कैसा भी रहा हो, लेकिन आज जब हम अमृत काल में प्रवेश कल रहे हैं तो अगले 25 साल हमारे देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मुझे लगता है कि आने वाले 25 सालों के लिए हमें अपने संकल्पों को 5 आधारों पर केंद्रित करना होगा। हमें उन पंच प्रण को लेकर 2047 में जब आजादी के 100 साल होंगे तो आजादी के दीवानों के सपनों को पूरा करना होगा। हमें 5 बड़े संकल्प लेकर चलना होगा। इनमें से एक संकल्प होगा, विकसित भारत। दूसरा यह कि किसी भी कोने में गुलामी का अंश न रह जाए। अब हमें शत-प्रतिशत उन गुलामी के विचारों से पार पाना है, जिसने हमें जकड़कर रखा है। हमें गुलामी की छोटी से छोटी चीज भी नजर आती है तो हमें उससे मुक्ति पानी ही होग।
तीसरी प्रण शक्ति यह है कि हमें अपनी विरासत पर गर्व होना चाहिए। यही विरासत है, जिसने कभी भारत को स्वर्णिम काल दिया था। यही विरासत है, जो काल बाह्य छोड़ती रही है और नूतन को स्वीकारती रही है। चौथा प्राण यह है कि देश में एकता रहे और एकजुटता रहे। देश के 130 करोड़ देशवासियों में एकता रहे। यह हमारा चौथा प्राण है। 5वां प्रण है नागरिकों का कर्तव्य। इससे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी बाहर नहीं हैं। कब तक दुनिया हमें सर्टिफिकेट देती रहेगी। क्या हम अपने मानक नहीं बनाएंगे। हमें किसी भी हालत में औरों के जैसा दिखने की कोशिश करने की जरूरत नहीं है। हम जैसे भी हैं, वैसे ही सामर्थ्य के साथ खड़े होंगे। यह हमारी मिजाज है।
किसी के पास रहने को जगह नहीं और किसी के पास चोरी का माल रखने की जगह नहीं है। बीते 8 सालों में डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर करते हुए हमने 2 लाख करोड़ रुपये की बचत की है। यह रकम गलत हाथों में जाते थे। जो लोग पिछली सरकारों में बैंकों को लूटकर भाग गए, उनकी संपत्तियां जब्त की जा रही हैं। उन्हें वापस लाने के प्रयास हो रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक कालखंड में हम कदम रख रहे हैं। हम भ्रष्टाचार के लिए एक निर्णायक दिशा में बढ़ रहे हैं। मैं लाल किले की प्राचीर से बड़ी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि भ्रष्टाचार दीमक की तरह देश को खोखला कर रहा है। हमें इसके खिलाफ लड़ाई को तेज करना है। आप मुझे आशीर्वाद दें और साथ दें ताकि इस लड़ाई को मैं लड़ पाऊं। इस जंग को देश जीत पाए और सामान्य नागरिकों की जिंदगी आन, बान शान से भर जाए। इसलिए मेरे देशवासियों यह चिंता का विषय है कि देश में भ्रष्टाचार के प्रति नफरत तो दिखती है, लेकिन कभी-कभी भ्रष्टाचारियों के प्रति नरमी बरती जाती है।
कई लोग तो इस हाल तक चले जाते हैं कि कुछ लोग जिन्हें कोर्ट ने दोषी पाया है, जेल में हैं। उनका भी महिमांडन करते हैं। जब तक भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के प्रति नफरत का भाव पैदा नहीं होता है, तब यह मानसिकता खत्म नहीं होगी। हमें इनके प्रति जागरूक होने की जरूरत है। एक बड़ी समस्या परिवारवाद की है। यह सिर्फ राजनीति के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि तमाम संस्थाओं में परिवारवाद की जकड़ है। इससे देश की प्रतिभा का नुकसान होता है। यह भी एक भ्रष्टाचार का कारण बन जाता है। इस परिवार और भाई-भतीजावाद के प्रति हमें नफरत पैदा करनी होगी और जागरूकता पैदा करनी होगी। राजनीति में भी परिवारवाद ने देश के सामर्थ्य के साथ सबसे ज्यादा अन्याय किया है। ऐसी राजनीति परिवार की भलाई के लिए होती है। इससे देश के हिता का कोई लेना-देना नहीं होता।
मैं देशवासियों से खुले मन से कहना चाहता हूं कि आइए हमें इस मानसिकता से मुक्ति दिलाएं और देश को योग्यता के बल पर आगे बढ़ाएं।