बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आज का दिन समस्त बिहारवासियों के लिए बेदह खास और अहम है। गत दिनों हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा आज होने जा रही है। सुबह 8 बजे से ही शुरूआत रुझानों के आने का सिलसिला शुरू हो चुका है। फिलहाल तो एनडीए आगे चल रही है और तेजस्वी पीछे नजर आ रहे हैं। शुरूआती रुझानों के मुताबिक, किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ नहीं दिख रहा है। उधर, अगर बात लोजपा की करें तो वे 8 से 9 सीटों पर अपनी बढ़त बनाती हुई दिख रही है। ऐसी स्थिति में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलता हुआ नहीं दिख रहा है। अब ऐसे में यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो फिर लोजपा प्रमुख चिराग पासवान किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकते हैं, जिस तरह के हालात शुरूआती रूझानों में नजर आ रहे हैं। उसके मुताबिक, चिराग के लिए जेडीयू के साथ जाना भी मुश्किल है और बीजेपी के साथ भी जाना मुश्किल है, लेकिन ऐसे में इस बात को लेकर आसार जताए जा रहे हैं कि क्या वे फिर से अपने पिता रामविलास पासवान वाला इतिहास दोहराने में कामयाब हो पाते है की नहीं?
किसके साथ जा सकते हैं चिराग
जिस तरह चुनाव प्रचार में चिराग पासवान ने एक तरफ जहां बीजेपी के लिए नरम रूख अख्तियार किया और जेडीयू को लेकर मोर्चा खोलते हुए दिखे। उससे तो यह साफ जाहिर है कि उनके लिए एनडीए के साथ जाना मुश्किल है। सियासी प्रेक्षकों के मुताबिक, उनका प्लान था कि अगर बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिला तो वे बीजेपी के साथ जाकर अपनी सरकार बना लेंगे, मगर शुरूआती रूझान पूरी तरह से पलटते हुए दिख रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में माना जा रहा है कि चिराग पासवान किंगमेकर की भूमिका अदा कर सकते हैं। मगर, यह तो साफ है कि उनके लिए न ही आरजे़डी के साथ जाना असान होगा और न ही जेडीयू के साथ। मालूम हो की जिस तरह उन्होंने खुद को बीजेपी का हनुमान बता दिया था तो वहीं अपनी सरकार बनने पर नीतीश कुमार को जेल भेजने तक की बात कह डाली थी। ऐसी स्थिति में वे क्या कदम उठाते हैं। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा।
क्या निभाएंगे अपने पिता वाला इतिहास
बिहार के शुरूआती रूझानों को मद्देनजर रखते हुए अब यह सवाल किया जा रहा है कि क्या चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान वाला इतिहास दोहराते हैं। ध्यान रहे कि वर्ष 2005 के चुनावी मैदान में पहली बार उतरी थी। उस वक्त लोजपा को 29 सीटें मिली थी। मगर , चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला। 75 सीटों के साथ राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी थी तो नीतीश की अगुवाई में जेडीयू को 55 सीटें मिली थीं। बीजेपी को 37 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस के पास 10 सीटें थीं। इन आंकड़ों को देखते हुए रामविलास पासवान किंगमेकर की भूमिका में नजर आने लगे और फिर उन्होंने सरकार बनाने हेतु शर्त रखी दी कि किसी मुस्लिम नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया जाए। इसके लिए पंजाब के राज्यपाल बूटा सिंह को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। जिसका नतीजा हुआ कि बिहार में दो मर्तबा चुनाव हो गए और फिर राष्ट्रपति शासन भी लागू कर दिया गया।