देवो के देव महादेव कहे जाने वाले भगवान शिव के एक नहीं 108 नाम हैं और हर नाम का अपना एक महत्व और मतलब है। महादेव की पूजा करने से मनुष्य को समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की सात्विक ही तांत्रिक पूजा भी की जाती है। भक्त अपनी-अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार शिवजी के विभिन्न रूप की आरधना करते हैं। भगवान शिव ही एक ऐसे ईश्वर हैं, जिनकी पूजा प्रतिमा और शिवलिंग के रूप में अलग-अलग होती है। भगवान शंकर की पूजा उनके परिवार समेत करना अनिवार्य होता है और शिवलिंग की पूजा में शिवजी को अकेले या देवी पार्वती के साथ पूजा जाता है। शिवजी के
जन्म से जुड़ी बातें शिव पुराण में उल्लेखित हैं। शिवजी के माता-पिता कौन है यह जानकारी भी शिव पुराण में मौजूद है। तो आइए आपको शिव जी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य बताएं।
हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में भगवान शिवजी का स्थान सर्वोच्च है। भगवान शिव मनुष्य के मन को पढ़ने वाले माने गए हैं। कहा जाता है कि शिवजी के शरण में आने भर से भगवान अपने भक्त के कष्ट और कामनाओं को समझ लेते हैं. भगवान शिव जी ने अपने शरीर से देवी शक्ति की सृष्टि की है जो उनके अपने अंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी देवी शक्ति को पार्वती के रूप
में जाना गया है और भगवान शिव को अर्धनारिश्वर के रूप में जाना जाता है देवी शक्ति को प्रकृति गुणवती बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित माना गया है श्रीमद् देवी महापुराण के अनुसार भगवान शिव के पिता के लिए भी एक कथा है।
देवी महापुराण के अनुसार एक बार जब नारद जी ने अपने पिता ब्रह्मा जी से सवाल किया कि इस सृष्टि का निर्माण किसने किया है? आप ने भगवान विष्णु ने या फिर भगवान शिव जी ने, इन तीनों को जन्म किसने दिया है यानी आप तीनों के माता पिता कौन है तब ब्रह्मा जी ने नारद जी से त्रिदेवों के जन्म की गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि देवी दुर्गा और शिव स्वरूप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है यानी प्रकृति स्वरूप दुर्गा ही माता है और ब्रह्मा यानी काल सदाशिव पिता है एक बार श्री
ब्रह्मा जी और श्री विष्णु जी का इस बात पर झगड़ा हो गया कि ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूं क्योंकि यह सृष्टि मुझसे उत्पन्न हुई है मैं प्रजापिता हूं इस पर विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूं तू मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुआ है।
जब इन दोनों का झगड़ा हो रहा था तब सदा शिव ने विष्णु जी और ब्रह्मा जी के बीच में आकर कहा, है पुत्रों मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार और तिरोगति दिए हैं मुझे वेदों में
ब्रह्म कहा है मेरे पांच मुख हैं एक मुख से अकार (अ) दूसरे मुख से उकार (उ) तीसरे मुख से मुकार (म) चौथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर “ऊँ” बना है यह मेरा मूल मंत्र है।