कुंवारी कन्याएं रंभा तृतीया का व्रत अच्छे वर की कामना के लिए करती हैं। विवाहित महिलाएं इस व्रत को सुहाग की लंबी आयु और बुद्धिमान संतान के लिए रखती है। जी हां और ये रंभा तृतीया का व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस दिन कुवांरी कन्याएं मन चाहा वर पाने के लिए व्रत रखती है। इस बार रंभा तृतीया का व्रत 2 जून को रखा जाएगा। रंभा तृतीया व्रत को रंभा तीज के नाम से भी जाना जाता है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक रंभा अप्सरा भी थीं। रंभा ने यह व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया था। सुहागिन महिलाएं भी अपने पति की लंबी आयु और बुद्धिमान संतान की प्राप्ति तथा उनके अच्छे भविष्य के लिए यह व्रत करती है।
रंभा तृतीया का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. इस बार यह व्रत 2 जून दिन गुरुवार को रखा जाएगा। इस व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, विडाल योग का निर्माण हो रहा है।
- तृतीया तिथि का आरंभ– 1 जून बुधवार की रात में 09 बजकर 47 मिनट से
- तृतीया तिथि समापन– 3 जून, शुक्रवार की रात 12 बजकर 17 मिनट पर
रंभा तीज पूजा विधि
रंभा तृतीया व्रत में अप्सरा रंभा की पूजा की जाती है। इस दिन व्रती प्रातःकाल उठकर स्नानादि करके व्रत एवं पूजा का संकल्प लें। पूजा स्थल पर पूर्व दिशा में मुंह करके स्वच्छ आसन पर बैठें।माता पार्वती और शिव भगवान की मूर्ति स्थापित करें. पहले गणेश भगवान की फिर शिव भगवान और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें।
पूजन के दौरान ॐ महाकाल्यै नम:, ॐ महालक्ष्म्यै नम:, ॐ महासरस्वत्यै नम: आदि मंत्रों का जाप करें। पूजा में घी के पांच दीपक जलाएं. अब भगवान शिव पर चंदन, गुलाल और फूल समेत अन्य चीजें एवं माता पार्वती पर चंदन, हल्दी, मेहंदी, अक्षत, लाल फूल समेत सोलह श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं. रंभा तीज व्रत जिस घर में किया जाता है, वहां सुख-समृद्धि, शांति, सुंदरता, पति को लंबी उम्र और मनोकामना पूर्ण होती है।