हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापक भर्ती प्रक्रिया पर लगी रोक हटा दी है। मामले में दायर याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह याचिका दायर करने वाले अभ्यर्थियों को नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल करते हुए भर्ती शुरू कराए। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सभी नियुक्तियां कोर्ट के आदेश के अधीन रहेंगी। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि नियुक्तियां 2012 की नियमावली और शिक्षा का अधिकार अधिनियम की सुसंगत धाराओं के तहत ही की जाएं।
वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। जितेंद्र सिंह और अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर राज्य सरकार के 10 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे 2019 में एनआईओएस के दूरस्थ शिक्षा माध्यम से डीएलएड प्रशिक्षण प्राप्त हैं।
राज्य सरकार ने इस माध्यम से प्रशिक्षितों को सहायक अध्यापक (प्राथमिक) की नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर कर दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि केंद्र सरकार के 16 दिसंबर 2020 और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के छह जनवरी 2021 को जारी आदेशों में एनआईओएस की दूरस्थ शिक्षा पद्धति से डीएलएड प्रशिक्षण प्राप्त अभ्यर्थियों को अन्य माध्यमों से प्रशिक्षित अभ्यर्थियों के समान माना गया है।
हाईकोर्ट ने कार्मिक सचिव को निर्देश दिए हैं कि पीसीएस परीक्षा के अभ्यर्थियों को आयु सीमा में छूट देने और फॉर्म भरने की अंतिम तिथि बढ़ाने को लेकर निर्णय लें। हाईकोर्ट के इन निर्देश से पीसीएस अभ्यर्थियों को राहत मिलने की उम्मीद है।
वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। आशुतोष भट्ट, अमित बाटला, गुलफाम, हरेंद्र रावत और अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि उनकी आयु 45 वर्ष हो चुकी है, जबकि प्रदेश में पीसीएस परीक्षा के लिए आयु सीमा 42 साल है। याचिका में कहा गया कि 10 अगस्त 2021 को परीक्षा का विज्ञापन जारी किया गया था, जिसकी परीक्षा 10 अक्तूबर को होनी है।
याचिका में कहा गया कि राज्य बनने के बाद पीसीएस की परीक्षा छह बार हुई है और 2016 के बाद कोई परीक्षा हुई ही नहीं है। इस कारण वे इस परीक्षा से वंचित होते आए हैं। याचिका में कहा गया कि 2014 में सी सेट पैटर्न लागू किया गया था। इस नए पैटर्न के चलते वे क्वालीफाई नहीं कर पाए थे और यह पैटर्न आईएएस की परीक्षा में 2011 में लागू किया गया था। इसके तहत जो अभ्यर्थी इस परीक्षा को क्लीयर नहीं कर पाए, उन्हें केंद्र सरकार ने 2012 में दो अतिरिक्त अवसर दिए थे और ओवर ऐज अभ्यर्थियों को यूपी सरकार ने भी यह अवसर दिया था लेकिन उत्तराखंड में तब से यह परीक्षा हुई ही नहीं, जिसका लाभ उनको नहीं मिल सका।
हाईकोर्ट ने पिछड़े वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं दिए जाने के मामले में राज्य सरकार को तीन सितंबर तक स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं। वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
दलित मुस्लिम पिछड़ा वर्ग एकता संगठन समिति रुड़की ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने वर्ष 2017 से मुस्लिम दलित पिछड़े वर्ग को मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद कर दी है। यह छात्रवृत्ति केंद्र सरकार के आदेश के बाद भी नहीं दी जा रही है।
इसके चलते पिछड़ा वर्ग से जुड़े छात्र आईआईटी सहित अन्य शिक्षण संस्थानों में प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं। याचिकाकर्ता समिति का कहना था कि पिछड़े वर्ग को छात्रवृत्ति दिलाई जाए ताकि छात्र शुल्क जमा करने के साथ ही पठन-पाठन कर सकें।