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राजनीति के अखाड़े में सबको चित करने वाले ‘धरतीपुत्र’ का सफरनामा

मुलायम सिंह यादव नहीं रहे. दंगल हो या राजनीति का अखाड़ा, नेताजी सबको चित करने का हुनर बखूबी जानते थे. यही वो खूबी थी जिसने कारण राजनीति में सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए. मुलायम सिंह को धरतीपुत्र नाम यूं ही नहीं मिला. उनके पिता हमेशा चाहते थे बेटा पहलवान बने, उसी पहलवानी के अखाड़े में उन्होंने एक दिन पहलवान को चित किया और राजनीति के रास्ते पर अपना पहला कदम बढ़ाया.

मुलायम सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश में इटावा के सैफई गांव में 22 नवंबर, 1939 को हुआ था. पिता का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मूर्ति देवी था. वह 5 भाई-बहन थे- रतन सिंह, अभयराम सिंह, शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल सिंह यादव और कमला देवी. पिता चाहते थे कि वो पहलवान बने और यही बात उनके लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुई.. उनका पहला विवाह मालती देवी के साथ हुआ और 1 जुलाई 1973 को आखिलेश का जन्म हुआ. अखिलेश काफी छोटे थे जब मालती देवी का देहांत हुआ. मुलायम की दूसरी शादी साधना गुप्ता के साथ हुई और बेटे प्रतीक यादव का जन्म हुआ. आगरा विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद कुछ समय इंटर कॉलेज में एक शिक्षक के तौर बिताया.

पहलवानी का दंगल जीता और दिल भी

मुलायम सिंह जसवंत नगर से विधायक रहे नत्थू सिंह को अपना रजानीतिक गुरु मानते थे. इसकी शुरुआत एक दंगल से हुई. जसवंत नगर में एक कुश्ती के दौरान विधायक नत्थू सिंह ने देखा कि एक युवा ने पलभर में एक पहलवान को चित कर दिया. वो युवा मुलायम सिंह यादव थे. उनके उसी कौशल के कारण नत्थू सिंह ने मुलायम को अपना शागिर्द बना लिया.

स्नातक करने के बाद टीचिंग की पढ़ाई के लिए शिकोहाबाद पहुंचे. पढ़ाई पूरी करने के बाद 1965 में करहल के जैन इंटर कॉलेज में बतौर शिक्षक नौकरी करने लगे.

जब राजनीति के अखाड़े में उतरे

1967, यही वो साल था जो नेताजी के जीवन में बड़ा बदलाव लाने के लिए तैयार था. राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर थीं. राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह ने अपनी विधानसभा सीट जसवंत नगर से मुलायम को चुनाव लड़ाने का फैसला लिया. वो मुलायम को इतना पसंद करते थे कि टिकट दिलवाने के लिए डॉ. राम मनोहर लोहिया से खुद उनकी पैरवी की. नतीजा, टिकट पर मुलायम के नाम की मुहर लग गई.

उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के विधायक बने

अब नत्थू सिंह करहल विधानसभा से और मुलायम जसवंत नगर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बन गए थे. घोषणा होते ही वो प्रचार में जुट गए, लेकिन उनके पास कोई साधन नहीं था, नतीजा, साइकिल चलाकर प्रचार के लिए दूर-दूर गांवों तक जाते थे. वो ऐसा दौर था जब उनके पास पैसे नहीं रहते थे. अपने प्रचार के दौरान उन्होंने एक वोट-एक नोट का नारा दिया. वो चंदे में एक रुपये लेते थे और उसे ब्याज सहित वापस करने का वादा करते थे.

मुलायम सिंह यादव की ऐतिहासिक जीत

मुलायम का मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा के शिष्य एडवोकेट लाखन सिंह से था. चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले थे. सियासत के अखाड़े में भी मुलायम ने बाजी जीती और 28 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के विधायक बने. 1977 में उन्हें पहली बार राज्य मंत्री बनाया गया. साल 1980 में वे उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष रहे और जब लोक दल जनता दल का घटक बना तो 1982 में प्रदेश की विधानसभा में विपक्ष के नेता बने.

भाजपा के समर्थन से 5 दिसंबर 1989 को पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 1990 में वीपी सिंह की सरकार गिर गई और उन्होंने जनला दल की सदस्य ली. कांग्रेस का समर्थन मिलने के बाद वो मुख्यमंत्री बने रहे. हालांकि, 1991 में कांग्रेस के समर्थन वापस लेने पर उनकी सरकार गिर गई.

ऐसे पड़ी समाजवादी पार्टी की नींव

कांग्रेस के कारण सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह ने 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई. 1993 में बसपा के साथ गठबंधन किया, लेकिन चुनाव में इसका असर नहीं दिखा. 1996 से इटावा के मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी. उन्हें केंद्रीय रक्षामंत्री बनाया गया. 1998 में सरकार गिरी, लेकिन 1999 में संभल सीट से चुनाव लड़कर वापस लोकसभा पहुंचे. 1992 में बसपा के साथ मिलकर और 2003 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई. इस तरह वो तीन बार मुख्यमंत्री और 1 बार केंद्रीय मंत्री रहे.