सात महिला पहलवानों (Seven Women Wrestlers) ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार की (Request to Supreme Court) कि यह जरुरी है कि (It is Necessary that) पुलिस (Police) यौन उत्पीड़न की सभी शिकायतों को (In All Complaints of Sexual Harassment) गंभीरता से ले (In All Complaints of Sexual Harassment) और तुरंत एफआईआर दर्ज करे (Should Register FIR Immediately) । हालांकि, शिकायतकर्ताओं के प्रति पुलिस का रवैया चौंकाने वाला था। भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश की मांग करने वाली पहलवानों की याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया।
याचिका में कहा गया है कि हमारे देश को गौरवान्वित करने वाली महिला एथलीटों को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है और जिस समर्थन की वे हकदार हैं, उसे पाने के बजाय उन्हें न्याय पाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। याचिका में कहा गया कि इस मामले में आरोपी एक प्रभावशाली व्यक्ति है। मामले से बचने के लिए वह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहा है और न्याय में बाधा डाल रहा है। याचिका में कहा गया है कि यह जरूरी है कि पुलिस यौन उत्पीड़न की सभी शिकायतों को गंभीरता से ले और तुरंत एफआईआर दर्ज करे। एफआईआर दर्ज करने में देरी कर एक और बाधा पैदा न करें। एफआईआर दर्ज करने में देरी न केवल पुलिस विभाग की विश्वसनीयता को कम करती है, बल्कि यौन उत्पीड़न के अपराधियों को भी प्रोत्साहित करती है, जिससे महिलाओं के लिए आगे आना और ऐसी घटनाओं को रिपोर्ट करना अधिक कठिन हो जाता है।
याचिका में कहा गया, तीन दिन बीत जाने के बावजूद, यानी 21-24 अप्रैल तक, दिल्ली पुलिस द्वारा कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की गई। यह स्पष्ट रूप से मामलों की एक दुखद स्थिति और मानवाधिकारों के स्पष्ट उल्लंघन को दर्शाता है। यह पुलिस की जिम्मेदारी है कि वो सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, विशेष रूप से उन लोगों की जो सबसे कमजोर हैं। पुलिस अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में बुरी तरह विफल रही है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 21 अप्रैल को वे अपनी औपचारिक लिखित शिकायत लेकर कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन गए और पुलिस ने शिकायतें लीं और लगभग तीन घंटे तक शिकायत की औपचारिक रसीद भी जारी नहीं की। आगे कहा गया, पुलिस अधिकारी अपने मोबाइल पर शिकायतों की तस्वीरें लेते और उन्हें इधर-उधर भेजते देखे गए। शिकायतकर्ताओं के प्रति पुलिस का रवैया चौंकाने वाला था। यह अन्याय है और उनके मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।
दलील में कहा गया है कि कई मौकों पर आरोपी और उसके करीबी सहयोगियों द्वारा यौन, भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक शोषण के बाद, याचिकाकर्ताओं ने अन्य पहलवानों के साथ इस तरह के कृत्यों के खिलाफ उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष अपनी आवाज उठाने का साहस जुटाया और अपराधियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए। इसमें कहा गया है कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ इस तरह के आरोपों के मद्देनजर, 23 जनवरी के सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर आरोपों की जांच के लिए 5 मेंबर्स वाली ओवरसाइट कमेटी गठित करने का निर्णय लिया गया था।
ओवरसाइट कमेटी ने आरोपों पर ध्यान दिया और पीड़ितों के बयान दर्ज किए गए। हालांकि, यह जानकर दुख होता है कि समिति के गठन के बावजूद इस गंभीर मुद्दे के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। इसके अलावा, प्रिंट मीडिया के अनुसार, यह चलन में है कि वास्तव में आरोपी को मामले में क्लीन चिट दे दी गई है और समिति की रिपोर्ट खेल मंत्रालय में पड़ी हुई है और अनुरोध के बावजूद रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। शीर्ष अदालत के शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करने की संभावना है ।