कल तक जिस मुंह से दुलार की वाणी निकलती थी। जिन हाथों के स्पर्श से ममता का एहसास होता था। जिसकी आहट से कलेजे को सुकून मिला करता था। आज वही वाणी कठोर हो चुकी है। ममता का वही स्पर्श आज गुमनाम हो चुका है और इस बदहाली का सबब बना है कोरोना का वो कहर, जिससे अभी पूरी दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। आलम यह कि कल तक गुलाजर रहने वाली गलियां अब वीरान हो चुकी है। कभी अपने और अपनों को छोड़कर बड़े-बड़े महानगरों की ओर रूख करने वाले ये प्रवासी मजदूर आज इतने मजबूर हो चके हैं कि इन्होंने अब पैदल ही अपने गांव जाने का फैसला कर लिया है। इस दौरान उन्हें रास्ते में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
इसी बीच विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हुए ओरंगाबाद के तरसा के चंद्रपुर जिले के गोंड़पिपरि तहसील के तारसा गांव पहुंचे युवक उसकी पत्नी और बच्चे को अपने गांव पहुंचने के बाद, उनका सामना ऐसे मंजर से हुआ, जिसने उन्हें पहले से भी ज्यादा तोड़ दिया। दरअसल, एक उम्मीद के साथ अपने गांव पहुंचे युवक, उसकी पत्नी और बच्चों का ऐसा तिरस्कार हुआ, जिसे देख वो सहम गए। टूट गए। बिलख गए। उसकी रूह कांप गई। आखिर कांपती भी क्यों न… कल तक जिस मां ने उसे अपने गोद में खिलाया था, आज उसी मां ने उसे घर में आने से इनकार कर दिया है। अपने बेटे को स्पर्श करने से परहेज किया।
इतना ही नहीं, जब ग्राम पंचायत ने भी उस युवक और उसके परिवार को आने से इनकार दिया तो अंत उस युवक ने गांव वालों से एक स्कूूल में आइसोलेशन के लिए जगह मांगी, मगर वो जगह से देने से भी इनकार करने लगे। अब स्थिति ऐसी बन चुकी थी कि वे बेदह दयनीय अवस्था में जीने पर मजबूर हो गए। इसके पूरे तीन घंटे बाद मां की ममता जागी और फिर किसी ने इस पूरे मामले की शिकायत पुलिस को कर दी। इसके बाद पुलिस ने प्रशासन से बात कर एक सरकारी स्कूल में उनके रहने की व्यवस्था की। इसके बाद मां की ममता भी जाग गई और फिर वे खुद अपने बेटे बहू और नातिन के लिए खाना लेकर पहुंची और उन्हें खाना खिलाया। बताया जा रहा है कि केरोना के कहर के खौफ में आए गांव वालों ने रिश्ते नाते को तिरस्कार करने का जैसा कदम उठाया.